लखीमपुर खीरी// साहब वो ऐसी हिम्मती थी कि बाघ सामने होता था पर मजाल है एक कदम भी पीछे हट जाए. पता नहीं कितने शिकारियों को पकड़ा पुष्पा ने. न जाने कितने टाइगर ऑपरेशनों को अंजाम दिया. ये बताते हुए महावत इद्रीस की आंखे नम हो जाती हैं. इद्रीस आज दुधवा में नहीं हैं पर पुष्पा की मौत से ग़मज़दा जरूर हैं. दुधवा टाइगर रिजर्व में सैलानियों को बरसों तक घुमाने और जंगल के दुश्मनों से लोहा लेने वाली हथिनी पुष्पाकली ने रविवार की रात आखिरी सांस ली.
पुष्पा की आंखे हमेशा के लिए बन्द हो गईं. पर पुष्पा की यादें और बहादुरी के किस्से उसकी मौत के बाद लोगों के जेहन और दुधवा के सन्नाटे भरे सुनसान जंगल में तैर रहे हैं. दुधवा टाइगर रिजर्व के गैंडा पुनर्वासन केंद्र में सलूकापुर हाथी बाड़े में पुष्पाकली का कई महीनों से इलाज चल रहा था. पर पुष्पाकली की सांसें अचानक थम गईं. करीब 86 साल की पुष्पाकली 1986 में दुधवा टाइगर रिजर्व में आई थी. तभी से चाहे शिकारियों से मोर्चा लेना हो या सैलानियों को घुमाना हो, पुष्पा ने अपनी जिम्मेदारियों को बखूबी निभाया.
याद करते हुए तराई नेचर कन्जर्वेशन सोसायटी के सचिव वाइल्डलाइफ से जुड़े रहे डॉ वीपी सिंह कहते हैं कि गजब की हिम्मती और समझदार थी वो हथिनी. एक बार तो उसने हम लोगों की बाघ से जान ही बचा ली थी. पुष्पाकली को 45 साल की उम्र में बाराबंकी से लाया गया था. उसके साथ गंगाकली और जमुनाकली भी आईं थीं. दुधवा के डिप्टी डायरेक्टर महावीर कौजलगी कहते हैं,’पुष्पाकली ने सैकड़ों टाइगर ऑपरेशनों को बखूबी अंजाम दिया. जान पर खेल पुष्पा ने ड्यूटी निभाई. कुछ सालों पहले से वो रिटायर हो गई थी. बीमार थी. हमनें काफी इलाज किया. पर बूढ़े शरीर ने साथ नहीं दिया. हम सब दुधवा के स्टाफ पुष्पा की मौत से दुखी हैं.
दुधवा में पुष्पाकली की मौत से महावत से लेकर चारा कटर तक दुखी हैं. मौत के बाद अब पुष्पा की यादें ही बची हैं. बचपन से दुधवा आ रहे लखनऊ निवासी सिद्धार्थ सिंह कहते हैं,’हमें याद नहीं कितनी ही बार पुष्पाकली की पीठ पर बैठ हमने जंगल सफारी की. बहुत बार बाघ के दर्शन भी कराए पुष्पा ने.’
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