चाईना के साथ जारी तनाव के बीच भारत के इस आमत्रंण को कूटनीतिक पैतरे के रूप में देखा जा सकता है...
शबाब ख़ान
नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की इज़राइल यात्रा के बाद से कायस लगाये जा रहे थे कि अबकी बार भारत इज़राइल के प्रधानमंत्री बेंन्जामिन ‘बीबी’ नेतन्याहू को गणतंत्र दिवस के मौके पर नई दिल्ली आनें को आमंत्रित करेगा, लेकिन यह संभावना उस समय खत्म हो गयी जब भारत नें 2018 के गणतंत्र दिवस पर एक-दो नही पूरे दस राष्ट्रों के राष्टाध्यक्षों को आमंत्रित किया। जी हॉ, इस बार आसियान ASEAN देशों के सदस्यों को भारत के गणतंत्र दिवस के मौके पर नई दिल्ली में आमंत्रित किया गया है, हालांकि इसकी आधिकारिक पुष्टि अभी बाकी है।
आसियान दरअसल दक्षिण-पूर्वी एशियाई राष्ट्रों का संगठन है। यह सारे छोटे राष्ट्र वह देश है जिन्होंने यह संगठन इसलिए बनाया है ताकि आपसी सहयोग से अपनी अंखडता बनाये रखते हुए आर्थिक क्षेत्र में प्रगति की जा सके। इसका पहला ही उद्देश्य सदस्य देशों की संप्रभुता, क्षेत्रीय अखंडता और स्वतंत्रता को कायम रखना है।जिन आसियान देशों को भारत नें आमंत्रित किया है वह इंडोनेशिया, मलेशिया, फिलीपींस, सिंगापुर, थाईलैंड, ब्रूनेई, कंबोडिया, लाओस, म्यांमार और वियतनाम हैं। यह सारे ही देश ऐसे है जिनकी या तो चाईना के साथ सीमा लगी हुयी है या फिर जिनका साउथ चाईना सागर में चाईना की घुसपैठ को लेकर विवाद है, या चाईना की विस्तारवादी नीति को लेकर सशंकित हैं। भारत के इस कदम को चाईना के साथ जारी सीमा विवाद और बयानबाजी के विरूद्ध एक कूटनीतिक चाल के रूप में देखा जा सकता है। चाईना की कूटनीति ‘कैरट एण्ड स्टिक’ को भारत सरकार नें एक साथ चाईना के साथ किसी न किसी विवाद में उलझे सभी दस राष्ट्रों को भारत के गणतंत्र दिवस के मौके पर आमंत्रित करके चाईना की कूटनीतिक चाल को एक झटके से पटखनी दी है।
भारत की ओर से भेजा गया आमंत्रण दक्षिण पूर्वी एशिया के राष्ट्रों में, सिर्फ और सिर्फ चाईना के आधिपत्य की लालसा और विस्तारवादी नीति को लेकर उठी आशंकाओं का सामना करने में सहयोग और ऐसी किसी भी कोशिश के खिलाफ, आर्थिक व सामरिक गठजोड़ की संभावना को तलाशना भी हो सकता है।