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हमने देखे गजब नजारे मेले में..

कनिष्क गुप्ता.

इलाहाबाद : हमने देखे गजब नजारे मेले में, लाए थे वो चांद सितारे ठेले में। भूखे बेच रहे थे दाना, प्यासे बेच रहे थे पानी। सूनी आंखे हरी चूड़ियां, सपने बेच रहे थे ज्ञानी। जी हां। कवि देवेंद्र पांडेय की यह पंक्तियां माघ मेले में पर पूरी तरह फिट तो नहीं बैठतीं, लेकिन उसका अंश जरूर देखने को मिलता है।

आस्था से भरे माघ मेले का मनमोहक वातावरण। माथे पर चंदन का तिलक लगाए करीब नौ साल का गोलू पिता की अंगुली पकड़कर मेले से लौट रहा था। बांध के नीचे उतरते ही उसकी नजर एक ठेले नुमा दुकान पर पड़ी तो बोल उठा..पापा पिपिहरी। बिंदकी निवासी सरकारी नौकरी वाले पिता का बेटा गोलू कानवेंट स्कूल में तो पढ़ता है, लेकिन गांव के बच्चे बांसुरी को पिपहरी भी बोलते हैं। तो उसने भी जिद कर ली कि पिछली बार नहीं दिलाए, इस बार ले लीजिए सिर्फ एक। शायद उसके लिए पिपहरी चांद सितारे ही थे, जो ठेले पर सजे थे। मेले की कुछ दुकानों पर मौजूद छोटे-छोटे बच्चे कुछ न कुछ बेचते नजर आए। महिलाएं मां-बहनों के लिए सिंदूर, टिकुली और चूड़ियां बेच रहीं थी, लेकिन सभी के चेहरे खिले नहीं थे। श्रद्धालुओं को धर्म-अध्यात्म का हवाला देने वाले कई शख्स तरह-तरह की किताब बेचते वक्त ऐसा बोल रहे थे, जिसे सुनकर स्नानार्थी ज्ञानी मानकर सपनों को साकार करने वाली किताब खरीद लेते।

मौनी अमावस्या पर संगम स्नान की चाहत लिए कुछ श्रद्धालु नंगे पैर ही संगम की रेती पर चले जा रहे थे। रविवार की रात करीब तीन बज चुके थे। युवा, बुजुर्ग, महिलाएं, युवतियां हर किसी के मन में मां गंगा के आशीर्वाद की आकांक्षा नजर आ रही थी। सभी अमृत की तलब लिए आस्था की हिलोर से ओत-प्रोत थे। संगम में डुबकी लगाते वक्त भगवान भास्कर का उदय नहीं हुआ था, तो चंद्रमा को ही सूर्य मानकर अ‌र्ध्य दे दिया। मौन की डुबकी के साथ किसी ने अच्छी नौकरी तो किसी ने परीक्षा में पास होने और किसी ने परेशानी दूर करने की मन्नतें मांगी। मौन की डुबकी, मन की मन्नत और निश्छल मन की प्रार्थना पर मां गंगा ने भी अपने आंचल खोल दिए तो उन्हें आभास हुआ कि डुबकी के साथ ही ठंड दूर जाती। संगम के पावन तट पर राजा, रंक और फकीर जैसे सभी तरह के लोग एक साथ संगम में डुबकी लगा रहे थे। उनके लिबास से फर्क मालूम पड़ रहा था, लेकिन मां गंगा की गोद में सभी एक जैसे थे। कोई गिनती गिनकर डुबकी लगा रहा था तो कोई अनगिनत लेकिन जब बाहर निकलते तो बस यही बोलते.. गंगा मइया की जै।

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