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अरशद आलम की कलम से – बच्चों को आर्मी अफसर बनाने के लिए एक माँ बन गई कुली

अरशद आलम
भले ही मेरे सपने टूटे हैं लेकिन हौसले अभी जिंदा है। जिंदगी ने मुझसे मेरा हमसफर छीन लिया लेकिन अब बच्चों को पढ़ा लिखाकर अफसर बनानो मेरा सपना है। इसके लिए मैं किसी के आगे हाथ नहीं फैलाऊंगी। कुली हूं, लेकिन इज्जत का खाती हूं
बूढ़ी सास और तीन बच्चों की परवरिश का जिम्मा अब इसके कंधो पर आ गया था…। हम बात कर रहे हैं मध्य प्रदेश के कटनी रेलवे स्टेशन में प्रतिदिन 270 किलोमीटर का सफर तय कर अपनी जिंदगी का बोझ हलका करने के लिए यात्रियों का बोझ ढो रही महिला कुली संध्या मरावी की। उसने रेलवे कुली का लाइसेंस अपने नाम कराते हुए बड़ी से बड़ी चुनौतियों का सामना करते हुए साहस और मेहनत के साथ जब वजन लेकर प्लेटफॉर्म में चलती है तो लोग हैरत में पड़ जाते हैं और जज्बे को सलाम करते हैं।

30 साल की उम्र में वह बच्चों की देखभाल के साथ चूल्हा-चक्की का काम संभाल रही थी, इसी बीच नियति ने धोखा दे दिया। हंसी-खुशी कट रही जिंदगी ने एकदम से करवट बदला और पति भोलाराम को बीमारी ने अपनी आगोश में ले लिया। इतना ही नहीं पति का देहांत हो गया। इससे घर की स्थिति लडख़ड़ा गई। बच्चों की परवरिश और दो वक्त की रोटी की चिंता उसे सताने लगी और फिर साहस के साथ संध्या हिम्मत नहीं हारी। बच्चों के खातिर उसने खुद को संभाला और यह निश्चित किया कि चाहे कुछ भी हो वह बच्चों की बेहतर परिवरिश करने वह कोई कसर नहीं छोड़ेगी।
कल्याणी संध्या प्रतिदिन न सिर्फ दुनिया को बोझ ढ़ो रही है बल्कि प्रतिदिनि 270 किलोमीटर का सफर भी तय कर चंद रुपए जुटा रही है। संध्या प्रतिदिन कुंडम से 135 किलोमीटर का सफर तय कर जबलपुर रेलवे स्टेशन पहुंचती है और फिर इसके बाद कटनी पहुंचती है। वहीं पर काम करने बाद जबलपुर और फिर घर लौटती है। प्रतिदिन इतनी कठिनाइयों से गुजरकर बच्चों और पेट की खातिर काम कर रही है। संध्या का कुली बिल्ला नंबर 36 है।
पति भोलाराम की मौत के बाद संध्या की अनुकम्पा नियुक्ति हुई। जनवरी 2017 से वह मर्दों की तरह सिर और कांधे पर वजन ढो रही है। संध्या कटनी स्टेशन में 45 कुलियों में से पहली महिला कुली है। साथी कुलियों के साथ वह सिर पर बोझ ढोकर अपनी जिंदगी को गुजार रही है। वह स्टेशन में पहुंचती है और यात्रियों का सामान उठाने खुद आवाज लगाती है।
बच्चों की परवरिश जरुरी
असमय सिर से पति का साया उठ जाने से संध्या बस यादों में ही सिसककर रह जाती है। संध्या के ऊपर बूढ़ी सास की सेवा और बच्चों की परवरिश की सबसे बड़ी जिम्मेवारी है। संध्या के तीन बच्चे हैं। शाहिल उम्र 8 वर्ष, हर्षित 6 साल व बेटी पायल 4 साल की है। तीनों बच्चों का भरण-पोषण, शिक्षा के लिए वह इतनी बड़ी परेशानी उठाकर कटनी पहुंचती है और दुनिया का बोझ ढोकर जिंदगी का बोझ हलका कर रही है। वो अपने बच्चों को सेना में बड़े अफसर बनाना चाहती है।
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