अनंत कुशवाहा।
अम्बेडकर नगर। ग्लैंडर्स नामक गम्भीर संक्रामक बीमारी से ग्रस्त दो घोड़ों एक घोड़ी व एक खच्चर को सजा – ए – मौत दे दी गयी । पशु चिकित्सकों की पांच सदस्यीय टीम ने उन्हें बिना दर्द का इंजेक्शन लगाकर मौत के आगोश में पंहुचा दिया। एक – एक करके मौत के मुंह में पंहुचाये गये चारों घोड़ो को तमसा नदी के किनारे एक विशालकाय गड्ढे में रासायनिक पदार्थाें के साथ दफना दिया गया ताकि उनका संक्रमण किसी भी प्रकार से फैल न सके। जिस समय घोड़ों को मौत के मुह में ले जाने के लिए अन्तिम प्रक्रिया चल रही थी उस समय उनके पालकों के चेहरे पर दर्द साफ झलक रहा था।
लगभग एक माह पूर्व पशुपालन विभाग ने जिले में बीस घोड़ों के खून के सेम्पल लेकर उन्हें जांच के लिए राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान प्रयोगशाला हिसार हरियाणा में भेजा था। जांच में दो घोड़े एक घोड़ी व एक खच्चर में ग्लैंडर्स की पुष्टि होने के बाद विभाग में सनसनी फैल गई। इस संक्रामक बीमारी को कोई इलाज न होने के कारण प्रभावित घोड़ों को मौत के आगोश में पंहुचाना ही एकमात्र विकल्प था।
संयोगवश इस बीमारी से प्रभावित सभी घोड़े भीटी विकास खण्ड के चतुरी पट्टी गांव में स्थित एक ही भट्ठे पर काम करते थे। पशुपालन विभाग के चिकित्सकों की टीम ने शनिवार को भट्ठे पर पंहुचकर उन्हें चिन्हित किया था। साथ ही उनके पालकों से इलाज की बात कही थी लेकिन हकीकत में पशुपालन विभाग इन्हें मारना ही एक विकल्प मानता था। पहले इन घोड़ों को सजा – ए – मौत देने के लिए सोमवार का दिन चुना गया था लेकिन शनिवार की देर शाम उच्चाधिकारियों के दबाव में इसे रविवार को ही कर दिया गया। उप मुख्य पशु चिकित्साधिकारी संजय शर्मा की अगुवाई में गये चिकित्सकों व उनकी टीम ने सभी घोड़ों को सजा – ए – मौत दे दी। इसके पूर्व भट्ठा मालिक ने मुआवजे की रकम के लिए सम्बन्धित अधिकारी से लिखित रूप में ले लिया।
जिस समय ग्लैंडर्स से प्रभावित घोड़ों व खच्चर को भट्ठे से निकालकर उन्हें सजा – ए – मौत देने के लिए ले जाया जा रहा था उस दौरान वहां का माहौल बेहद गमगीन हो गया। घोड़े को पालने वाले उससे लिपट कर रो रहे थे जिन्हें वहां मौजूद लोग समझा कर अलग करने का प्रयास कर रहे थे। इन्हीं घोड़ों के सहारे वे सब अपना व अपने परिवार का पेट पालते थे। रविवार को सुबह तक उनके हमसफर रहे घोड़े चन्द समय बाद ही उनसे हमेशा के लिए दूर हो जायेंगे, अचानक यह जानकार उनके ऊपर बज्रपात सा हो गया था। घोड़े को पकड़ कर उन्हें रोता देख हर किसी की आंखे नम हो जा रही थी। उपमुख्य पशु चिकित्साधिकारी डाॅ0 संजय शर्मा उन्हें समझाते – समझाते खुद भी रो पड़े। यही नही, घोड़ा पालने वालों में एक ही व्यक्ति के दो घोड़े व एक घोड़ी को मौत के मुंह में जाता देख परिवार के बच्चे व महिलाएं चिल्ला चिल्ला कर रो रही थी। एक साथ तीन घोड़ों के उनसे बिछुड़ने का गम उन्हें सहा नही जा रहा था लेकिन घोड़ों का मरना भी निश्चित था क्योंकि व ऐसी बीमारी से ग्रस्त थे जिसके चलते जनहित में उनका एक क्षण भी जीवित रहना उचित नही था।
फिलहाल रोते बिलखते परिवारों के बीच से तीनो घोड़ो को निकालकर कुछ दूर पर स्थित तमसा नदी के किनारे ले जाया गया जहां पर उन्हें बिना दर्द की मौत दे दी गई। इनमें इमरान अली के दो घोड़े व एक खच्चर था जबकि सफारू की एक घोड़ी थी। इन्हें इन लोगों ने बलिया के मेले से खरीदा था।
घोड़ों को सजा – ए – मौत देने चतुुरी पट्टी पंहुचे पशुपालन विभाग के अधिकारियों को जरा सी लापरवाही के कारण काफी देर तक परेशान होना पड़ा। घोड़ों को मारने के बाद उन्हें दफन किये जाने वाले स्थान को लेकर पहले से तैयारी न होने के कारण अधिकारी काफी परेशान हुए। ग्राम प्रधान ने जमीन बताने केा लेकर अधिकारियों को खूब छकाया अन्त में भट्ठे से लगभग तीन किलो मीटर दूर तमसा नदी के किनारे इन्हें मारने व दफनाने का निर्णय लिया गया। इसके बाद वहां पंहुची चिकित्सकों की टीम ने घोड़ो को मारने की प्रक्रिया प्रारम्भ की तथा बाद में उन्हें जेसीबी से बनाये गये बड़े गड्ढे मंे दफन कर दिया गया। जिस समय घोड़ों को मारने के लिए अन्तिम तैयारी चल रही थी उस दौरान नदी के किनारे पंहुचे बेजुबानों ने हरी घास देखकर चरना शुरू कर दिया। उन्हें क्या पता था कि चन्द मिनटों के बाद ही उन्हें इस संसार से दूर चले जाना है।
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