करिश्मा अग्रवाल
सऊदी अरब अफ़्रीक़ी देशों से अपनी बात मनवाने के लिए कई प्रकार के प्रेशर टूल प्रयोग कर रहा है और इस तरह उन्हें क़तर से संबंध तोड़ने पर मजबूर कर देना चाहता है। सऊदी अरब ने क़तर का बहिष्कार करवाने के लिए अफ़्रीक़ी देशों के ख़िलाफ़ कई हथकंडे अपनाए लेकिन अब तक वह सात अफ़्रीक़ी देशों को ही झुका सका है जबकि अन्य देश रियाज़ की बात मानने के लिए तैयार नहीं हैं।
नाइजर, मोरीतानिया, सेनेगाल, चाड, मिस्र, कोमोरस और मारीशस वह अफ़्रीक़ी देश हैं जिन्होंने सऊदी अरब के दबाव में क़तर से संबंध तोड़ लिए हैं। अफ़्रीक़ा में बड़ी मुस्लिम आबादी वाले देशों में काम करने वाली सऊदी अरब का कल्याणकारी संस्थाओं ने क़तर संकट शुरू होते ही दबाव डालना शुरू कर दिया था कि क़तर के साथ सारे देश एक जुट होकर कार्यवाही करें। सऊदी अरब ने अफ्रीक़ी देशों में अपने राजदूतों को भी प्रयोग किया और साथ ही विशेष दूत भी भेजे ताकि अफ़्रीक़ी देशों के राष्ट्राध्यक्षों को प्रलोभन और धमकी देकर रियाज़ की रणनीति का हिस्सा बनने पर तैयार कर लिया जाए।
सऊदी अरब ने दो हथकंडों को विशेष रूप से प्रयोग किया है। एक तो आर्थिक सहायता का हथियार है और दूसरे हज और उमरह का वीज़ा है। सऊदी अरब ने धमकी दी कि यदि किसी देश ने उसकी बात नहीं मानी जाएगी तो हज और उमरह का वीज़ा जारी करने की नीति उस देश के लिए कठोर बना दी जाएगी। सऊदी अरब के भारी दबाव के बावजूद बहुत से अफ़्रीक़ी देशों ने रियाज़ सरकार की मांग स्वीकार करने से इंकार कर दिया है।