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“हौसलों की जीत” ये हैं दुनिया की सबसे कम उम्र की महिला पायलेट….

शिखा की कलम से……
ऐसी बहुत सी कहानी हमारे आस पास होती है जो की ये अहसास दिलाती है हमें कभी अपने सपनों को मरने नहीं देना चाहिए।अगर हमारी इच्छाशक्ति मजबूत हो तो कोई भी सफलता पाई जा सकती है चाहे वो कठिन और बड़ी ही क्यों न हो। कुछ ऐसी ही सफलता की कहानी है एनी दिव्या की।दिव्या दुनिया कि सबसे यंगेस्ट महिला कमांडर हैं जो बोइंग 777 विमान उड़ाती हैं।

दिव्या का जन्म पठानकोट में हुआ था। इनके पिता आर्मी में थे और पठानकोट में पोस्टेड थे। लेकिन वोलंटरी रिटायरमेंट के बाद पूरा परिवार विजयवाड़ा में बस गया। इसी कारण दिव्या की स्कूली पढाई विजयवाड़ा में ही हुई। दिव्या बचपन से ही पायलेट बनने की बातें किया करती थी जिसके कारण दिव्या को अपने दोस्तों के बिच मजाक का पात्र भी बनना पड़ता था।उन पर रिश्तेदारों के तरफ से हमेशा डॉक्टर या इंजीनियर बनने का दवाब दिया जाता था। हालाँकि माता-पिता के तरफ से इस प्रकार का कोई दवाब उन पर कभी नहीं रहा। घर पर आर्थिक हालात कुछ खास अच्छे नहीं थे फिर भी पिता ने कभी इस कमी को उनकी पढाई और सपनों के बीच नहीं आने दिया।
आज वह बोइंग 777 फ्लाइट उड़ाने वाली विश्व की सबसे कम उम्र (30 साल) की महिला कमांडर हैं। बचपन से पायलट बनने का सपना देखने वाली दिव्‍या इतनी जल्‍दी अपने सपनों के आसमान में उड़ेगी ऐसा उन्‍होंने भी नहीं सोचा होगा। लेकिन अपने बुलंद हौंसले की वजह से उन्‍होंने इतनी कम उम्र में ही यह सपना पूरा कर दिखाया।
अपने सपने पूरे करने के लिए दिव्या को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा। जब वह पठानकोट से विजयवाड़ा शिफ्ट हुईं तो छोटे शहर से होने की वजह से दिव्या को खुद को एडजेस्ट करने में काफी परेशानी हुई। शुरुआत में इंग्लिश नहीं बोल पाने के कारण लोग उनका मजाक उड़ाते थे।
17 साल की उम्र में ही मिल गई थी कमान……..
17 साल में अपनी स्कूलिंग पूरी करने के बाद दिव्या ने यूपी के फ्लाइंग स्कूल इंदिरा गांधी राष्ट्रीय उड़ान एकेडमी में एडमिशन लिया। जिसके लिए उनकी फैमिली ने काफी कर्ज भी लिया था।19 साल की उम्र में उन्होंने अपनी ट्रेनिंग पूरी की और एयर इंडिया के साथ जॉब का ऑफर मिला। इसके बाद वह स्पेन में ट्रेनिंग के लिए गई और तब वहां उन्हें बोइंग 737 की कमान सौंपी गईं।
टर्निंग पॉइंट…..
दो साल के बाद, दिव्या दूसरी ट्रेनिंग के लिए लंदन गईं और वहां उन्हें बोइंग 777 की कमान मिली। यह सबसे कम उम्र की कमांडर के लिए टर्निंग पॉइंट था। उन्होंने पूरे विश्व की उड़ान कराई और अपने आलोचकों का मुंह बंद किया। अपनी कामयाबी के पीछे वो अपने पैरंट्स और फैमिली को बताती हैं।
दिव्या को अंग्रेजी माहौल में रहने और अंग्रेजी बोलने में परेशानी होती थी। अक्सर उनकी खराब अंग्रेजी का मजाक उड़ता था। एक वक्त तो उन्होंने सब छोड़ने की ठानी, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। फिर उन्होंने स्कॉलरशिप पाने के लिए कड़ी मेहनत की और वो मिल गई।
कम है महिला पायलेट की संख्या……..
दिव्या ने फ्लाइंग के अलावा लॉ में पोस्ट ग्रैजुएशन किया है। कैप्टन को कविताएं लिखना भी अच्छा लगता है। वह अब तक करीब 30 कविताएं उर्दू में लिख चुकी हैं। भारत में महज 15 प्रतिशत महिलाएं पायलट हैं जबकि विश्व स्तर पर यह आंकड़ा तो सिर्फ पांच प्रतिशत ही है। इस पेशे में पुरुषों का वर्चस्व बरकरार है।
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