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महँगाई की मार ने त्योहार का मजा किया किरकिरा, आखिर होली के है कितने रंग

फारूख हुसैन

लखीमपुर खीरी // हर वर्ष की तरह इस बार भी होली की रौनक बाजारों में देखने को नहीं मिल रही है और न ही किसी तरह के उत्साह जिसके कारण यह लगने लगा है की शायद अब किसी भी त्योहारों से किसी को कोई मतलब नहीं रह गया है। परंतु ऐसा नहीं है ज्यों ज्यों महँगाई की मार आमजन पर पड़ रही है उसके कारण अब हमारे परिवार के जिम्मेदार लोग केवल जैसे तैसे त्योहारों को निपटाने की सोचते हैं कि कैसे भी यह त्योहार निपट जाये ।

परंतु महँगाई का फर्क केवल बड़ो पर ही नहीं वरन् बच्चो पर भी पड़ा है कि जहाँ वह कुछ दिनों पहले से ही न ये कपड़े और अपने लिये रंग बिरगीं पिचकारी मुखोटो आदि  के लिये अपने  मम्मी पापा से जिद करके पूरा करवा लेते थे वही घर के हालात और महँगाई की मार देखकर वह कुछ बोलना या फिर इस तरह से कहें कि वह जिद करना जैसे भूल चुके हैं और कुछ समय के लिये ही वह रंग खेलकर और गुझिया मिठाई  खाकर अपना यह प्यारा होली का त्योहार मना लेते हैं और कुछ लोग अब इस त्योहार में दिलचस्पी भी नहीं लेते हैं क्योकि महँगाई की मार ने त्योहार का मजाक किरकिरा करके रख दिया है ।

परंतु दूसरी ओर कुछ लोग अपनी पुरानी परम्परा को जरूर निभाते हैं और होलिका दहन करते है और दूसरे दिन वो ज्यादा नहीं तो थोड़ा जरूर रंग खेलते है फिर चाहे वो गुलाल ही क्यो न हो और फिर वह दुनियादारी निभाने के लिये अपने आस पडोश रिश्तेदार दोस्तो के घर जाकर गुझिया खाते है ,परंतु इस  त्योहार पर अधिकतर लोग नशे का सेवन करते हैं उनका कहना है कि यह भी एक रिवाज है जो हमारे पूर्वजो की देन है और नशा करना भी जरूरी है ।जो कि बिल्कुल गलत है क्योकि इस सोहार्द के त्योहार पर अक्सर देखने को मिलता है कि लोग त्योहार के बहाने झगड़ा फसाद करते है और कभी कभी यह छोटा सा झगडा काफी बड़ा रूप ले लेता है जो कि सोचनीय बन जाता है और सच्चे मायने मे   देखा जाये तो हमे त्योहारों पर फिर चाहे जो त्योहार हो हमे किसी तरह का  नशे का सेवन नही करना चाहिये और दूसरो को भी नशे का सेवन करने से रोकना चाहिये ।

