लखनऊ. बुजुर्गो ने कहा है कि पूत कपूत तो क्यों धन संचय और पूत सपूत तो क्यों धन संचय. एक समय था जब इस देश में श्रवण कुमार जैसे भी बेटो ने जन्म लिया जिसने अपने कंधे पर बैठा कर अपने माता पिता को तीर्थ यात्रा करवाया. समय बदला जैसे ही मदर डे या फिर फादर डे आता है वैसे ही इस कलयुग में भी लाखो करोडो लोग सोशल मीडिया पर ऑनलाइन श्रवण कुमार बने दिखाई देते है. एक कडवी सच्चाई यह भी है कि इस ऑनलाइन श्रवण कुमारो के केवल 50 प्रतिशत भी उतर कर सडको पर दिखाई दे जाये तो इस देश में समाज के चेहरे पर बदनुमा दाग साबित होता वृद्धाश्रम ही सब बंद हो जाये और हर बुढापा अपने हर के आगन में अपने बच्चो के साथ मुस्कुराता नज़र आता. मगर अगर सच्चाई को देखा जाये तो ऐसा कुछ नहीं है. आज समाज इतना तेज़ रफ़्तार से बढ़ता जा रहा है कि बुढ़ापे को हम कही न कही एक श्राप समझने लगते है. इसी श्रापित सोच के कारण आज जिन बच्चो को हम पाल पोस के बड़ा करते है उनको उनके पैरो पर खड़ा कर देते है जिनकी उंगली पकड़ कर हम चलना सिखाते है, जिनको बोलना सिखाते है वही बड़े होकर अपने माँ बाप को एक बोझ समझने लगते है. हम जानते है कि ऐसे सोच वाले बहुतेरे नहीं है बल्कि यह काबुल में गधे की मिसाल जैसे ही है मगर इनकी करतूत से इंसानियत ही शर्मसार हो जाती है. अब मौजूदा घटना क्रम को ही देख ले और खुद फैसला करे कि इसको क्या कहें। अमानवीयता की पराकाष्ठा। या फिर जिम्मेदारियां उठाने से मुंह मोड़ लेना, करोड़ों का बिजनेस है लेकिन, 100 साल की एक बूढ़ी मां, बेटे को बोझ लगती है और बेटा अपनी बूढी माँ को चारबाग स्टेशन पर छोड़ के चला जाता है.
चारबाग रेलवे स्टेशन पर मिली 100 साल की वृद्ध महिला का एक करोड़पति बेटा अपनी बूढ़ी मां को बीते 1 अक्टूबर को ग्वालिर से लखनऊ छोड़ कर भाग गया। भूख प्यास से बेहाल मां बेहोश हो गयी। लेकिन निष्ठूर बेटा तो जा चुका था। भला हो एक नेक इंसान का जिसने बुजुर्ग महिला की खराब हालत देखकर हेल्पेज इंडिया संस्था को बुलाया। इस संस्था ने बुजुर्ग महिला को 1 महीने तक अपने पास रखा और इलाज करवाया। इसके बाद प्रयास शुरू हुआ बुजुर्ग महिला के परिजनों की तलाश का। लंबी जद्दोजहद के बाद और सोशल साइट्स की मदद से बुजुर्ग महिला के बारे में जानकारी मिली। इसके बाद बूढ़ी मां को उसकी बेटी एक महीने बाद अपने घर ले गई।
करोडपति पति की विधवा ने बिताये ऐसे संकट भरे दिन
एक महीने के बाद अपनी बेटी के पास पहुंची बुजुर्ग महिला ने जो बताया वह समाज के मुंह पर एक करारा तमाचा है। बेटी और मां के मुताबिक उसका ग्वालियर में फलों का बड़ा कारोबार है। बेटा आज एक सफल व्यापारी है। करोड़ों का टर्नओवर है। बुजुर्ग महिला का पोता भी मोबाइल शॉप का मालिक है। यह सब कुछ इन दोनों को विरासत में मिला। अर्थात बुजुर्ग महिला के पति यह सब छोडकऱ गये थे। लेकिन मां के लिए भोजन की व्यवस्था इस बेटे और उसके पोते से करोडो के वरासत में मिले कारोबार से नहीं हो पा रही थी। जिस औलाद को पैदा किया उसको 9 माह कोख में रखा उसके लाड उठाये उसको बोलना सिखाया उसको चलना सिखाया उसी बेटे और पोते ने बुजुर्ग महिला को घर से निकाल दिया।
मुश्किल से चिकित्सको ने बचाया जान
ग्वालियर की रहने वाली चंपा ने बताया कि बीते 1 अक्टूबर 2017 को चारबाग रेलवे स्टेशन पर उन्हें उनका बेटा यह कहकर छोड़ गया कि यहां बैठो थोड़ी देर में आते हैं। इसके बाद बेटा नहीं आया और भूख प्यास से ये बुज़ुर्ग महिला होकर बेहोश हो गयी। इसके बाद एक यात्री ने निजी संस्था को सूचित किया। संस्था ने महिला को बलरामपुर हॉस्पिटल में एडमिट करवाया, जहां उसकी जान बच सकी। चंपा ने बताया कि वो अपने बेटे के साथ ग्वालियर से वहां आई थी। चंपा की एक बेटी वाराणसी में रहती है। बड़ी बेटी लखनऊ में अपने बच्चों के साथ रहती है।
करोडो के मालिक की विधवा मगर मिले पास में 140 रूपये
हेल्पेज इंडिया के मुताबिक बुजुर्ग महिला के दुपट्टे में ग्वालियर से लखनऊ का रेल टिकट और 140 रुपए बंधे मिले। चंपा को कोई गंभीर बीमारी नहीं है। सिर्फ बुढ़ापे की वजह से याद्दाश्त और चलने-फिरने में दिक्कत हैं। उनके मुताबिक चंपा ने उन्हें बताया था कि उनके पास करोड़ों की जायदाद है। लेकिन बेटा खाना तक नहीं देता था।
सोशल मीडिया पर मिला चम्पा की बेटी को उसका पता
जब बुजुर्ग महिला की हालत थोड़ी सुधरी तो चंपा की फोटो और डिटेल्स फेसबुक-ट्विटर आदि सोशल मीडिया पर डाली गयी। एफ.एम. रेडियो स्टेशन पर अनाउंस करवाया गया। एक महीने की मेहनत के बाद एक महिला सामने आयी जिसने उन्हें अपनी मां बताया। वह 5 नवंबर को मिलने हॉस्पिटल पहुंची। वो खुद 85 साल की है। चंपा उन्हीं के साथ अस्पताल से छुट्टी मिलने के बाद लखनऊ उनके घर चली गयी हैं।
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