कनिष्क गुप्ता.
इलाहाबाद : यदि इमरजेंसी में एंबुलेंस की आवश्यकता पड़ गई तो घटनास्थल तक पहुंचने में काफी समय लग जाता है। यह स्थिति इसलिए हो रही है क्योंकि यहां तो एंबुलेंस 102 व 108 खुद अस्वस्थ हैं। अधिकांश एंबुलेंस महज जुगाड़ के भरोसे ही सड़कों पर रेंग रहे हैं।
दरअसल, प्रदेश में एंबुलेंस के संचालन का काम ईएमआरआइ कंपनी द्वारा किया जाता है। इसके लिए राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन द्वारा फंड भी उपलब्ध कराया जाता है। ऐसे में बजट का बंदरबांट कर जिम्मेदार अधिकारी इसे डकार जाते हैं। इसका असर 102 व 108 एंबुलेंस पर पड़ता है। इलाहाबाद जनपद में कुल 20 सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र हैं। इसमें 108 एंबुलेंस की संख्या 52 हैं, जिससे दुर्घटना में मरीजों को अस्पताल पहुंचाया जाता है। वहीं 102 एंबुलेंस की संख्या 26 हैं, जिससे गर्भवती महिलाओं व बच्चों को अस्पताल ले जाया जाता है। इन सभी एंबुलेंसों में एसी, ऑक्सीजन, एक ड्राइवर व दो सहायक भी होने चाहिए। लेकिन यहां अधिकांश एंबुलेंस कबाड़ हो चुके है। अभी राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के जिला कार्यक्रम प्रबंधक विनोद कुमार सिंह ने इसका निरीक्षण किया तो यह समस्या सामने आई। मऊआइमा प्राथामिक स्वास्थ्य केंद्र पर 102 के दो व 108 के एक एंबुलेंस हैं। अब स्थिति यह है यहां कि तीनों एंबुलेंस खटारा हो चुकी है। शीशा टूट चुका है, एसी खराब है। इतना ही हीं इसके दरवाजे को रस्सी से बांधा गया है। मरीज जब एंबुलेंस में बैठता है तो एक लोग दरवाजे को पकड़ बैठते हैं ताकि दरवाजा खुल न जाए। इस तरह की समस्या की वजह से कई बार स्थिति गंभीर हो जाती है, मगर प्रशासनिक स्तर पर इसकी ठीक से व्यवस्था नहीं की जा रही है।