शबाब ख़ान
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट नें आज एक बार फिर साफ कर दिया कि 18 वर्ष से कम शारीरिक उम्र वाले नाबालिग बच्चों के यौन शोषण के मामलो में ही इस कानून को लागू किया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला दिल्ली की एक महिला द्वारा पेश की गई याचिका पर फैसला देते हुए कहा है। महिला ने अपनी 38 साल की बेटी के साथ हुए बलात्कार के मामले में आरोपी पर पॉक्सो के तहत मुकदमा चलाने की मांग की थी।
महिला का कहना था कि उसकी बेटी को सेरिब्रल पाल्सी है, जिसके चलते उसका मानसिक विकास नहीं हुआ है। घटना के वक़्त वो दिमागी तौर पर केवल 6 साल के बच्चे जैसी थी इसलिए उसके साथ हुए अपराध को बलात्कार के दूसरे मामलों की तरह नहीं देखा जाना चाहिए। महिला ने ये भी कहा कि बलात्कार के बाद उसकी बेटी इतनी सहम गई कि अब उसकी दिमागी क्षमता 3 साल बच्चे जैसी हो गई है। वो सही ढंग से मजिस्ट्रेट के सामने अपना बयान भी दर्ज नहीं करवा सकी।
सुप्रीम कोर्ट ने इसके लिए पीड़ित की मानसिक उम्र को आधार मानने से मना कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि यौन अपराध के मामले में पीड़िता की शारीरिक उम्र ही इस बात का आधार होगी कि आरोपी पर पॉक्सो लगे या नहीं।
सुप्रीम कोर्ट ने मामले के तथ्यों को गंभीरता से देखा और माना। लेकिन कानून की नए सिरे से व्याख्या करने से मना कर दिया, पीड़िता से हमदर्दी जताते हुए कोर्ट ने लीगल सर्विसेस अथॉरिटी को उसके लिए अधिकतम मुआवजा सुनिश्चित करने का निर्देश दिया।
उल्लेखनीय है कि प्रोटेक्शन ऑफ़ चिल्ड्रन फ्रॉम सेक्सुअल ऑफेंसस यानी पॉक्सो एक्ट 18 साल से कम उम्र के बच्चों के साथ हुए यौन अपराध के मामलों में लगाया जाता है, इसमें बेहद सख्त सजा के प्रावधान हैं।