तारिक आज़मी.
नूरपुर. नूरपुर उपचुनाव अपने चरम पर है. सभी प्रत्याशी अपना अपना जोर लगाये पड़े है. समय कुछ इस तरह है कि कोई भी दल किसी को नाराज़ नहीं करना चाहता है. खुद प्रदेश के मुखिया ने इस उपचुनाव को प्रतिष्ठा का चुनाव बना लिया है. आज ही हुई उनकी रैली में इसकी झलक देखने को भी मिली. जबकि इस सीट पर पूर्व विधायक जो सड़क दुर्घटना में मृत हुवे थे की पत्नी स्वयं इस सीट पर भाजपा प्रत्याशी है. कही न कही से उनको सिम्पैथी मतों का भी लाभ मिल सकता है और भाजपा इस मौके को भुनाने में कोई कसार नहीं छोड़ रही है और भाजपा का चुनाव प्रचार इसी सिम्पैथी वोट पर ही केन्द्रित हो गया है.
इसी बीच भाजपा के लिये बड़ी खबर ये भी है रही कि इस दौरान विपक्ष के कुछ स्थानीय नेता आपस में ही मतभेद के कारण दो फाड़ में नज़र आये. इसी में से एक गुट भाजपा प्रत्याशी अवनी सिंह का समर्थन करता दिखाई दे रहा है जो भाजपा के लिये लाभ का काम कर रहा है. इस दौरान दलित वोट अपनी ख़ामोशी अख्तियार किये हुवे है और ख़ामोशी से शायद सही समय का इंतज़ार कर रहा है.
सपा के लिये इन दो बड़े नुक्सान के अलावा भी कुछ नुकसान है जिसमे पैच मैनेजमेंट भी कही काम नहीं करेगा. वह नुक्सान है सपा के कुछ कथित कार्यकर्ता जो चुनाव कार्यालय बैठ कर सिर्फ टाइम पास करते है और सोशल मीडिया के साथ साथ वेब मीडिया को मन भर कोसते रहते है. शायद इन साहब लोगो को मालूम नहीं है कि वेब मीडिया और सोशल मीडिया किस मुकाम पर पहुच चूका है. सबसे मजेदार बात तो ये रही कि जिस वेब मीडिया वाले का ये मजाक उड़ा रहे थे जानकारी करने पर मालूम हुआ कि वह वेब मीडिया कर्मी उसी विधानसभा का वोटर भी है और क्षेत्र में सम्मानित पकड़ भी रखता है. उसके खुद के घर में ही 20 वोट है. उस मीडिया कर्मी ने भी जवाब देने में कोई कसर तो छोड़ी नहीं और ये कहते हुवे चला गया कि सपा के आज के कार्यक्रम हेतु आया था मगर अब नहीं आऊंगा. उस वेब मीडिया कर्मी के आँखों में एक घृणा दिखाई दे रही थी, जो शायद किसी प्रत्याशी के लिये फायदे की बात तो नहीं हो सकती है.
अब सवाल ये है कि सपा के ये कथित कार्यकर्ता आखिर किस बल पर इतना अधिक आत्मविश्वास के साथ अपनी जीत को सुनिश्चित मान रहे है, अगर ऐसा ही रवैया चलता रहा तो इस नुक्सान की भरपाई सपा पिच मैनेजमेंट से भी नहीं कर पायेगी.
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