मोदी सरकार खतरे में, विपक्ष एकजुट, जाने अविश्वास प्रस्ताव पर सीटो का समीकरण

तारिक आज़मी.

वर्ष 2014 को सत्ता में आई भाजपा सरकार ने अच्छे दिन का वायदा किया था, इन अच्छे दिनों के बीच आखिर सत्तारूढ़ दल के बुरे दिन शुरू हो गये और अब तक हुवे उपचुनावों में भाजपा को 95% सीट पर भाजपा को हार का मुह देखना पड़ा. इस दौरान जहा NDA के घटक दल उसके विरोध में आने लगे वही उसके खुद के भी कई सांसद सरकार के खिलाफ खड़े नज़र आये. इसी बीच वाईएसआर कांग्रेस और TDP द्वारा आज संयुक्त रूप से NDA से अलग होने के बाद अविश्वास प्रस्ताव लाने की तैयारी है.

उपरी तौर पर देखने में संख्या बल के आधार पर तो भाजपा का पलड़ा भारी नज़र आ रहा है जिसमे दिखाई देता है कि सरकार को अपने घटक दलों का साथ भी नहीं चाहिये बल्कि 269 का जादुई आकडा भाजपा केवल अपने बल पर ही छू लेगी. मगर भीतर खाने की खबरों पर नज़र दौड़ाये तो कहानी कुछ और ही नज़र आती है. भाजपा के अन्दर चल रहा गृह युद्ध किसी से छुपा भी नहीं है. शत्रुधन सिन्हा से लेकर कीर्ति आजाद और वरुण गाँधी से लेकर श्यामा प्रसाद तक की बात करे तो ये एक गुट सरकार में रहते हुवे सरकार के खिलाफ बयानबाजी से कभी बाज़ नहीं आया. अगर इन मतों को सिर्फ अलग करे तो भाजपा के खाते में 264 सीट नज़र आ रही है. ये सिर्फ उन सीट को किनारे करने की बात है उनके अन्य समर्थक अगर पार्टी से बगावत करते है तो संख्या और नीचे नज़र आयेगी.

इधर दूसरी तरफ पूरा विपक्ष एकजुट होता नज़र आ रहा है और विभिन्न मुद्दे पर सरकार को घेरते हुवे एक साथ एक प्लेटफार्म पर खड़ा दिखाई दे रहा है. इस विपक्ष की एकता का जीता जागता उदहारण सपा और बसपा की नजदीकिया है जब बसपा ने फूलपुर और गोरखपुर उपचुनावों में सपा को समर्थन देकर सत्तारूढ़ दल को अचंभित कर दिया था और उसका निष्कर्ष निकला कि सत्तारूढ़ दल दोनों सीट हार गया.

सब मिलाकर ये निष्कर्ष निकलता है कि भाजपा सरकार बचाने के लिये कही न कही से घटक दलों पर निर्भर हो गई है और उसको अब अपने घटक दलों से मदद की आस है. यह पहली बार होगा कि घटक दलों के समर्थन से सरकार बचेगी और यदि ऐसा होता है तो सरकार पर घटक दल हावी होंगे. अब देखना है कि अविश्वास प्रस्ताव जिसके आज पेश होने की संभावना है सदन में कितना टिक पाता है और सरकार के खिलाफ उसकी पार्टी के ही सांसद क्या बगावत करते है. जो भी हो मुद्दा रोचक तो है…….

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