अपना मुल्क हमेशा से गंगा जमुनी तहजीब का एक मरकज़ रहा है. दुनिया यहाँ की एकता और अखंडता का उदहारण देती थी. यही अपना मादरे वतन है जहा पर कभी न अस्त होने वाला ब्रिटिश साम्राज्य का सूर्य पहली बार अस्त हुआ था. यह इस मुल्क की एकता और अखंडता का एक बड़ा उदहारण है. हिन्दू, मुस्लिम, सिख, इसाई आपस में है भाई भाई का नारा इस मुल्क के पैदा होने वाले बच्चे को सिखा कर बड़ा किया जाता रहा है. न जाने किसकी नज़र लगी हमारे इस हस्ते खेलते और मुस्कुराते वतन को कि अचानक नफरतो के सौदागरों ने यहाँ नफरत का कारोबार शुरू कर दिया. दिन तारीख तो किसी को नहीं पता मगर इन नफरतो के सौदागरों ने इस मुल्क में नफरत के बीज बोने शुरू कर दिये. वक्त के साथ इसको पानी हवा देने वाले इन नफरतो के सौदागरों पर प्रशासन का काफी समय तक शिकंजा कसता रहा और नफरतो के सौदागर अपनी फसल को काट नहीं पा रहे थे, मगर शायद अब प्रशासनिक अमला भी जईफ होकर थक गया है और उसकी पकड़ ढीली पड़ गई तभी तो नफरतो के सौदागरों ने इसकी फसल के तौर पर अख़लाक़ के साथ बर्बरता किया. शायद प्रशानिक अमले के अन्दर पुरानी ताकत जागी और इस नफरत के सौदे का मुह वही कुचल देने का एक सफल प्रयास हुआ.
मगर शायद वहा नफरत का सौदा कुछ बच गया और अपने रखवालो के बल पर अपना दवा इलाज करवा कर खुद को तंदुरुस्त किया. इत्तिफाक से वह भी वक्त आया जब गंगा जमुनी तहजीब के मरकज़ में एक और निशान छोड़ने का वक्त इस वर्ष आया और दशहरा एवं मुहर्रम एक साथ पड़ गया. इस दौरान नफरतो के सौदागरों ने पुरे प्रदेश में नफरतो को तकसीम करने की कोशिश किया. काफी जगह नाकाम हुआ यह सौदा कई शहरों और कस्बो में खूब बिका और खूब नफरतो का तांडव हुआ. जिसके फल यह आये की गंगा जमुनी तहजीब या फिर तानी बाने की तहजीब का यह सूबा कई जगहों पर दो हिस्सों में तकसीम नज़र आया. हमारा मकसद आपको किसी फिलासफी से रूबरू करवाने का नहीं है बल्कि एक सच का ऐसा आईना दिखाना है जिसको देख कर आप खुद समझ जायेगे की नफरतो के सौदागरों को कितनी सफलता मिली है.
मौजूदा मामला है कौशाम्बी जिले के मूरतगंज का जहा नफरतो के सौदागरों की फसल खूब फली और नफरतो के बोये गये बीज की पहली फसल निकली और कट कर इन सौदागरों के आरामगाहो में पहुची. मसाला मुहर्रम की 9 तारीख की रात का है. रात से ही नफरतो के सौदागरों ने अपने नफरत का सौदा सजाना शुरू कर दिया था. ताजिया दफ़न हेतु हर वर्ष की तरह जिला प्रशासन और पुलिस प्रशासन ने तेयारी कर लिया था. सुबह होते ही हर वर्ष की भाति इस वर्ष भी किसी घटना दुर्घटना से बचने हेतु हर वर्ष की भाति इस वर्ष भी बिजली की तार काट दिये गये थे. यह हर वर्ष होता है कि बिजली के तार काट दिये जाते है और जैसे ही सभी ताजिये गुज़र जाती है वैसे ही दुबारा इन तारो को जोड़ दिया जाता है. बस सुबह होते ही नफरतो के सौदागरों ने अपनी सजाई गई दुकानों से माल बेचना शुरू कर दिया और एक दल विशेष के कुछ कथित कार्यकर्ता और नेताओ ने आकर ज़बरदस्ती बिजली का तार जुडवाना शुरू कर दिया और बिजली ज़बरदस्ती चालू करवा दिया. ताजियादारो को जब इसकी खबर हुई तो दूसरा वर्ग भी मौके पर पंहुचा और शांति से होने वाले इस तांडव को देखता रहा. इस दौरान पुलिस प्रशासन केवल मूकदर्शक की भूमिका में नज़र आ रहा था. बिजली के तार जोड़ कर लाइन को चालू करवा कर नफरतो के इन सौदागरों ने आने वाली घटना दुर्घटना का शायद मज़ा लेने के लिये वही अपने डेरे जमा लिये. दूसरा वर्ग भी मूकदर्शक बना हुआ था जैसे पुलिस प्रशासन मूकदर्शक बना था. वक्त ताजिया निकलने का हुआ तो सूत्र बताते है कि दुसरे वर्ग के बड़े बुजुर्गो ने एक बैठक आहूत किया और उस बैठक में कुछ एक फैसले के बाद यह निर्णय हुआ कि सभी लोग दुबारा अलम के दफ़न के बाद बैठेगे. सूत्र बताते है कि उस बैठक में यह निर्णय लिया गया कि ताजिया जुलूस में किसी तरह की छेड़खानी पर कोई प्रतिउत्तर नहीं देना है. ताजियों का जुलूस निकला और नफरतो के सौदागरों ने बाज़ार में खड़े होकर खूब मौज लेने का प्रयास किया. ताजिया जुलूस के नवजवानों में कोई जज्बा आये उससे पहले ही बुजुर्गो ने उनको समझा रखा था. नफरत का बीज काम न आया और शांति के साथ मुहर्रम गुज़र गया.
पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार मुस्लिम वर्ग की एक बैठक फिर होती है जिसमे आस पास के इलाके के लोग शामिल होते है. इस क्षेत्र पर नज़र डाले तो लगभग 35% मुस्लिम आबादी वाले इस इलाके में 80% दुकानदार हिन्दू वर्ग के है. सदियों से इस क्षेत्र में हिन्दू मुस्लिम एकता के साथ सब कारोबार चलता रहा है. नफरतो के सौदागरों ने इस एकता पर चोट करना चाहा था और हमारे सूत्रों के अनुसार वह कामयाब भी हो गये है. सूत्रों के अनुसार मुहर्रम बाद हुई बैठक में मुस्लिम वर्ग ने फैसला किया है कि हम कारोबारी रिश्ता दुसरे वर्ग से तोड़ देंगे. नफरतो के सौदागरों मुबारक हो नफरत का आपका बीज सिर्फ एक तरफ नहीं फसल दिया दोनों तरफ दे गया. सूत्रों के अनुसार इस बैठक में निर्णय लिया गया कि हम मूरतगंज के किसी अन्य वर्ग के दुकानदारों (जिसमे अधिकतर साहू और गुप्ता समाज के दुकानदार है) के दुकानों से कोई खरीदारी नहीं करेगे. अगर कोई मुस्लिम वर्ग का ग्राहक इन दुकानदारो के यहाँ से खरीदारी करता है तो उसके ऊपर सामाजिक बहिष्कार से लेकर अर्थ दंड तक लगेगे. हमारे सूत्रों ने तो यहाँ तक जानकारी प्रदान किया है कि इस सामाजिक बहिष्कार का असर इस क्षेत्र की दुकानदारी को पड़ा है और कुछ लोगो ने इस प्रतिबन्ध को तोड़ने का प्रयास किया तो उनको अर्थ दंड भरना पड़ा है.
और तो और इसमें सबसे अधिक जो अचंभित करने वाली बात है वह यह है कि हमारे सूत्रों के अनुसार इस निर्णय और ऐसी बैठक की जानकारी थाना प्रभारी और क्षेत्रीय लेखपाल से लेकर तहसीलदार और अन्य अधिकारियो तक को है. मगर साहेब किसी ने इस नफरत की बढती खाई को पाटने का प्रयास नहीं किया. कोई इनमे से ऐसा नहीं आया सामने जो दोनों वर्गों को आमने सामने बैठा कर समझा बुझा कर समझौते करवा पाता और एक दुसरे के गले मिलवा पाता. साहेब बस क्षेत्र में शांति स्थापित है मगर नफरत का जो नश्तर इस क्षेत्र के आम जन के बीच रख दिया गया है इन नफरतो के सौदागरों के द्वारा उस नश्तर को हटाने की ज़रूरत किसी और को नहीं महसूस हुई. शायद क्यों महसूस होती साहेब उनको इस क्षेत्र में कानून व्यवस्था स्थापित करने हेतु काम करना है. कोई किसी दुकानदार से सौदा ले या न ले इस काम को वह ज़बरदस्ती नहीं करवा सकते है. नफरतो की ज़हरीली फसल का बीज क्षेत्र में आम जन के पेट में जाकर लहू बनकर नफरत का ज़हरीला लहू लोगो के अन्दर आ जाये इसका उनके कार्य से क्या मतलब है.
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