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क्या मुस्लिम महिलाओं को निकाहनामा के समय दिया जा सकता है ‘तीन तलाक’ को ‘ना’ कहने का विकल्प – सुप्रीम कोर्ट

करिश्मा अग्रवाल
सुप्रीम कोर्ट की जीफ जस्टिस जेएस खेहर की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने ने आज तीन तलाक के मसले पर बात करते हुए ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) से सवाल किया कि क्या महिलाओं को ‘निकाहनामा’ के वक्त ‘तीन तलाक’ की मनाही का विकल्प दिया जा सकता है और क्या सभी ‘काजियों’ से निकाह के समय इस शर्त को शामिल करने के लिए कहा जा सकता है।

बता दें कि,तीन तलाक, बहुविवाह और ‘निकाह हलाला’ को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर पीठ के समक्ष सुनवाई चल रही है.इस पीठ में हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, पारसी सहित विभिन्न धार्मिक समुदायों के सदस्य शामिल हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने सवाल किया कि,
”क्या यह संभव है कि मुस्लिम महिलाओं को निकाहनामा के समय ‘तीन तलाक’ को ‘ना’ कहने का विकल्प दे दिया जाए?” इस पीठ ने ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) की ओर से पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल से जवाब मांगते हुए कहा, ”हमारी तरफ से कुछ भी निष्कर्ष ना निकालें.”
कल एआईएमपीएलबी ने कहा था कि ‘तीन तलाक’ धर्म से जुडा मामला हैं और इन्हें संवैधानिक नैतिकता के आधार पर नहीं परखा जा सकता।पीठ में न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ, न्यायमूर्ति आरएफ नरीमन, न्यायमूर्ति यूयू ललित और न्यायमूर्ति अब्दुल नजीर भी शामिल हैं।
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