(तारिक आज़मी)
वाराणसी. हमारे प्रदेश की एक कहावत हमारे काका कहते रहे अक्सर कि बतिया है कर्तुतिया नाही, ता भैया हम भी बस बतिया करेगे अब का करे बतिया करने से समस्याएं भी हल हो जाती है मगर हम कैसे हल कर देंगे समस्या जब विकराल हो। तो भैया हम तो पहले ही कह देते है कि हम साफ़ साफ़ कहते है और खाली बतियाते है, अब किसी को अगर इ बतिया से बुरा लगे तो न पढ़े भाई हम कोई जोर जबरदस्ती तो कर नहीं रहे है कि पढ़बे करो साहेब। तो साहेब बतिया शुरू करते है और बतिया की खटिया बिछा लेते है
गुरु पुलिस का गुड वर्क दिखाना हमारे नियमो से परे रहा है. गुड वर्क नहीं मगर अगर कही बैड वर्क मिल जाय तो चपक के दिखाना. मगर आज अंतरात्मा ने आत्मा से उधारी की अनुमति मांगी और फिर लिखने को सोचा. अभी कल ही सोच रहा था कि गुरु इ जो पुलिस कर्मी होते है कही न कही से हमारी सुरक्षा के लिए होते है. अब उ सुरक्षा के लिए है तो सवाल इ है कि भैया उ भी हमारे जैसे इन्सान है. उनके भी परिवार है उनका भी घर दुआर होगा. गुरु सच बताऊ यही सोच कर आज इ बतिया बतियाने का मौका मिल गया अब बतकुच्चन करना है तो गुरु कुछ इसी मुद्दे पर कर दिया जाय.
साहेब यही बतियाते बतियाते हम पहुच जाते है आदमपुर थाना परिसर में. अग्रेज अपनी जवानी में शायद इस भवन को बनवाये होंगे जिसकी पुरानी ईंट आज भी ई बतिया का गवाही दे रही है कि उसकी बुढौती ही नहीं बल्कि उसकी कमर झुक कर धनुष हो चुकी है. जगह जगह से जर्जर इस भवन को किसी तरह उसकी नेह और थाना प्रभारियो का प्रयास खड़ा किये हुवे है. अगर भगवन इंद्रा की विशेष अनुकम्पा होती है तो यह श्राप के तौर पर इस थाना परिसर में होता है और थाना परिसर में जल भराव हो जाता है. अभी पिछले साल के बरसात में जब बारिश हुई तो पूरा थाना परिसर ही जलमग्न हो चूका था. मरम्मत के नाम पर विभाग क्या कर रहा है यह तो जग जाहिर है और मरम्मत के तौर पर स्थानीय थाना प्रभारी के द्वारा स्वखर्च पर चुना पुताई आदि करवा दिया गया है. अब यहाँ से निकल कर इसके कुछ पुलिस चौकियो का भी बतियाते हुवे जायजा ले लिया जाये.
पुलिस चौकी हनुमान फाटक –
कभी एक समय रहा था कि यह इलाका संवेदनशील हुआ करता था मगर जब से साक्षरता का स्तर बढ़ा है तब से गुरु इस इलाके में संवेदनशीलता भी खत्म के कगार पर है. अंग्रेजो के ज़माने की ईट से बनी इस चौकी पर छत के जगह पुराने ज़माने का छप्पर पढ़ा है. फोटुवा देख ले आप लोग और यही नहीं खपरईला की बनी इस चौकी के अन्दर से ऊपर रखी धरन लकड़ी तक सड गई है जो अक्सर नीचे गिर कर अपने सड़े होने का प्रमाणपत्र देती है. स्थिति यह है कि इस भवन को जर्जर हुवे लम्बा अरसा बीत चूका है मगर आज तक विभाग को इसकी मरम्मत की चिंता नहीं हुई है और का बताये साहेब मरम्मत के नाम पर चुना पानी भी करवाने के लिए विभाग कई बार सोचता है. इस चौकी के अन्दर जाने पर अहसास हुआ की हमारी रक्षा के सौगंध लेकर इसके नीचे बैठने वाले को खुद अपनी रक्षा हेतु भगवान को याद करना होता होगा. कही नीचे बैठे है और ऊपर से ऊपर वाला नीचे आये तो सीधे ऊपर नहीं तो चोट चपाट चौचक लगेगी.
अब भैया बतियावत बतियावत आपो लोग थक गयल होइबा ता कल बतियाईब कि और कुल पुलिस चौकी का का हाल बा. और साहेब हम तो कहा रहा की हम खाली बतियाते है. उ काका कहते रहे न कि बतिया है कर्तुतिया नाही. मतलब बात है खाली काम नहीं है. तो भैया हम तो बतिया चुके अब का करे बतियाने के सिवा कुछो करहु न सकते है. हा अगर डीजीपी साहेब या आई जी साहेब चाहे ता जरुर कुछ न कुछ कर सकते है. भैया बतिया ता साफ़ है कि कई पुलिस थाना और चौकी ऐसी है जिसमे स्वयं आदमी असुरक्षित रहता है, अब जब हमारी सुरक्षा का जिम्मा उठाये लोग ही असुरक्षित है ता भैया कैसे सुरक्षा होई. देखे भाई अब हम बतियाना बंद करते है. और अगली कड़ी में बतायेगे कि का हाल है आदमपुर पुलिस चौकी और मछोदरी पुलिस चौकी का. तब तक भैया विचार किया जा सकता है.
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