अन्जनी राय
मानव पर्यावरण को पालीथीन के अंधाधुंध प्रयोग से जिस तरह प्रदूषित करता जा रहा है उससे सम्पूर्ण वातावरण में जहरीली गैस घुलती जा रही है। आज के भौतिक युग में पॉलीथीन के दूरगामी दुष्परिणाम एवं विषैलेपन से बेखबर हमारा समाज इसके उपयोग में इस कदर आगे बढ़ गया है मानो इसके बिना उनकी जिंदगी अधूरी है। ऐसे में दुष्प्रभावों से अनभिज्ञ लोगों को जगाने की जरूरत है। तभी पालीथिन से छुटकारा मिल सकता है। नहीं तो हमारी मिट्टी इसी तरह ऊसर जहां होती रहेगी वहीं हमारी गायें पालीथिन के कूड़े कचरे में अपना खाद्य पदार्थ तलाशती रहेंगी।
पूरे देश में यह पालीथिन अपना एक महत्वपूर्ण स्थान बना चुका है। दुनिया के सभी देश इससे निर्मित वस्तुओं का किसी न किसी रूप में प्रयोग कर रहे हैं। सोचनीय विषय यह है कि सभी इसके दुष्प्रभावों से अनभिज्ञ हैं या जानते हुए भी अनभिज्ञ बने जा रहे हैं। पॉलीथीन एक प्रकार का जहर है जो पूरे पर्यावरण को नष्ट कर देगा। भविष्य में हम यदि इससे छुटकारा पाना चाहेंगे तो हम अपने को काफी पीछे पाएंगे। प्लास्टिक निर्मित वस्तुएं गरीब एवं मध्यवर्गीय लोगों का जीवनस्तर सुधारने में सहायक हैं, लेकिन वहीं इसके लगातार उपयोग से वे अपनी मौत के बुलावे से भी अनभिज्ञ हैं। यह एक ऐसी वस्तु बन चुकी है जो घर में पूजा स्थल से रसोईघर, स्नानघर, बैठक गृह तथा पठन-पाठन वाले कमरों तक के उपयोग में आने लग गई है। यही नहीं यदि हमें बाजार से कोई भी वस्तु जैसे राशन, फल, सब्जी, कपड़े, जूते यहाँ तक तरल पदार्थ जैसे दूध, दही, तेल, घी, फलों का रस इत्यादि भी लाना हो तो उसको लाने में पॉलीथीन का ही प्रयोग हो रहा है। वर्तमान समय में फास्ट फूड का काफी प्रचलन है जिसको भी पालीथिन में ही दिया जाता है। कुल मिलाकर पालीथिन हर जगह अपनी जगह बनाती जा रही है।
पालीथिन का आदी हुआ मनुष्य
आज मनुष्य पालीथिन का इतना आदी हो चुका है कि वह कपड़े या जूट के बने थैलों का प्रयोग करना ही भूल गया है। दुकानदार भी हर प्रकार के पॉलीथीन बैग रखने लग गए हैं। ग्राहक ने उसे पालीथिन रखने को बाध्य सा कर दिया है। लोगों की मानें तो यह प्रचलन चार पांच दशक पहले इतनी बड़ी मात्रा में नहीं था तब कपड़े, जूट या कागज से बने थैलों का प्रयोग हुआ करता था जो कि पर्यावरण के लिए लाभदायक था।
पालीथिन का दोबारा नहीं होता प्रयोग
पालीथिन या प्लास्टिक निर्मित वस्तुओं का एक बार प्रयोग करने के बाद दोबारा प्रयोग में नहीं लिया जा सकता है। लिहाजा इसे फेंकना ही पड़ता है। ऐसे में जहां देखिए वहां पालीथिन ही दिखाई देती है। यह संपूर्ण पर्यावरण को दूषित कर रही है।
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