मेरठ. गुरु का स्थान सदैव से पूज्यनीय रहा है. यह स्थान स्वयं भगवान भी नहीं ले पाया था क्योकि शिक्षा एक सेवा होती थी. गुरु के एक बार कहने पर शिष्य अपना अंगूठा तक काट कर दे चूका है इसका इतिहास गवाह है और ऐसा शिष्य आज इतिहास में अजर अमर है. शिक्षा जब तक सेवा भाव था तब तक शिक्षक भी पूज्यनीय होते थे, मगर समय ने करवट लिया और अचानक ही यह सेवा की जगह शिक्षा एक व्यवसाय हो गया. कान्वेंट स्कूल अथवा प्राइवेट स्कूल में शिक्षा अचानक बिकने लगी और शिक्षक एक व्यवसाई जैसा हो गया. जब सेवा का बदलाव व्यवसाय में हुआ तो मानवीय मूल्यों का हरण तो होना ही है और ऐसा शुरू हो गया, जब देखिये तब इन प्राइवेट स्कूलों के अध्यापको द्वारा छात्र छात्राओ को अमानवीय तरीके से मारने पीटने का समाचार आना शुरू हो गया जो अनवरत आज भी जारी है.
छुट्टी होने के बाद जब बच्चा लंगड़ाता हुआ अपने घर पंहुचा तो परिजनों को आप बीती बताया. परिजनों ने स्कूल में जाकर उस ज़ालिम शिक्षक से पूछा कि आखिर क्या गलती किया था मेरे बेटे ने तो शिक्षक ने बहुत आराम तलबी दिखाते हुवे कहा नहीं कोई ख़ास गलती नहीं किया था बात मामूली सी थी और मुझसे गलती हो गई. इतना सुनते ही परिजन और आग बगुला हो गये और प्रिंसिपल से घटना के सम्बन्ध में शिकायत किया. प्रिंसिपल ने इसको स्वयं देखने की बात कहकर परिजनों को शांत किया और घर भेज दिया. समाचार लिखे जाने तक परिजनों के तरफ से पुलिस में कोई तहरीर नहीं दिया गया है. स्थानीय थाना प्रभारी ने बताया कि घटना संज्ञान में नहीं थी. अभी तक कोई तहरीर नहीं आई है और जैसे ही तहरीर परिजन देंगे हम कड़ी क़ानूनी कार्यवाही करेगे.
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