अंजनी राय
बलिया। वैसे तो गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वालों को छत मुहैया कराने वाली
इंदिरा आवास योजना की ‘इतिश्री’ हो चुकी है, लेकिन अफसोस! सरकार की यह
योजना अपने समापन के एक साल बाद भी पिछले लक्ष्य को हासिल नहीं कर सकी।
विभागीय आंकड़ों पर गौर करें तो धरातल पर सैकड़ों आवास अब तक अपना बजूद कायम
नहीं कर पाये हैं।
पिछले तीन सालों में
जिले के लिये निर्धारित कुल 15 हजार 879 आवासों में तकरीबन 14 हजार 130
आवास ही पूरा हो सके हैं। 1189 आवास या तो द्वितीय किश्त के अभाव में अधूरे
हैं या फिर उनका अस्तित्व ही नहीं है। योजना के बंद होने के साथ ही इंदिरा
आवास की फाइल भी बंद हो गयी है। योजना का मुख्य लक्ष्य गरीब अनुसूचित
जाति, जनजाति, बंधुआ मजदूर, परित्यक्ता महिलाओं को आवास उपलव्ध कराना था।
अपने शुरुआती दिनों में ही भ्रष्टाचार के कारण विवादों में आयी यह योजना
अंत तक बिचौलियों व अपात्रों के चयन की वजह से आंख की किरकिरी बनी रही।
सीयर व बांसडीह ब्लाकों में तो काफी अनियमितताएं भी सामने आ चुकी हैं। 2016
में पीएमएवाई योजना के लांचिंग से पूर्व जिले को 2013-14 में 2178 आवास
बनवाने का लक्ष्य दिया गया था, लेकिन तीन सालों में 2070 आवास ही बन पाये।
शेष 108 आवासों का कोई हिसाब-किताब नहीं है। यही हाल वर्ष 2014-15 का रहा।
निर्धारित 7835 आवासों में से 7113 आवासों के लिये द्वितीय किश्त जारी होने
के बाद भी अब तक मात्र 6710 आवास ही अपना वजूद कायम कर पाये हैं। 722
लाभार्थियों ने प्रथम किश्त के बाद ही गोलमाल कर दिया। यही नहीं द्वितीय
किश्त भुगतान के बाद भी 403 आवास अब तक पूर्णता को प्राप्त नहीं कर पाये।
वर्ष 2015-16 में लक्ष्य के सापेक्ष पांच हजार 507 आवासों का द्वितीय किश्त
भेजा गया था, बावजूद इसके 5350 ही पूर्ण हो पाये। 335 लाभार्थियों द्वारा
अब तक द्वितीय किश्त की मांग ही नहीं की गयी। विभाग की मानें तो इस बावत
दर्जनों पत्र विकास खण्डों को भेजा जा चुका है, बावजूद इसके ब्लाकों पर
तैनाती कर्मचारी इसमें कोई रुचि नहीं ले रहे हैं।