नई दिल्ली / कहा जाता है कि राजनैतिक ऊंट किस करवट कब बैठ जाये किसी को पता नहीं होता है. इसके कई उदहारण है जैसे सपा के कभी कद्दावर नेता रहे अम्बिका चौधरी का बसपा में जाना, पुश्तैनी कांग्रेसी कार्यकर्ता होने का दावा करने वाली रीता बहुगुणा का भाजपा में जाना और नसीमुद्दीन का बसपा से मोह भंग होना आदि कई ऐसी ही राजनैतिक घटनाये है जो अपने अपने दलों के साथ आम राजनितिक जानकारों को भी झटका दे गई. अब जो राजनितिक गलियारे में अभी चर्चा का विषय है वह है वरुण गाँधी का अपने परिवार राहुल सोनिया से बढती नज्दिकिया. यह नजदीकिया राजनितिक गलियारे में विशेष रूप से चर्चा का विषय है. नेहरू -गांधी परिवार के दो सदस्य केन्द्रीय मंत्री मेनका गांधी और उनके बेटे वरुण गांधी 2019 के चुनाव से पहले कभी भी कॉंग्रेस में शामिल हो सकते हैं। ऐसी चर्चाऐं देश के राजनीतिक गलियारों और मीडिया दफ्तरों में जोर शोर से चल रही हैं। अगर ऐसा हुआ तो भाजपा को तो झटका लगेगा लेकिन कॉग्रेस को ताकत मिलेगी, उसका नेतृत्व भी राहुल – वरुण के हाथों में पहुंच जाएगा। संभव है नई पीढ़ी को पूरी तरह जिम्मेदारी देने और आगे बढ़ाने के लिए मेनका गांधी व सोनियां गांधी सक्रिय राजनीति से दूर रहकर मार्गदर्शक की भूमिका में रहें।
चर्चा है कि भाजपा में लगातार नजरअंदाज किये जा रहे वरुण अपनी बहन प्रियंका के बुलावे और वक्त की नजाकत को देखते हुए कांग्रेस का दामन थाम सकते हैं। सूत्रों की मानें तो कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के पार्टी की कमान मिलते ही वरुण को कांग्रेस में सम्मानजनक पद देकर महत्व दिया जा सकता है।
काग्रेस सूत्रों की माने तो प्रियंका ने वरुण से घर वापसी के बाबत बात की है। वरुण के प्रियांका के साथ मधुर रिश्ते की बात जगजाहिर है। ऐसे में संभव है कि भाजपा में अपनी उपेक्षा से नाराज वरुण घर वापसी कर लें। वहीं, वरुण ने राहुल गांधी के खिलाफ कभी भी किसी रैली या सभा में सीधा हमला नहीं बोला है। राहुल ने भी विपक्षी दल में रहने के बावजूद भाई वरुण या चाची मेनका के खिलाफ कभी सीधा मोर्चा नहीं खोला।
वरुण के रिश्ते सोनिया गांधी से भी अच्छे हैं। इसलिए इस चर्चा को और दम मिल रहा है कि जल्द ही वरुण कांग्रेस को देश व यूपी में मजबूती देने के लिए राहुल गांधी के साथ आएंगे। कांग्रेस सूत्र बताते हैं कि राहुल गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष बनते ही वरुण गांधी की कांग्रेस में एंट्री हो सकती है। अगर ऐसा हुआ तो लगभग साढ़े तीन दशक बाद नेहरू-गांधी परिवार में एकता आ सकती है।
मालूम हो कि भाजपा में वरुण गांधी साइड लाइन चल रहे हैं। वह ने तो पार्टी की किसी सभा में शामिल हो रहे हैं और न ही किसी अन्य कार्यक्रम में। वरुण को पता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के रहते उन्हें भाजपा में अहम ओहदा नहीं मिल सकता। ऐसे में वरुण अब नए नाव की सवारी कर सकते हैं और यह नाव कांग्रेस से अच्छी कोई और नहीं हो सकती।
जब तक राजनाथ सिंह पार्टी अध्यक्ष थे, तब तक वरुण गांधी की पार्टी में सम्मानजनक स्थिति थी। वह पार्टी के महासचिव रहने के साथ ही पश्चिम बंगाल और असम के प्रभारी भी थे। अब स्थितियां बदली हैं। अमित शाह के हाथ में पार्टी की कमान आते ही वह साइड कर दिए गए। उनसे राज्यों का प्रभार वापस ले लिया गया। राष्ट्रीय महासचिव के पद से भी हटा दिया गया।
उत्तर प्रदेश में वरुण गांधी तराई के पीलीभीत, सुलतानपुर, लखीमपुर खीरी के साथ ही इससे सटे इलाकों में अच्छी पकड़ है। यदि वरुण कांग्रेस में शामिल होते हैं तो यूपी में कांग्रेस को संजीवनी मिल सकती है। राहुल गांधी वरुण के भरोसे भाजपा को यूपी में पटखनी दे सकते हैं। अगर वरुण ऐसा कदम उठाते हैं तो उनकी मॉ और नेहरू गांधी परिवार की छोटी बहू यानि केन्द्रीय मंत्री मेनका गांधी भी भाजपा छोड़ सकती हैं।
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