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करिश्मा अग्रवाल की कलम से – इस्लाम में मजदूर दिवस हर दिन है

करिश्मा अग्रवाल की कलम से
एक मई का दिन तो हर साल आता है, लोग एक दूसरे को मजदूर दिवस की बधाई देते हैं, परंतु क्या इस्लाम में मजदूर दिवस के मानी यही है ? आइए आपको बताते हैं इस मजदूर दिवस का इतिहास और इस्लाम में मजदूरों का महत्व, और क्या इस्लाम इजाजत देता है की मजदूर दिवस साल में केवल 1 दिन मनाई जाए, लेख लंबी अवश्य है परंतु पढ़े ज़रुर।

उन्नीसवीं सदी के मध्य में रूस के मजदूरों को 19 से 20 घंटे काम कराया जाता था और उन्हे उनकी मजदूरी भी उनके काम के मुताबिक नहीं दी जाती थी जिनसे उनके परीवार का भरण पोषण भी मुश्किल था, गरीब मजदूरों पर तरह-तरह के जुल्म किए जाते थे, कोई मजदूर काम के वक्त किसी हादसे का शिकार हो गया और मर गया तो उन मजदूरों को न मुआवजा दिया जाता था और न ही किसी प्रकार से समर्थन करती थी सरमायदारों की कम्पनियां, गरीब मजदूर का खुन चुस-चुसकर कम्पनियां शोहरत की बुलंदी को छुने लगी, रुस के इस उसुल को देखकर अमेरिका ने भी अपने यहाँ मजदूरों से 16 घंटे काम लेना शुरु कर दिया, अमेरिका और रुस में मजदूरों को हल चलाने वाले बैलों की तरह समझा जाने लगा और दिन प्रतिदिन उनकी बर्बरता बढती ही गई,
मगर कहा जाता है न की जब सब्र का बांध टूट जाता है तो जालिमों पर मजलूम हावी हो जाते हैं, 1 मई 1886 को मजदूरों ने अमेरिका के शहर शिकागो में हड़ताल का ऐलान कर दिया जिसके बाद सनअती शहर कहा जाने वाला शहर शिकागो की छोटी से लेकर बड़ी-बड़ी कम्पनियों में ताले जड़ दिए गए, मजदूरों का आक्रोश उफानों पर था और हर जगह एक नारा गुंजता था की “काम के वक्फे को कम करो और इतना मेहनताना दो की जिंदा रह सकें”।
एक मई को शुरु हुआ हड़ताल जब तीन मई तक बंद नहीं हुआ तो पुलिस ने सरमाएदारों के हुक्म से मजदूरों पर गोलियां बरसाने शुरू कर दिए जिसके बाद कई मजदूर हलाक हो गए, हलाक हुए मजदूरों की शोक में मजदूरों ने ठीक उसके दुसरे दिन ही शिकागो के चौराहे पर जुलुस निकाल दिया लेकिन इस मरतबा पुलिस और फौज ने मिलकर मजदूरों पर हमला कर दिया, शिकागो की सड़के खुनी हो गई, दीवारों में खुन के निशान ऐसे थे जैसे सुर्ख पेंट किया गया है, मजदूरों के हाथों में जो सफेद झंडा था उसे उनहोंने खुन से रंग लिया, किसी ने अपने कमीज को फाड़कर खुन से रंगा। उनके हड़ताल में उनके रहनुमा रहे एजनल, मनशर, स्पाइज और पैरस्नज को गिरफ्तार कर लिया गया, और फिर फाँसी पर लटका दिया गया,
आज मजदूर दिवस उन्हीं मजदूरों की याद में मनाई जा रही है, जो 1886 से शुरु हुआ, तो मेरा सवाल यह है की 1886 से कब्ल कौन था जिसने मजदूरों के हुकुक की बातें की थीं ? हाँ वो मोहम्मद (सअ) थे जिन्होंने 1400 साल पहले ही मजदूरों के हुकुक बयाँ कर दिए, उनहोंने फरमा दिया की मजदूरों का पसीना सुखने से कब्ल उसे उसकी मजदूरी दे दी जाए, उनहोंने मजदूरों के काम करने के मुनासिब वक्त मुतअईन कर दिए, उनहोंने मजदूरों के मुआशी हालात के मुताबिक उनका मेहनताना देने की बात कही, उनहोंने मजदूरों के कुवत के मुताबिक उनसे काम लेने का हुक्म दिया, उनहोंने मजदूरों को वो इज्जत दी जो एक मजदूर को मालिक से प्राप्त होनी चाहिए, उनहोंने दुनिया में आला का अदना पर जुल्म को खत्म किया, और उनहोंने ही ये सबक दिया के मजदूर का एक दिन मोकर्रर नहीं किया गया है जिसे उनके लिए मखसुस तौर पर मनाया जाए, बल्कि मजदूरों का हर दिन है।
आप पुछेंगे कैसे तो मैं बताना चाहता हूँ की बुखारी शरीफ की हदीस है की “तुम्हारे मजदूर या मुलाजिम तुम्हारे भाई हैं, पस अल्लाह ने तुम में से जिसके मातहत इस के किसी भाई को किया है तो वो इसको वैसा ही खिलाए जैसा वो खुद खाता है, और उसी से उसको पहनाए जिससे वो खुद लिबास पहनता है, और इससे वो काम करने को न कहे जिसे करने का वो कुवत नहीं रखता है, और अगर ऐसा काम करने का कह भी दे तो वो खुद इसका हाथ बटाए”
इस हदीस ने मजदूरों के हक़ में निम्न बातें तो सिद्ध कर दी हैं की।
1- मजदुर के मुआशी हालात के मुताबिक मजदुरी का हुक्म है।
2- मजदूरों के ताकत से बढ़कर काम लेने को मना किया गया है।
3- मजदूरों की इज्जत नफ्स का ख्याल रखने का हुक्म दिया गया है।
4- मजदूरों और मालिकों के बीच आला और अदना के फर्क को खत्म करने का हुक्म है।
तो जहाँ इस्लाम ने मजदूरों के हुकुक का इतना ख्याल रखा है वहीं मजदूरों को उनकी जिम्मेदारियों से आगाह भी किया गया है, कुरआन सुरह “क़ाफ ऐन साॅद 38” में इर्शादे बारी ताला है की “बेहतर मजदूर जो तु रखे वो ताकतवर और अमीन होना चाहिए”…….  इस आयत में ताकत से मुराद काम करने की सलाहियत से है चाहे वो काम मानसिक हो या शारिरीक, और वो मालिक के मुफाद का अमीन होना चाहिए और जो काम उसे सौंपा जाए वह उसे अमानत और दयानत से करने वाला होना चाहिए।
आखिर में आपको बताना चाहती हूँ कि मेरी पोस्ट का एक ही मतलब है कि ये मजदूर दिवस 4 दिन पहले की बात है परंतु 1400 साल पहले इस्लाम ने मजदूरों को उनके हुकुक से वाकिफ करा दिया, और मजदूर किसी एक मखसुस दिन में तारीफ के पात्र नहीं हैं, उनका हर दिन मजदूर दिवस है, कयोंकि अल्लाह को वो निवाला पसंद है जो हलाल रिज्क से प्राप्त की गई हो।
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