अनिल कुमार :
बिहार में उपचुनाव एनडीए के लिए आफत बन कर आयी है । जब से उपचुनाव की तिथि की घोषणा हुई है ,तब से एनडीए में शामिल दलों में अपने अपने प्रत्याशी को खड़ा करवाने की होड़ मची हुई है ।
सबसे पहले अररिया लोकसभा का उपचुनाव के घोषणा होते ही जदयू के जोकीहाट से विधायक सरफराज अहमद ने विधानसभा से इस्तीफा देकर शनिवार को राजद की सदस्यता ग्रहण कर ली । अब वे अपने पिता और दिवंगत सासंद तस्लीमुद्दीन के द्वारा रिक्त हुए अररिया लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ने का घोषणा कर चुके हैं । इस कारण सरफराज अहमद का जदयू छोड़ना कोई आश्चर्य की बात नहीं है। क्योंकि ऐसे भी उनके पिता व दिवंगत सांसद तस्लीमुद्दीन राजद पार्टी के ही सदस्य थे । इस कारण सरफराज अहमद अपने पिता के सीट से चुनाव लड़ने के कारण जदयू पार्टी छोड़ कर राजद का दामन थाम लिए। क्योंकि जदयू बिहार में होने वाले उपचुनाव में अपना प्रत्याशी नहीं खड़ा करने की घोषणा कर चुकी है ।
लेकिन एनडीए के सहयोगी दल जदयू को छोड़कर बाकी दलों में सीट को लेकर घमासन मचा हुआ है । ऐसी आशा है कि इस उपचुनाव में एनडीए में शामिल घटक दल अपने उम्मीद नहीं पूरी होने पर एनडीए भी छोड़ सकते हैं । इस रेस में सबसे आगे रालोसपा (उपेन्द्र गुट) है, जिसने हालही में राजद व कांग्रेस पार्टी के साथ मिलकर बिहार में शिक्षा के गिरते स्तर को लेकर मानव श्रृंखला भी बनाया था । अभी इस पार्टी ने जहानाबाद विधानसभा उपचुनाव के लिए अपना दावा ठोका है । एनडीए के एक और सहयोगी दल हम पार्टी के अध्यक्ष व पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी भी जहानाबाद सीट पर अपना दावा कर रहें हैं । अगर हम पार्टी को जहानाबाद सीट नहीं मिली तो श्री मांझी एनडीए छोड़ सकते हैं ।
आज सुबह बिहार के मनेर से राजद विधायक भाई विरेन्द्र ने एक बार फिर यह कहकर सियासी हल्कों में हलचल मचा दिया कि एनडीए के करीब 21 विधायक राजद के संपर्क में हैं और ये सभी विधायक राजद नेता तेजस्वी यादव से मुलाकात भी कर चुके हैं। अब देखना यह है कि एनडीए अपना कुनबा कैसे बचाती है । क्योंकि जदयू का उपचुनाव नहीं लड़ने का फैसला आने वाले दिनों में भाजपा के लिए सिरदर्द साबित हो सकता है, क्योंकि एनडीए के कोई भी घटक दल अगर एनडीए छोड़ते हैं तो इसका ठीकरा भाजपा पर ही फूटेगा।
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