संजय ठाकुर/सुहैल अख्तर.
मऊ. कहते है न मस्जिद को जानते है न शिवालो को जानते है, वह जो भूखे पेट है वह निवालो को जानते है. शायद इसी तर्ज़ पर मौसम भी असर करता है. मौसम ठण्ड का हो तो सर्दी हर मज़हब को लगती है. हर शख्स को महसूस होती है. मगर देखा जाये तो गरीबो को ठण्ड में कम्बल बाटने वाले अथवा गर्म कपडे बाटने वाले लोग अक्सर इस फलसफे से दूर हो जाते है और कैमरों के चमक के बीच लोग कम्बल अथवा गर्म कपडे कम बाटते है बल्कि खबरों की सुर्खिया ज्यादा बटोरते है.
मगर इसी पूर्वांचल में एक नवजवान ऐसा भी है जो गरीबो को मोटी और अच्छी क्वालिटी की रजाई दे रहा है. वह भी बिना कैमरों की चकाचौंध के. बिना किसी मीडिया हाउस को बताये.खुद अपने सहयोगियों के साथ रात के अँधेरे में जब हांड कापती ठण्ड होती है तो निकल पड़ता है मऊ की सुनसान सडको पर और उसकी नज़रे तलाशती है जो गरीब दिखा उसके ऊपर एक नई रजाई ओढा कर आगे चले जाना.
आज रात हम कुछ कार्य हेतु अपने वाहन से ही शहर के बाहर गए हुवे थे, वापसी में रात के एक पार कर चुके थे, सडको के किनारे बसे गावो से आवारा कुत्तो की भौकने की आवाज़े भी ठण्ड की कराहट बता रही थी. इसी बीच हमारी नज़र तीन स्कार्पियो पर पड़ी जो इतनी आहिश्ता आहिश्ता चल रही थी जैसे उनको किसी की तलाश हो, साथ में एक बड़ा लोडर भी था. जो किसी चीज़ से भरा था.
कौतूहलता वश हम उन वाहनों के पीछे हो गये. देखा गाड़िया सभी एक मंदिर के पास रुकी और उसमे से एक नवजवान अपने दो अन्य साथियों के साथ उतरा. मंदिर के पास ठण्ड से खुद को बचाने के लिये कुछ गरीब फटे चिथड़ो में खुद को गर्म महसूस करने की कोशिश कर रहे थे. नवजवान ने लोडर से रजाई उतरवाई और खुद एक एक कर वहा लेते लगभग 20-25 लोगो के ऊपर डाली, कोई उस नवजवान के आगे हाथ जोड़ कर उसका धन्यवाद् दे रहा था तो कोई उसको दुआये दे रहा था.
ये नवजवान मऊ सदर विधायक मुख़्तार अंसारी का बड़ा बेटा और पूर्वांचल में यूथ आइकान बनकर उभरा अब्बास अंसारी था, हमने रजाई पर पास जाकर गौर किया तो रजाई बेहतरीन क्वालिटी के रूई से बनी हुई थी. इसके बाद हमारी कौतूहलता और बढ़ गई और हम सुबह उजाला होने तक उन वाहनों के लगभग साथ में थे. वह नवजवान मंदिर गया, वहा सबको रजाई बाटी, मदरसों में बाटी सडको पर जी रहे लोगो को बाटी और फिर बस अड्डे पर गरीबो को रजाई बाटी. देखते देखते हम लोगो के सामने ही सैकड़ो रजाई तकसीम हो चुकी थी.
इस दौरान अब्बास की नज़र हमारे ऊपर पड़ गई. हमसे बातचीत में हमारा प्रश्न था कि लोग कम्बल या गर्म कपडे बाटते है और मीडिया फुटेज खाते है आप इस ख़ामोशी से ये नेक काम कर रहे है इसका क्या मतलब निकाला जाये. तो बेबाकी से उस नवजवान के जो लफ्ज़ थे वह रूह तक समां गये. अब्बास ने कहा संजय जी, उनका जो पैगाम है वह अहल-ए-सियासत जाने हमारा तो पैगाम-ए-मुहब्बत है जहा तक पहुचे. हम दिखाने के लिये काम नहीं करते है. ये खिदमत-ए-खल्क हैं, बस हमारी दुआ है उस रब्बुल आलमीन से कि वह हमारी इस छोटी और अदनी सी कोशिश को कबूल फरमाये.
वाकई आज समझ आया की आखिर विरोधी भी इस नवजवान की तारीफ क्यों करते है, समाज सेवा का जज्बा लिये इस नवजवान के कार्यो को किसी मज़हब अथवा क्षेत्र की राजनीती के चश्मे से देखने वालो को एक खामोश जवाब है यह नवजवान का काम.