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क्लीन एंड ग्रीन कानपुर कैंट जी रहा है घुप्प सियाह अँधेरी सडको और छुट्टा पशुओ के साथ.

मनीष गुप्ता // समीर मिश्रा

कानपुर. कानपुर के कन्टोमेन्ट बोर्ड की लापरवाही से कैंट की सड़कों पर छाया हुआ है अंधेरा जहां एक तरफ हमारे भारत के प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री जी कानपुर शहर को साफ सुथरा और स्वच्छ क्लीन कैंट और ग्रीन कैंट बनाने मे जुटे हुए हैं वहीं एक तरफ उनके सारे सपने को हमारे कानपुर के कन्टोमेन्ट बोर्ड उनकी बातों को हवा में उड़ाए पड़े हैं कहीं रोड पर बड़े-बड़े गड्ढे तो कहीं खराब सड़कें तो कहीं बड़ी है बदबू और बड़ी है सड़ाध कैंट के लोगों का गंदगी से जीना दुश्वार तो कहीं आवारा जानवर जैसे की सांड़ गाय सूअर आवारा कुत्तों ने अपना अपना डेरा डाल कर रखा है जानकारी के अनुसार नवंबर व दिसंबर के महीने में कुत्तिया अपने बच्चों को जन्म देती है 4 से 6 बच्चे को जन्म देती है अपने बच्चों के बचाव में व आसपास के रहने वाले वा रोड पर छोटे बड़े वाहन चालक को रात के अंधेरे में दौड़ा कर काट लेती है जिसके कारण रोड पर चलने वाले व्यक्ति को एक बड़ी समस्या से गुजरना पड़ता है हमारे कानपुर के कन्टोमेन्ट बोर्ड की बड़ी लापरवाही से रोड पर लगी खं म्बों की लाइटें रात के सुनसान सर्दियों के अंधेरे में बंद रहती है और सड़के घुप्प अँधेरी दिखाई पड़ती है जिसके कारण रोड पर चलने वाले लोगों को अक्सर ही चुटहिल भी होना पड़ता है इस रात के ठंडे मौसम में चोर भी अपनी कला का प्रदर्शन करने में कामयाब रहते हैं ऐसे में क्या हमारा कानपुर का कैंट कैसे और कब स्वच्छ और सुन्दर हो पायेगा ये सोचनीय विषय है. ज़िम्मेदार कोई मुह खोलकर बोलने को तैयार नहीं है और कर्तव्यों की पूर्ति करना तो बहुत दूर की बात हो गई.

इसके अलावा बची खुची कसर पूरी कर देते है सड़को पर टहलते आवारा छुट्टे पशु. ये सडको के बाहुबली अक्सर ही अपने बहुबल का प्रयोग सडको पर ही करने लगते है. इनके बल प्रयोग से ये स्वय तो कही कुछ घायल नहीं होते मगर चलते फिरते राहगीर ज़रूर अपना हाथ पैर तुडवा लेते है. इन छुट्टा पशुओ को पकड़ने के अपने अलग विभाग के कर्मियों को कभी क्षेत्र में काम करते नहीं देखा जाता है. इसका साफ़ कारण सिर्फ एक है, जब बैठे मिले खाने तो कौन जाये कमाने. अब इस तर्ज़ पर इस विभाग के पास जवाब बड़ा पुख्ता है जिसका कोई जवाब नहीं होता है. सिंपल सा शब्द इस विभाग के करता धर्ता देते है कि साहब क्या करे आस्था का प्रश्न जुडा होता है तो आस्था भी देखना पड़ता है और लोग आस्था के नाम पर इस काम का विरोध करते है. अब देखना होगा कि इस आस्था का रोना रो रहे इस विभाग को कब काम करने की नसीहत इनके उच्चाधिकारियों द्वारा कब मिलता है.

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