नुरुल होदा खान
बलिया. सिकंदरपुर कस्बे में जब 9 मुहर्रम का अखाड़ा सुबह कर्बला से उठ कर जैसे ही महाबीर स्थान पहुची तभी वहां मौजूद दूसरे समुदाये के तरफ के किसी शरारती तत्व ने पत्थर फेंक दिया जिस से अफरा-तफरी के माहौल बन गए . इसमें सबसे आश्चर्य की बात यह है कि दोनों वर्गो के तरफ से पर्याप्त सुरक्षा हेतु प्रशासन को पहले से ही आग्रह किये जाने की बात सामने आई है. इसके बावजूद भी पर्याप्त सुरक्षा बल देने में शायद प्रशासन असमर्थ रहा और अचानक शरारती तत्वों ने माहोल को गर्म करने की एक असफल साजिश किया. यह साजिश इस कारण असफल हो गई कि दोनों संप्रदाय के संभ्रांत लोगो ने मौके पर स्थिति को तत्काल और तत्परता के साथ नियंत्रित कर लिया अन्यथा स्थिति गंभीर होने में समय नहीं लगता.
पुलिस महकमा भी वहां मौजूद था मगर स्थिति को वास्तविक नियंत्रित दोनों संप्रदाय के सभ्य लोगो ने ही किया. इस बीच अखाड़े के लोगों का कहना है कि हमने पहले ही डीएम एवं SP बलिया से पूरी सुरक्षा बल की व्यवस्था करने का आग्रह किया था यहाँ सबसे गौरतलब बात यह है कि लगभग हर साल ही दो बार माहोल को गरमाने का असफल प्रयास यहाँ होता रहा है. महावीर झंडे के दौरान और मुहर्रम के दौरान. इन सबके बावजूद समझ से परे यह बात है कि क्षेत्र में तैनात LIU की टीम आखिर क्या कर रही है जो आज तक इसकी रिपोर्ट नहीं तैयार कर पाई जी आखिर कौन वह लोग है जो यहाँ का माहोल गर्म करने के फिराक में है और इससे क्या फायदा है उनका.? एक बार तो दीपावली पर भी यहाँ का माहोल गर्म करने का असफल प्रयास हुआ था और तत्कालीन पुलिस अधीक्षक अनीस अहमद ने शिकंजा कसना शुरू कर दिया था और जाँच में कुछ सफेदपोशो के नाम सामने आने की उम्मीद होने लगी थी और इस दौरान सफेदपोशो के बीच खलबली सी मच गई थी. मगर इसी दौरान पुलिस अधीक्षक अनीस अहमद का स्थानांतरण हो गया और शायद जाँच भी ठंडी हो गई.
अब एक बड़ा सवाल यह उठता है कि आखिर इस प्रकार की घटना बार बार क्यों होती है और कौन वह शरारती तत्व है जो इस प्रकार की घटना कारित करते है और आखिर उनको किसका संरक्षण प्राप्त है जो इस प्रकार की घटना के बाद भी उनकी हिम्मत बढ़ी रहती है क्योकि प्रशासन स्तर पर लगभग हर बार कड़ी कार्यवाही हुई है. यहाँ तक की इस प्रकार की घटना के को रोकने के लिये आरोपियों पर गंगेस्टर और रासुका जैसी कार्यवाही भी हुई है मगर फिर भी शरारती तत्वों के अन्दर ऐसी हिम्मत आज भी है जो इस प्रकार का प्रयास कर रहे है. सच माने में इसकी एक उच्च स्तरीय जाँच होना चाहिये और ऐसे लोगो को बेनकाब होना ज़रूरी है जो समाज को दो हिस्सों में बाटने की साजिश करते है. आखिर किसी ग्रामीण क्षेत्र में ऐसी कटुता घोलने का किसको फायदा होगा और क्या कही कोई इसका राजनैतिक उपयोग तो नहीं कर रहा है.
जो भी हो मगर प्रशंसा के पात्र क्षेत्र के दोनों वर्गो के वह संभ्रांत लोग है जिन्होंने गंगा जमुनी तहजीब की मिसाल कायम रखते हुवे क्षेत्र को किसी तनाव की आग में झुलसने से बचा लिया. मगर प्रशासन को इस तरफ ध्यानाकर्षण आवश्यक है. किसी सम्बंधित थानेदार का स्थानांतरण अथवा एक दो को लाइन हाज़िर करने से इस प्रकार की घटना पर अंकुश नहीं लग सकता है बल्कि ऐसी घटनाये और बलवती हो सकती है क्योकि नया आने वाला अधिकारी को क्षेत्र एवं क्षेत्रवासियों को समझने में लगभग एक से दो महिना निकाल देगा जो कि स्वाभाविक भी है और तब तक मामला ठंडा पड़ जाता है.
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