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नक्सली हमले में शहीद हुआ चिरैयाकोट का लाल धर्मेंद्र यादव

यशपाल सिंह

आजमगढ़. सुकमा नक्सली हमले में शहीद हुए चिरैयाकोट के दो साल से वहां तैनात थे। इस दौरान कई बार उनकी नक्सलियों से मुठभेड़ हुई। अक्सर वह नक्सलियों से मुठभेड़ के बारे में अपने परिवार को बताते रहते थे। मंगलवार को भी उनके घर फोन आया। मुठभेड़ की जानकारी मिली, और पता चला कि इस बार उनका बेटा शहीद हो गया। यह खबर सुनते ही पिता बेहोश हो गए। किसी तरह उन्हें होश में लाया गया तो पूरे गांव की भीड़ जुट गई।

जवान की की पत्नी और तीन बच्चे इलाहाबाद के सीआरपीएफ कैम्प के आवासीय कालोनी में रहते हैं। घर पर जानकारी होते ही जवान का बड़ा भाई उन्हें लेने के लिए इलाहाबाद रवाना हो गया है। गांव में मातमी सन्नाटा फैल गया है। पिता खेदन यादव और मां प्रभावती देवी का रोते-रोते बुरा हाल था। 30 वर्षीय धर्मेंद्र 2004 में भर्ती हुए थे। जवान का एक बेटा व दो बेटियां हैं।

खेदन यादव के तीन पुत्र हैं। इसमें बड़ा बेटा महेन्द्र, दूसरे नम्बर पर जितेन्द्र और सबसे छोटा धर्मेन्द्र यादव उर्फ बबलू थे। नक्सलियों के हमले में जवान धर्मेन्द्र उर्फ बबलू के शहीद होने की सूचना हेड क्वार्टर से पिता को दोपहर में मिली। खबर मिलते ही वह बेहोश होकर जमीन पर गिर पड़े। यह देख परिजन अवाक रह गए। जब पता चला कि उनका लाल अब इस दुनिया में नहीं है तो परिजनों में कोहराम मच गया। जवान का भाई जितेन्द्र इलाहाबाद में जवान की पत्नी उमा देवी, बड़ा बेटा 11 वर्षीय विकास, 8 वर्षीय संध्या और सोनम को लेने के लिए रवाना हो गया। इलाहाबाद के सीआरपीएफ कैम्प स्थित आवासीय कालोनी में रहकर जवान के बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं

दो माह पूर्व परिजनों से मिला था धर्मेंद्र

छत्तीसगढ़ से दो माह पूर्व धर्मेंद्र छुट्टी लेकर घर आए थे। मां प्रभावती देवी, पिता खेदन यादव और दोनों भाई महेन्द्र व जितेन्द्र के परिवार के साथ रहकर कुछ दिनों तक खुशियां बाटी थीं। जाते समय जवान ने अपनी मां से शीघ्र आने का भरोसा दिया था। गर्मी की छुट्टियों में जवान के आने की बाट उसकी मां देख रही थी। घटना ने एक पल में सारी खुशियां मातम में बदल दी। गांव में आते ही सामाजिक कार्यों में लेते थे हिस्सा

भेडि़याधर गांव में धर्मेंद्र आने के बाद ज्यादातर अपना समय ग्रामीणों के साथ बिताते थे। गांव में उत्सव और हर सामाजिक कार्यों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते थे। छुट्टियों के दौरान उसके घर पर मित्रों और ग्रामीणों का तांता लगा था। ज्यादातर घरों में चूल्हे तक नहीं जले हम लोगों को डेड बॉडी का इंतजार है.

दो माह पूर्व परिजनों से मिला था धर्मेंद्र

छत्तीसगढ़ से दो माह पूर्व धर्मेंद्र छुट्टी लेकर घर आए थे। मां प्रभावती देवी, पिता खेदन यादव और दोनों भाई महेन्द्र व जितेन्द्र के परिवार के साथ रहकर कुछ दिनों तक खुशियां बाटी थीं। जाते समय जवान ने अपनी मां से शीघ्र आने का भरोसा दिया था। गर्मी की छुट्टियों में जवान के आने की बाट उसकी मां देख रही थी। घटना ने एक पल में सारी खुशियां मातम में बदल दी। गांव में आते ही सामाजिक कार्यों में लेते थे हिस्सा

भेडि़याधर गांव में धर्मेंद्र आने के बाद ज्यादातर अपना समय ग्रामीणों के साथ बिताते थे। गांव में उत्सव और हर सामाजिक कार्यों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते थे। छुट्टियों के दौरान उसके घर पर मित्रों और ग्रामीणों का तांता लगा था। ज्यादातर घरों में चूल्हे तक नहीं जले हम लोगों को डेड बॉडी का इंतजार है

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