आम भारतीय किसान दशकों से विपन्नता में रहने के साथ अत्यंत स्वाभिमानी भी है,अपनी रात दिन के अति कठिन मेहनत से फसल उपजाकर देश के लोगों की भूख मिटाने वाले किसान की आर्थिक स्थिति लगभग कमजोर ही रही है। देश की सरकार और बुद्धिजीवियों को गंभीरता से सोचना चाहिए कि जो किसान दूसरों को भोजन उपलब्ध करा रहा है वो आज अपनी स्थिति से इतना सुब्द्ध कैसे हो सकता है कि आत्महत्या जैसे कदम उठाने को मजबूर हो जाये? भारत का किसान सुरु से ही सहनशील एंवम साहसिक रहा है, यह गम्भीरतापूर्व सोचने का विषय है। देश के किसानों की दुर्दशा किसी से छुपी नहीं है।जहाँ येक तरफ सरकारों की उदासीनता,बिचौलियों का शोषण के कारण फसल का उचित विक्रय मूल्य मिल पाना किसी जंग से कम नही है, तो दूसरी ओर बाढ़, सूखा, ओलावृष्टि, जैसी प्राकृतिक आपदाए किसानों का पीछा नहीं छोड़तीं। यह तथ्य किसी से छिपा नहीं है कि देश में सरकार से मिलने वाली कृषि संबंधी अधिकांस सुबिधाओं का लाभ समस्त किसान वर्ग को नही मिल पाता,आर्थिक रूप से सम्पन लोगो तथा भरष्ट अधिकारियों के शोषण का शिकार हो जाता है। हमें यह सोचना होगा कि आजादी के 70 वर्षों बाद भी मात्र रोटी,कपड़ा और मकान की जद्दोजहद में उलझा एक किसान यदि उग्र आंदोलन का हिस्सा बन रहा है तो उसकी परिस्थितियां विपरीत ही रही होंगी। मेरा मानना है कि किसानों की सम्पूर्ण कर्ज माफी होनी चाहिए, देश के सम्पन घरानों के कर्ज माफ हो सक्ते है तो किसानों के क्यों नही?किसानों की समस्याओं का समाधान एक मात्र कर्ज माफी भी नहीं हो सकती ,बैज्ञानिक तकनीकी से किसानों को खेती के लिए गावँ गावँ जाकर जागरूक करना होगा।बिचौलियों और साहूकारों का वर्चस्व खत्म करने के लिए सख्त कदम उठाने की जरूरत है। हालांकि किसानों के किसी भी प्रकार के हिंसात्मक करवाई को जायज नही ठहराया जा सकता है लेकिन सरकारों की दमनकारी नीतियों को भी समर्थन नहीं किया जा सकता।देश में किसानों का उग्र आंदोलन का यक मुख्य कारण सरकारों द्वारा अति उत्साही हो कर चुनावों में किये गए वादे और लगातार बढ़ रही उपेक्षा भी है।
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