शिखा प्रियदर्शनी की कलम से….
भारत एक विभिन्नताओं का देश है ऐसा सब जानते हैं। यंहा की संस्कृति भिन्न भिन्न है…. भारत को महिलाओं के मासिक धर्म के लिए एक अलग देश के रुप में देखा जाता हैं। जहां महिलाओं को इस दौरान हर त्योहार और लोगों से अलग रखा जाता हैं। वंही इन धारणाओं के बीच ओडिशा का एक विशेष उत्सव जिसे राजा फेस्टिवल कहते हैं। ये फेस्टिवल एक उदारवादी सोच रखता हैं।
ओडिशा का सबसे पुराना फेस्टिवल राजा (लोग इसका उच्चारण रोजो करते हैं) उत्सव महिलाओं की प्रजननता और स्त्रीत्व के लिए मनाया जाता हैं। इस उत्सव को महिला और प्रकृति को एक साथ जोड़कर उनके मासिक धर्म के वजह से आए बदलाव के लिए मनाया जाता है। आइए जानते हैं इस बारे में
जश्न का तरीका….
यह उत्सव मनाया जाता है ताकि महिलाओं की मासिक धर्म की प्रकिया संतुलित बनी रहें। यह शब्द ‘रजस्वला’ से बना है जिसका मतलब होता जिन महिलाओं को मासिक धर्म में रक्तपात होता हैं। यह रिवाज यह दर्शाता है कि जिस तरह धरती हम सबकी मां होती है उसी तरह मासिक धर्म आने के बाद महिलाएं भी इस धरती की तरह है जो मां बनने की क्षमता रखती हैं। और माना जाता है कि प्रकृति भी महिला को इस सौभाग्य के लिए आर्शीवाद देती है
जून में मनाया जाता है……
इस प्राचीन त्योहार को जून के तीन दिन तक मनाया जाता हैं, जब इस समय फसलें पक कर तैयार हो जाती हैं। जैसे फसल पकने के बाद उनकी कटाई की जाती है और फिर जला कर उस जगह को फिर से फसलो को बौने के लिए तैयार किया जाता है, उसी तरह यह प्रक्रिया होती है जब महिला की गर्भाशय की सफाई होती है और पुराने अंडे निकलने के बाद गर्भाशय फिर से नए अंडों के उत्पादन की तैयारी में लग जाती हैं। इसलिए माना जाता है कि इस समय धरती तीन दिन मासिक धर्म से गुजरती है इसलिए ये तीन दिनआराम किया जाता है और पूजा की जाती है और इसे फेस्टिवल की तरह मनाया जाता है।
राजा फेस्टिवल के दौरान सभी कृषि से जुड़े कार्यों को रोककर पुरुष और महिलाएं इस फेस्टिवल में भाग लेते हैं और लोकगीत गाते हैं। इस समय घरों को सजाया जाता हैं और इस दौरान कई तरह के खेल खेले जाते हैं।
फूल तोड़ने और खेती करने पर रोक…..
इस दौरान कोई भी खेती नहीं कर सकता हैं और फूल तोड़ना भी मना होता है। माना जाता है कि ऐसे करने से धरती माता को मासिक धर्म में दर्द होता है।
बसुमति गधुआ और भहूदेवी…..
चौथे दिन, इस फेस्टिवल के बाद किसान अपनी अपनी भूमि या भहुदेवी (धरती मां ) पर औपचारिक पानी का छिड़काव और स्नान करवाते है जिसे वसुमती गधुआ कहा जाता है। ताकि धरती मां की गर्भावस्था अवधि को पूरा कर फिर से उपजाऊ बनाने के लिए भारी वर्षा का स्वागत किया जाता हैं।
समय के साथ बदलाव भी……
आदिवासी अनुष्ठानों के साथ शुरु होने वाले इस राजा उत्सव में समय के साथ कई विकासवादी परिवर्तन हुए हैं। पहले तांत्रिक गतिविधियों के साथ जीवन शक्ति को दर्शाने के लिए खून का छिड़काव किया जाता था। लेकिन ओडिशा का शासन एक से दूसरे वंश के पास स्थानांतरित होने से इस उत्सव के स्वरुप में काफी फेरबदल हुए हैं।
बदलाव का होता है स्वागत…..
अब ये उत्सव सिर्फ एग्रीकल्चर और फसलों के आसपास तक सिमटकर रह गया है। पर अभी भी इसे महिलाओं के मासिकधर्म और स्त्रीत्व से जोड़कर ही मनाया जाता है। यह फेस्टिवल आज भी सम्मान के साथ मनाया जाता हैं। हालांकि ये फेस्टिवल देश के छोटे से भाग में मनाया जाता है। यह राजा उत्सव महिलाओं को पीरियड के दौरान आने वाली शर्म, असहजता और हर जगह आने जाने की पाबंदी को दरकिनार करते हुए महिलाओं के शरीर में हुए बदलाव का स्वागत करता है।।।।
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Brilliant. Kudos Shikha!!!