जावेद अंसारी.
सूरत. गुजरात चुनावों में नतीजे आ चुके है और भाजपा ने पूर्ण बहुमत से सरकार भी बना लिया है, वही दूसरी तरफ एक बार फिर evm को विपक्ष ने संदिग्ध बताया. मतदान के पहले से ही गुजरात में evm पर सवालिया निशान लगने लगे थे. इस बीच नतीजो की घोषणा के साथ ही पाटीदार के युवा नेता हार्दिक पटेल ने एक बार फिर evm पर सवालिया निशाँन लगाया. यही नहीं पाटीदार नेता हार्दिक पटेल ने यह तक कहा है कि गुजरात में हार्दिक नहीं हारा है बल्कि जनता हारी है, गरीब हारा है, बेरोजगार हारा है, किसान हारा है और जीत evm की हुई है. हम इसके खिलाफ न्यायालय की शरण लेने और उन विधानसभा के नतीजो पर पुनः मतगणना करवाने का आग्रह करेगे जहा जीत हार का अंतर केवल और केवल 200-250 मतों का रहा है. इसी के साथ पाटीदार आन्दोलन दुबारा शुरू करने की बात भी कही है
ज्ञातव्य हो कि गुजरात विधानसभा चुनावो में जब नतीजे आये तो भले ही चुनाव में बहुमत भाजपा को मिला हो मगर युवा शक्ति ने अपना दमखम दिखा दिया है. एक तरफ कद्दावर चेहरों में कांग्रेस के राहुल गाँधी के साथ पाटीदार समाज के युवा नेता थे तो दूसरी तरफ भाजपा की पूरी राजनितिक सेना थी और स्वयं प्रधानमंत्री इन चुनावों में चुनावी दौरे कर रहे थे. इसके उपरांत भी जिस बड़ी जीत की आशा भाजपा कर रही थी वह धरातल पर सच से परे धरी रह गई थी और कांग्रेस ने बढ़िया प्रदर्शन करते पिछले सदन से कही अधिक सीट जीत लिया.
राहुल का यह रूप शायद भाजपा के पेशानी पर बल डालने में काफी महत्वपुर्ण है. आने वाले लोक सभा चुनावो में राहुल की भूमिका पर प्रकाश भी डाल रहा है. इस भाजपा की जीत में लगभग दस सीट ऐसी भी रही है जहा पुनः मतगणना की मांग हो रही है क्योकि उन सीट पर हार जीत का अंतर केवल दस सीट का है. यदि यह समीकरण ध्यान में रखे तो मत प्रतिशत में जहा भाजपा के पास विगत दो दशक से अधिक के किये गये कार्यो की पोथी थी तो कांग्रेस के पास धरातल का सच था. कही न कही शायद उस विकास पर सच हावी होता दिखाई दिया तभी तो राजनीती के वह दावपेच भी प्रयोग हुवे जो किसी उदहारण में नहीं रहा होगा. कभी पकिस्तान तो कभी कहा जाऊंगा जैसे शब्दों ने चुनावी माहोल को काफी गर्म कर रखा था.
जो भी हो कही न कही इस जीत पर भाजपा को एक दिमागी टेंशन अवश्य दे दिया होगा कि जमीनी हकीकत में जब कई राज्यों के मुख्यमंत्री से लेकर देश के प्रधानमंत्री तक को चुनावों में उतर कर एक दल हेतु मत माँगना पड़े यह एक सोचनीय विषय है, यदि देखा जाये तो जिस हिसाब से भाजपा द्वारा अपनी शक्ति पूरी तरह झोक दिया गया था गुजरात चुनावों में उसके बाद तो भाजपा को लगभग 80-90% सीट जीत कर आना चाहिये था, जबकि मतों के प्रतिशत का अंतर जीत हार में बहुत अधिक न होकर मात्र २% में बहुमत और अल्पमत का निर्णय दे बैठा है. उधर पाटीदार समाज वापस अपने आन्दोलन को शुरू करने का मन बना चूका है. अभी तक बिना किसी राजनितिक बैनर अथवा झंडे के आन्दोलन कर रहे पाटीदार सरकार की नींद में खलल डाल रहे थे अब तो एक राजनैतिक झंडा भी साथ में होगा और कुल 80 विधायको का समर्थन भी मिलने की उम्मीद है. अब देखना होगा कि क्या उन दस सीट पर पुनः मतों को गिना जायेगा अथवा मांग केवल एक मांग बन कर रह जायेगी. जबकि चुनाव आयोग अपनी जगह अडिग खड़ा है और evm मुद्दे पर किसी की सुनने को तैयार नहीं है.
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