अनिल कुमार
फुलवारी शरीफ, बीमा अस्पताल के तत्कालीन अध्यक्ष और वर्तमान में आईएमए के प्रदेश अध्यक्ष व पटना के जाने माने सर्जन डाॅक्टर सहजानंद प्रसाद सिंह समेत तीन चिकित्सक निगरानी ब्यूरो की जाँच में करीब 17 साल बाद दोषी करार दिए गए हैं और नामजद अभियुक्त बनाते हुए प्राथमिकी दर्ज की गई है । यह मामला फरवरी 2000 को निगरानी ब्यूरो में आया था।
13 नवंबर 1997 में तत्कालीन श्रम मंत्री रामदास राय और पटना के तत्कालीन डीएम राजबाला वर्मा जो अभी वर्तमान में झारखंड के मुख्य सचिव हैं, ने इन संस्थानों में औचक निरीक्षण किया था जिसमें भारी पैमाने पर अनियमितता पाई गई थी। निरीक्षण के दौरान साढ़े चार लाख की दवाएँ, एक्स रे मशीन, फिक्चर ,ईसीजी रौल एवं मशीन समेत दस उपकरण भी गायब पाये गये थे। जाँच में पता चला कि इन उपकरणों का उपयोग चिकित्सक निजी प्रैक्टिस में कर रहें थे । इसके बाद इस मामले की विस्तृत जाँच के लिए राज्य सरकार ने फरवरी 2000 मे निगरानी ब्यूरो को जाँच का जिम्मा दे दिया ।
निगरानी ब्यूरो ने जाँच में यह पाया कि फुलवारीशरीफ बीमा अस्पताल के अधीक्षक पिछले 13 साल से, भंडारपाल 8 साल से और चिकित्सक छः साल से एक ही स्थान पर जमे हुए थे । अपने मनमर्जी से इसे अस्पताल को चलाते थे । इस तरह से कई सबूत डाॅक्टर सहजानंद प्रसाद सिंह और अन्य तीन चिकित्सक के खिलाफ पाये गये हैं और इसी आधार पर इनलोगों पर कारवाई हुई है।
इस मामले के बारे मे जब आईएमए अध्यक्ष से पूछा गया तो उन्होंने बताया कि मुझे एफआईआर के बारे में कोई जानकारी नहीं है अगर मामला सही है तो मुझे फँसाने की साजिश हो रही है। इतने साल बाद मामले को उजागर कर बदनाम करने की कोशिश की जा रही है।
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