करिश्मा अग्रवाल
भूखों को खाना खिलाना और रोज़ेदारों को इफ़्तार कराना एक एेसी अच्छी परंपरा है जो प्राचीन काल से मुस्लिम संस्कृति में प्रचलित रही है। इसी परिप्रेक्ष्य में पैग़म्बरे इस्लाम के पौत्र इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के रौज़े में इफ़्तार का सबसे बड़ा दस्तरख़ान लगाया जाता है। इस दस्तरख़ान पर 12000 लोग एक साथ बैठ कर इफ़्तार करते हैं। दस्तरख़ान की कुल लम्बाई तीन हज़ार मीटर है और इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के रौज़े के हिदायत नामक प्रांगण या कोर्टयाड में हर दिन बारह हज़ार लोगों को इफ़्तार कराया जाता है।
दस्तरख़ान पर हर व्यक्ति के लिए खजूर, पनीर, शूगर क्यूब, सब़्जियां, चाय का गिलास, शोले ज़र्द नामक एक मीठा पकवान, नमक, चम्मच, टिशू पेपर, सूप, चाय और पानी की बोतल मौजूद रहती है। इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के रौज़े के लगभग 500 सेवक लोगों को इफ़्तार कराते हैं। हर दिन के इफ़्तार के लिए 2500 किलो चावल, 2000 किलो मांस, 20 हज़ार प्याला सूप और चाय के लिए तीन हज़ार लीटर गर्म पानी इस्तेमाल किया जाता है। इमाम रज़ा अलैहिस्सलाम के रौज़े में इसी तरह मग़रिब की नमाज़ के बाद हर दिन बीस लाख पैकेट नमाज़ पढ़ने वालों के बीच बांटे जाते हैं जिनमें मीठा दूध, केक और खजूर इत्यादि मौजूद होते हैं।