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बिहार में महागठबंधन बनी मजबूरी, मगर जी नही सकते तुम्हारे बिना

(जावेद अंसारी)
छापे के बाद भी लालू प्रसाद यादव और उनके पारिवारिक कुनबे के राजनीतिक और प्रशासनिक सेहत पर तत्काल कोई असर नहीं पड़ता दिख रहा है, माना जा रहा है कि राजद अध्यक्ष को मंगलवार शाम को ही इस बात के संकेत मिल गए थे, उधर, कांग्रेस ने भी मन बना लिया है कि वो इस ‘संकट’ की इस घड़ी में संकटमोचक रहे लालू लालू प्रसाद यादव के साथ मजबूती से खड़ी रहेगी, शायद यही वजह है कि छापेमारी के अगले दिन यानी आज (17 मई की) सुबह से ही राजद सुप्रीमो थोड़ा फ्रेश मूड में दिखाई दिए और पटना आवास पर जुटे मुलाकातियों से अपने पुराने अंदाज में मिले।

वही दुसरी ओर नीतीश कुमार ने कहा, महागठबंधन मजबूत है, लेकिन नीतीश कुमार अपने उसूलों के पक्के और भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस की नीति पर काम करने के लिए जाने जाते हैं, उनका बार-बार कहना कि अपराध साबित होने पर अपराधी कोई भी हो बख्शा नहीं जाएगा, एक बड़ा चैलेंज है, हालांकि जदयू और राजद एक दूसरे को भली-भांति जानते हैं और किसी भी मामले से अनभिज्ञ नहीं है, लेकिन राजनीतिक दोस्ती में समझौते तो करने ही होते हैं|
अभी विपक्ष के लिए लालू को घेरने का मौका है। आरजेडी सुप्रीमो के परिवार पर पिछले करीब 2 महीने से घोटाले के आरोप लगा रहे बीजेपी नेता सुशील मोदी ने लालू को बेनामी संपत्तियों के कथित गोरखधंधे का मास्टरमाइंड बताया और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से जांच की मांग की, नीतीश ने कह दिया कि सच्चाई हो तो केंद्र सरकार जांच करा ले, केंद्र ने जांच के आदेश दे दिए,आयकर विभाग की छापेमारी हुई, इन सबमें टाइमिंग एेसी रही कि विपक्ष को तीर चलाने का मौका मिल गया|
हांलाकी आय से अधिक सम्पत्ति रखने के मामले में लालू यादव ने चार्जशीटेड राबड़ी देवी को सीएम पद पर रहते हुए ही कोर्ट में पेशी करावाया था और जमानत ली थी लेकिन नीतीश राज में उनकी चाल और दाल नहीं गल सकती है, फिर भी उम्मीद जताई जा रही है कि गठबंधन धर्म निभाते हुए मुख्यमंत्री इतना तो रियायत दे ही सकते हैं कि तेज प्रताप यादव और तेजस्वी प्रसाद यादव को मिल रही कई सुविधाएं जारी रहे|
बदली परिस्थितियों में लालू की मजबूरी भी है कि जब वो खुद और उनका परिवार आयकर के मकड़जाल में फंस चुका है तब नीतीश कुमार के हर सुझाव को मानते हुए सरकार में शामिल रहकर सत्ता सुख भोगते रहने में ही भलाई है,इससे उनकी अप्रत्यक्ष सरकार भी चलती रहेगी और दूसरे 80 विधायकों वाली पार्टी भी कन्ट्रोल में रहेगी, लेकिन, भूचाल तो लालू के इस ट्वीट से आया कि बीजेपी को नया साथी मुबारक हो, इस ट्वीट ने राजनीतिक विश्लेषकों तक को अचंभे में डाल दिया (इसके बाद क्या था) राजनीतिक उबाल के बीच ये खबरें आने लगीं कि महागठबंधन टूट की कगार पर पहुंच गया है, अब इसपर मुहर लगनी बाकी है,लेकिन, राजनीति के माहिर खिलाड़ी रहे लालू ने तुरंत अगला ट्वीट किया कि ज्यादा लार टपकाने की जरूरत नहीं है, गठबंधन अटूट है, इससे बयानबाजी और आशंकाओं ने नया मोड़ ले लिया|
नीतीश कुमार भी लालू प्रसाद यादव के साथ अपने राजनीतिक सम्बन्धों को तत्काल नहीं तोड़ना चाहते क्योंकि इससे उन्हें कुछ राजनीतिक लाभ होता नहीं दिख रहा है, लिहाजा, साल 2019 के लोकसभा चुनाव तक लालू-नीतीश की राजनीतिक दोस्ती और जोड़ी सियासी उठापटक सहते हुए जारी रहेगी क्योंकि आखिरी सच इन दोनों नेताओं को पता है कि उनकी दोस्ती अगर टूटी तो उसका फायदा सिर्फ और सिर्फ भाजपा को ही मिलेगा|
वही दुसरी ओर शुशील मोदी ने कहा-नीतीश जी अब तो लालू का साथ छोड़िये, उन्होंने कहा कि जेडीयू के किसी नेता ने आज तक लालू यादव के खिलाफ कुछ भी नहीं कहा, लेकिन, अपने नेता के खिलाफ हम लगातार अशोभनीय शब्द सुन रहे हैं और बर्दाश्त कर रहे हैं, केसी त्यागी ने कहा कि अपनी तरफ से जेडीयू का गठबंधन को अंत तक निभाने की पूरी कोशिश करेगा, आपको बता दे कि विधानसभा चुनाव में महागठबंधन ने एनडीए को धूल चटाया, 2015 के नवंबर महीने में बिहार विधानसभा की 243 सीटों पर चुनाव हुए जिनमें से महागठबंधन ने 178 सीटों पर बंपर जीत हासिल की,आरजेडी को 80, जेडीयू को 71 और महागठबंधन की तीसरी पार्टी कांग्रेस को 27 सीटें मिलीं, दूसरी ओर, एनडीए को करारी हार का सामना करना पड़ा, उसे केवल 58 सीटें हीं मिलीं|
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