क्या प्रधानमंत्री को आचार संहिता से छूट दी जा रही है? क्या चुनाव आयोग नेताओं की रैलियों के हिसाब से तारीख़ तय करने लगा है? सिस्टम की विश्वसनीयता दाँव पर लगाई जा रही है। नया इंडिया में पुराना इंडिया वाला दाँव चला जा रहा है। इतनी बहस, इतनी मारा मारी के बाद अगर संस्थाये आज़ाद होकर काम करती नहीं दिखेंगी तो क्या फायदा । अलग क्या हुआ ? ऐसा कभी हुआ है क्या ? यह पूछेंगे तो साठ और सत्तर का कोई किस्सा ले आयेगे। आप लोग भी चुप रहिए। वरना आईटी सेल वाले दीवाली मना देंगे।
क्या वाक़ई 16 तारीख़ को बड़ा एलान होने वाला है? उसी के होने देने के लिए आज गुजरात की तारीख़ों का एलान नहीं हुआ? व्हाट्स अप में कई दिनों से ऐसी सूचनाएँ आ रही थीं कि यही होगा। गुजरात के चुनाव का एलान 18 या उसके बाद होगा। मैंने ध्यान नहीं दिया। ये तो राजनीति का पुराना पैटर्न है। चुनाव के वक्त रेवड़ियों की घोषणा करना। फिर प्रधानमंत्री यह भी कह देते हैं कि वे चुनाव के लिए राजनीति नहीं करते। राजनेता यह सब कहते-करते रहे हैं। लेकिन क्या अब इस खेल में चुनाव आयोग भी पार्टनर है ? क्या सच है, वो तो झूठ बोलने वाले ही जानते होंगे। आयोग की विश्वसनीयता बची रहे, हम यही दुआ करेंगे।
साभार रविश कुमार –
(इस लेख को रवीश कुमार की फेसबुक वॉल से लिया गया है)
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