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जाने क्यों भड़का गुस्सा ? इस बार खुद क्यों पिट गये एमएनएस कार्यकर्ता?

उमेश गुप्ता.

मुंबई। मुंबई में उत्तर भारतीयों के साथ मारपीट की खबरें अकसर आती रहती हैं। मराठी अस्मिता की राजनीति करने वाली शिवसेना और एमएनएस हमेशा से यूपी और बिहार से मुंबई आने वाले लोगों के खिलाफ रहीं हैं। बड़ी संख्या में होने के बावजूद मुंबई में रह रहे उत्तर भारतीयों शायद ही कभी मारपीट की घटनाओं को लेकर कभी कोई प्रतिक्रिया दी हो, लेकिन शनिवार को जब एमएनएस के कार्यकर्ता फेरी लगाने वाले उत्तर भारतीयों से मारपीट करने आए तो वे खुद पिट गए। फेरीवालों ने डरने या भागने के बजाय उनका सामना किया और जमकर उनकी पिटाई भी कर डाली। लोग हैरान हैं कि आखिर एमएनएस की ‘गुंडागर्दी’ का डर एकाएक क्यों खत्म हो गया और फेरीवाले भागने के बजाय लड़ने पर क्यों उतारू हो गए?

आखिर क्यों भड़का गुस्सा.

राज ठाकरे ने महाराष्ट्र में अतिक्रमण हटाने के लिए फेरीवालों को शहर से हटाने की मांग करते हुए राज्य सरकार को 15 दिन का वक्त दिया था। ठाकरे ने कहा था कि अगर सरकार ने यह काम नहीं किया तो वह खुद अपने स्तर पर करेंगे। 16वें दिन से ही एमएनएस कार्यकर्ताओं द्वारा फेरीवालों से मारपीट और उनका सामान फेंकने की खबरें सामने आने लगीं। इसी क्रम में कई एमएनएस कार्यकर्ता मलाड स्टेशन के बाहर बैठे फेरीवालों को हटाने पहुंचे और गुंडागर्दी शुरू कर दी। इस बार दांव उल्टा पड़ गया और भागने के बजाय फेरीवाले भी मुकाबला करने उतर आये। फेरीवालों ने एमएनएस कार्यकर्ताओं को जमकर पीट दिया।

लगे हत्या की कोशिश के आरोप

एमएनएस कार्यकर्ताओं की पिटाई करने वाले फेरीवालों पर हत्या की कोशिश के आरोप लगाए गए और बाद में सात फेरीवालों को गिरफ्तार कर लिया गया। सुशांत नाम के एक कार्यकर्ता के सिर में गहरी चोट आई, जिसे आधार मानकर यह मामला दर्ज किया गया। मारपीट के आरोप में 18 एमएनएस कार्यकर्ताओं को भी गिरफ्तार किया गया है। इस मामले में एक और एफआईआर कांग्रेस नेता संजय निरूपम पर भी दर्ज हुई है। निरूपम पर फेरीवालों को भड़काने और बिना इजाजत सभा करने का आरोप लगा है।

संजय निरूपम ने कहा था ‘लड़ो’

दरअसल कांग्रेस नेता संजय निरूपम ने शनिवार को एक सभा करके फेरीवालों से अत्याचार के खिलाफ लड़ने की बात कही थी। निरूपम ने फेरीवालों से कहा था, ‘अगर कोई कानून अपने हाथ में लेता है और पुलिस आपकी मदद के लिए नहीं आती, तो आपको भी कानून हाथ में लेने का हक है।’ इस तरह संजय निरूपम ने फेरीवालों से चुपचाप न सहते रहने और आवाज उठाने को कहा था। संजय निरूपम का यह कहने कि अगर आपको कोई नुकसान पहुंचाए और कानून को हाथ में ले तो अपने हित में फेरीवालों को भी कानून हाथ में लेने का अधिकार है, एक भड़काने वाला बयान माना जा रहा है। लेकिन निरूपम के समर्थक कह रहे हैं कि इस तरह तो महाराष्ट्र से फेरीवालों को भगाने की बात करने वाले राज ठाकरे के बयान को भी लोगों को उकसाने वाला बयान माना जाना चाहिए और उन पर भी कार्रवाई होनी चाहिये।

बहरहाल, कानून हाथ में लेने का हक न किसी राजनीतिक दल के कार्यकर्ताओं को है, न ही किसी नागरिक को। लेकिन ताजा घटना से उत्तर भारतीयों के बीच बड़ा संदेश जरूर गया है। वही इस बात को भी बल मिला है कि किसी के ऊपर अत्याचार की यदि पराकाष्ठ पार हो जाती है तो उसका उत्तर मिलना स्वाभाविक हो जाता है. वही राज ठाकरे को भी अब इस बात का अहसास होना चाहिये कि कानून सबके लिये एक बराबर है चाहे वह आम फेरीवाला हो या फिर ठाकरे परिवार का कोई सदस्य. कानून के नज़र में सब एक बराबर है.

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