आगरा-पांचवी क्लास का एक सवाल है. आगरा क्यों मशहूर है? जवाब सबको पता होगा ताजमहल. वो ताजमहल जो दुनिया के सात आश्चर्यों में से एक है. वो ताजमहल जिसे देखने के लिए देश-दुनिया से लोग आते हैं. वो ताजमहल, जिसे कुछ संगठन अपने राजनीतिक फायदे के लिए तेजोमहालय बताते हैं. फिर विवाद होता है तो हिंदू बनाम मुस्लिम की लड़ाई में घसीटकर कुछ दिनों के लिए छोड़ देते हैं.
अगर किसी दूसरी चीज के लिए आगरा को याद किया जाए, तो वो है यहां का पेठा, जो ताजमहल की ही तरह देश-दुनिया में मकबूल है. लेकिन यही आगरा पिछले कुछ दिनों से दूसरी वजहों से चर्चा में है और वो है यहां का अस्पताल. आगरा में जो सबसे बड़ा अस्पाल है, उसका नाम है सरोजनी नायडू मेडिकल कॉलेज. यूपी सरकार का दावा है कि आगरा क्या, पूरे उत्तर प्रदेश में मेडिकल की सुविधा दुरुस्त है. एक फोन कॉल पर एंबुलेंस और डॉक्टर मौजूद हैं. अगर यकीन नहीं होता तो यूपी के स्वास्थ्य मंत्री डॉ. सिद्धार्थ नाथ सिंह
का है. हकीकत क्या है, ये तस्वीर आपको बता रही है. इस तस्वीर की कहानी भी आपको बता देते हैं. दरअसल ये तस्वीर आगरा के उसी सरोजनी नायडू मेडिकल कॉलेज की है, जिसमें विश्वस्तरीय चिकित्सा सुविधाएं मौजूद हैं. इस मेडिकल कॉलेज को एम्स की तर्ज पर विकसित किया जा रहा है. इसके लिए सरकारी अधिकारी और मंत्रियों के सैकड़ों दौरे हो चुके हैं. लेकिन पांच अप्रैल की दोपहर में इस अस्पताल में जो हुआ, उसे अमानवीय और शर्मनाक के अलावा और किसी विशेषण से नहीं नवाजा जा सकता है.
आगरा के रुनकता की रहने वाली अंगूरी देवी को पांच अप्रैल को सांस लेने में दिक्कत हो गई. आनन-फानन में उनका बेटा अंगूरी देवी को एसएन मेडिकल कॉलेज लेकर आया. वहां उन्हें तुरंत ही अस्पताल के ट्रामा सेंटर में भर्ती करवा दिया. वहां उन्हें ऑक्सीजन सिलिंडर लगा दिया गया. थोड़ी देर बाद उन्हें राहत मिली तो फिर से उन्हें वॉर्ड में भर्ती करने के लिए कह दिया गया. लेकिन ट्रॉमा सेंटर से वार्ड की दूरी काफी थी, जिसके लिए एंबुलेंस की ज़रूरत थी. एंबुलेंस आती, उससे पहले ही मां-बेटे को ट्रॉमा सेंटर से बाहर कर दिया गया.
ये यूपी के मेडिकल कॉलेज में होने वाली लापरवाही की एक छोटी सी नजीर भर है. वरना यहां के कॉलेज में तो ऐसी-ऐसी घटनाएं हुई हैं, जिनकी तस्वीरें देखकर ही दिल दहल जाता है. यकीन न हो तो झांसी के मेडिकल कॉलेज में हुई उस घटना को याद कर लीजिए, जब एक आदमी के कटे हुए पैर को ही उसका तकिया बना दिया गया था. ये घटनाएं यूपी सरकार के उस दावे को सिरे से खारिज करने के लिए पर्याप्त हैं, जिनमें कहा जा रहा है कि यूपी में सभी के लिए मेडिकल की पर्याप्त सुविधा है. अगस्त में बच्चे मरते ही हैं का बयान देने वाले चिकित्सा मंत्री सिद्धार्थ नाथ सिंह के दावे तो बड़े हैं, लेकिन उससे भी बड़ी ये तस्वीरें हैं, जो उनके तमाम दावों की पोल खोल देती हैं. इसके बाद बचती है सिर्फ और सिर्फ जांच. और हमारे देश में जांच कैसे होती है, ये किसी से भी छिपा नहीं है.
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