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गुल्लक के पैसों से लड़की ने किया रात में उपकार, बहुत दिनों से थी चाहत

गोपाल जी,

जिस उम्र में बच्चे खुद की फारमाइशों को पूरा कराने की खातिर गुस्सा हो जाते हैं, उस उम्र की एक छात्रा ने ठंड से ठिठुर रहे लोगों की मदद कर मानवता का परिचय दिया। दरअसल एक 11 वर्षीय छात्रा अपनी स्कूल से लौट रही थी तभी उसकी नजर फुटपाथ पर ठंड से ठिठुर रहे गरीब पर पड़ी। जिसके बाद उसे उन लोगों की तकलीफ देखी नहीं गई और उसने इन लोगों की मदद करने का फैसला लिया। अपने घर पहुंचते हुए पॉकेट खर्च के लिए दिए जाने वाले पैसे और गुल्लक में जमा पैसे को तोड़ते हुए कबल की दुकान पर पहुंची जहां उसने 50 कंबल खरीदे और गरीबों में बांट दिए। जब 11 वर्षीय छात्रा को कंबल बांटते हुए लोगों ने देखा तो उसकी प्रशंसा करते हुए कहां की इतनी छोटी सी उम्र में ही इस छात्रा ने मानवता का संदेश दिया है जो काबिले तारीफ है।

रात को मां संग निकली बेटी

आपको बता दें कि पटना के नेट्रोडेम एकेडमी में 6वीं कक्षा में पढ़ने वाली छात्रा जब सारा शहर मध्य रात्रि में सो रहा था तभी वो अपनी मां सौन्या सिसोदिया के साथ उन गरीबों और असहायों को कंबल उढ़ाने में व्यस्थ थी जो असहाय और गरीब कंबल के बिना ठंठ में ठिठुर रहे थे। जब इस बारे में उससे बातचीत की गई तो उसकी मां ने कहा कि बचपन से ही हमारी बेटी को दूसरे की मदद करने की भावना रहती है। राजधानी पटना के बोरिंग रोड निवासी व व्यवसाई संतोष सिसोदिया की पुत्री काश्वी पटना के नेट्रोडेम एकेडमी में 6वीं कक्षा की छात्रा है। काश्वी का बचपन से ही गरीबों और असहायों के प्रति लगाव रहा है। काश्वी को जब कभी अपने माता-पिता और नाते-रिश्तेदारों से कुछ पैसे मिलते थे तो वो उन पैसों को खर्च करने की बजाए एक बड़े गुल्लक में जमा करती जाती थी।

स्कूल आते-जाते पैदा हुई थी इच्छा

एक दिन दोपहर में स्कूल से आते वक्त काश्वी की नजर ऐसे कई गरीबों और असहायों पर पड़ी जिनके पास गर्म कपड़े नहीं थे। इसे देख इस लड़की का मन कचोट गया। घर पहुंचे अपनी मम्मी सौन्या सिसोदिया से जिद कर अपनी गुल्लक को तुड़वाया और उसमें से निकले रुपए से वो मां के साथ बाजार जाकर पच्चीस से ज्यादा कंबल खरीद लाई और मध्य रात्री जब पटना शहर सोया था तो काश्वी अपनी मां के साथ निकल पड़ी। पटना जंक्शन और गांधी मैदान और अन्य जगहों पर काश्वी को जहां-जहां बिना किसी गर्म कपड़े के ठंठ से ठिठुरते गरीब व असहाय दिखाई पड़े। वो उन्हें कंबल उठाते आगे बढ़ती चली गई। यहां तक की ठंठ से कपकपाते नींद में सोए गरीबों और असहायों को भी उसने उन्हें बिना उठाए कंबल उढ़ाकर मानवता की एक नई मिशाल पेश कर दी।

प्रशासन को भी याद आना चाहिए

नाबालिग काश्वी का ये कदम पटना में दस साल पहले की वो रातें याद करा गया जब तत्कालीन डीजीपी आनंद शंकर के आह्वाहन पर पटना पुलिस और खुद डीजीपी सर्द रातों में पटना की सडकों पर निकते थे और पुलिस द्वारा इकट्ठा किए गए गर्म कपडों और कंबलों को गरीब और असहायों के बीच बांटा करते थे। आज के बच्चे अपने अभिभावकों से मिले पैसे को जहां क्षण भर अपने और यार- दोस्तों के बीच उड़ा देते हैं, वहीं 11वीं कक्षा की छात्रा काश्वी ने इस सबसे इतर एक मानवीय कार्य कर समाज और आज के छात्र-छात्राओं के बीच एक अनूठी मिशाल पेश की है।

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