मऊ. कहते है गरीबी का कोई धर्म नहीं होता, तकलीफ का कोई मज़हब नहीं होता, दर्द की कोई ज़ात नहीं होती और गरीबो की मदद करने वाला इस सबसे ऊपर होता है. वह न धर्म देखता है न ज़ात, न मस्जिद देखता है न मंदिर और न शिवाला, उसकी नज़र में सब एक जैसे होते है. शायद यही वजह है कि कोई मुसीबत ऐसे गरीबो के मददगारो का बाल भी बांका नहीं कर पाती है. विगत कुछ दिनों से कुछ मज़हब के नाम पर राजनीत करने वाले लोग किसी के अच्छे काम की तारीफ नहीं कर रहे थे बल्कि उसकी कमिया निकाल रहे थे. कहते थे कि अब्बास केवल एक धर्म विशेष के नेता बन रहे है.
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