लखीमपुर खीरी// सिंगाही = जाति-बिरादरी इनके लिए मायने नहीं रखती। करीब चालीस साल से ये दशहरा पर रावण, मेघनाथ और कुंभकरण के पुतले बनाते आ रहे हैं। पूरे मनोयोग से ये अपने हुनर का प्रदर्शन करते हैं। हम बात कर रहे हैं सिंगाही के नफीस अहमद उर्फ गुडडू की। इनके घर मे लगभग चालीस साल से कस्बे में होने वाली रामलीला के लिए रावण, मेघनाथ और कुंभकरण के पुतले बनाने की जिम्मेदारी बाखूबी निभाते आ रहे हैं। आज भी त्यौहार को लेकर इनमें उतना ही उत्साह है जितना पहले हुआ करता था। पूरे साल ये शिद्दत से त्यौहार का इंतजार करते हैं।
इनका मानना है कि सभी की रगों में एक ही खून दौड़ रहा है। मजहब तो बस ईश्वर तक पहुुंचने का अलग अलग जरिया है। इनके नाम पर दिलों को नहीं बांटा जा सकता। वे यह भी बताते हैं कि पुतला बनाने की कला अपने अब्बू जमीर उसताद से सीखी। गुडडू उनके काम में हाथ बंटाते थे, जमीर उसताद का तो छ साल पहले इंतकाल हो गया लेकिन उनके हुनर को आगे बढ़ाने में लगे हैं। इस कला को जमील उसताद अपने बेटे गुडडू को सौंप गये थे जिसे गुडडू इस काम को बाखूबी निभाते आ रहे हैं। गुडडू कहते हैं कि पुतले बनाने का हुनर अब खत्म हो रहा है। बांस, कागज, सुतरी, डोरा और तामड़ा से बनने वाले एक पुतले में कम से कम १५ हजार का खर्च आता है।
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