आखिर होली के है कितने रंग

वैसे हमारे इस होली के पर्व के उसके अनरूप ही कई रंग हैं वैसे हमारे हिंदू धर्म के अनुसार होली के दिन दिपावली के बाद होली भारत का दूसरा बड़ा त्योहार है परंतु सभी लोग धर्म व सप्रदाय से ऊपर उठकर होली सौहार्द के साथ मनाते हैं ।आपको बता दे कि शीत श्रतु के बाद बंसत श्रतु का आगमन होता है और होली के आगमन होने पर बंसत श्रतु का आगमन हो जाता है ।चुकि सभी जानते हैं कि होली केवल भारत मे ही नहीं मनायी जाती है बल्कि और देशो मे भी मनायी जाती है परंतु वहां होली मनाने का तरीका अलग होता है जैसे कि न्यूयार्क मे होली के अवसर पर परेड निकाली जाती है और इस अवसर पर डांस आदि कई प्रतियोगिताये आयोजित की जाती हैं जिसमे सभी धर्मो और सप्रदाय के लोग भागीदारी करते हैं ।ब्रिटेन स्थित लोचेटर शहर तो होली के लिये बहुत ही  प्रसिद्ध है ।नेपाल के कई क्षेत्रों में होली में पानी से भरे गुब्बारे फेकने की परम्परा है और इस परम्परा को “लोला”कहा जाता है ।दक्षिण अमेरिका एव॔ कई अन्य देशो में होली को “फगवा” के नाम से जाना जाता है ।यहां होली में ढोलक एवं मजीरे के साथ होली गायन होता है ।लोग एक दूसरे पर हमारे यहां के जैसे ही रंग और पानी डालते हैं परंतु उनमे खाश बात यह है कि उनके रंग हमारे यहां के क्रतिम रंग न होकर प्राक्रतिक रंगो का हो उपयोग किया जाता रहा है और वहां होली आने के एक महीने पूर्व ही होलिका का पौधा “अरंडी का पौधा” रोपा जाता है और फिर इस पौधे को होलिका दहन के दिन जलाया जाता है ।होली का त्योहार केवल अपने आप मे ही एक मिसाल भी है जो एकता का प्रतीक भी माना जाता है ।

परंतु दूसरी ओर 

होली का पर्व नजदीक आते ही एक बार फिर से मिलावट का कारोबार भी शुरू हो गया है जिसमें  खाद्य सामग्री में मिलावटी रंगो और वस्तुओं का इस्तेमाल कर मुनाफा कमाने में कुछ व्यापारी जोरों से जुट गए हैं ।जिसके कारण जिले में जगह जगह छोपेमारी भी शुरू कर दी गयी हैं क्योंकि सभी जानते हैं कि
त्योहार के दौरान बनने वाली मिठाइयों से लेकर अन्य खाद्य सामग्रियों में खुलेआम मिलावट की जाती है जिसमे सबसे ज्यादा मिलावट रंगो मे ही की जाती है और उससे शरीर को भी बहुत ही नुकसान है  परंतु जिले के कुछ क्षेत्रों में अभी अधिकारियों ने कोई सुध  नहीं ली है जिसके कारण व्यापारियों का सीना चौड़ा कर खुलेआम मिलावट कर भारी मुनाफा कमा रहें हैं ।
उल्लेखनीय है कि जिले में वैसे भी  कुछ व्यापारी मुनाफे के चक्कर में मिठाई की दुकानों पर तो पूरे साल मिलावट करते हैं , परंतु त्योहारों के दौरान वह और ज्यादा मोटी कमाई के लालच में ये व्यापारी अपनी सारी हदें पार करके मिलावट के स्तर को और अधिक बढ़ा देते हैं। जिसका सीधा असर इंसान तो इंसान जानवरों के स्वास्थ्य पर भी  पड़ता है परंतु यह सब जानकर भी हमारे अधिकारी इस ओर से अनजान बने हुए हैं जिसके कारण अधिकारियों की सांठ गाँठ की बात  लोगों के द्वारा बताई जाने लगी है और ऐसे ही जिले के पलिया क्षेत्र में भी यह बातें साफ तौर पर उजागर हो रही है लोगों का कहना है कि पलिया में भी कई दुकानों पर व्यापारी धड़ल्ले से मिलावट करने में जुटे हुए हैं परंतु अभी तक कहीं छापेमारी नहीं की गयी हैं , ऐसे ही बात और सामने आ रही है कि जबतब फूड इंस्पेक्टर की टीम कहीं न कहीं छापेमारी करती रहती है और वहाँ सैपल भी भरे जाते है परंतु आगे कोई कार्रवाई नहीं होती नजर आती है। इससे साफ पता चलता है कि विभाग से जुड़े अधिकारी खुद भी मिलावट को कहीं न कहीं बढ़ावा दे रहे हैं जो कि सोचनीय विषय बन चुका है ।

फिलहाल संबधित अधिकारियों का कहना है कि यदि कहीं से मिलावट की शिकायत या सूचना मिलती है तो उसकी जांच की जायेगी और उस पर कड़ी कार्य वाही भी की जायेगी ।

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