अमरीका के मुकाबले में चीन ईरान और तुर्की सहित कई देशों का बना: गठबंधन

आफ़ताब फारुकी

एक ओर अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प ने 4 नवम्बर को अमरीका पर नये प्रतिबंध लगाने और ईरान से तेल आयात करने से दुनिया के देशों को रोका है वहीं दूसरी ओर कुछ यूरोपीय और एशियाई सरकारों ने ट्रम्प के इस फ़ैसले को मानने से इनकार कर दिया जिनमें चीन, भारत और रूस सहित कई बड़े देश शामिल हैं।

अमरीका द्वारा ईरान के विरुद्ध प्रतिबंधों की घोषणा के बाद सबसे पहले विद्रोह का झंडा तुर्की ने उठाया और शुक्रवार को तुर्क राष्ट्रपति रजब तैयब अर्दोग़ान के प्रवक्ता डाक्टर इब्राहीम कालेन ने बल दिया कि उनका देश अमरीकी प्रतिबंधों के सामने झुकने वाला नहीं है और न ही रूस के एस-400 मीज़ाइल सिस्टम से पीछे हटेगा। तुर्की को रूस से अलग वर्ष एस-400 मीज़ाइल डिफ़ेंस सिस्टम मिलने वाला है। तुर्क राष्ट्रपति के प्रवक्ता का कहना था कि अंकारा ईरान से तेल आयात करने के अमरीकी प्रतिबंधों को नहीं मानेगा और वह देश के आर्थिक हितों के अनुसार आगे बढ़ेगा, ईरान हमारा पड़ोसी देश और महत्वपूर्ण आर्थिक भागीदार है।
तुर्की का अनुसरण कुछ यूरोपीय और एशियाई देश भी कर सकते हैं क्योंकि चीन सबसे अधिक ईरानी तेल का आयात करता है। चीन ईरान से प्रतिदिन 6 लाख बैरल कच्चा तेल आयात करता है जबकि भारत 4 लाख 50 हज़ार बैरल प्रतिदिन कच्चा तेल आयात करते है। इसी प्रकार दक्षिणी कोरिया दो लाख 50 हज़ार बैरल तेल आयात करता है और उसके बाद तुर्की का नंबर आयात है जो प्रतिदिन 2 लाख बैरल तेल आयात करता है।

यदि यूरोप की ओर नज़र डालें तो ईटली 1 लाख 80 हज़ार बैरल तेल प्रतिदिन  जबकि फ़्रांस एक लाख दस हज़ार, यूनान एक लाख और स्पने 70 हज़ार तेल बैरल प्रतिदन ईरान से आयात करता है। इसके साथ ही संयुक्त अरब इमारात एक लाख बैरल प्रतिदिन आयात करता है जबकि वह भी तेल निर्यातक देश है और वह प्रतिदिन तीस लाख बैरल तेल निकालता है।

चीन सरकार ने ईरान पर अमरीका के संभावित प्रतिबंधों की निंदा की गयी है जबकि अभी तक स्पष्ट नहीं हुआ कि उसने तुर्की की भांति अमरीकी प्रतिबंधों से मानने इनकार किया है या नहीं? जबकि कुछ लोगों ने अमरीका और चीन के बीच ट्रेड वार को देखते हुए चीन के अमरीका के विरुद्ध जाने की सूचना दी है।

यहां पर अमरीका अपने अरब घटकों का कार्ड खेल सकता है जिसमें विशेषकर सऊदी अरब सबसे आगे होगा ताकि वह ईरान पर लगने वाली प्रतिबंध के दौरान तेल की कमियों को पूरा कर सके। सऊदी अरब भी पीछे नहीं रहा। सऊदी अरब के ऊर्जा मंत्री ख़ालिद फ़ालेह ने तुरंत ही कहा कि उनका देश तेल की कमी को पूरा करने को तैयार है, इससे पहले भी रियाज़ ने इराक़ पर अमरीकी हमले परिवेष्ठन के दौरान, इराक़ के हिस्से को पूरा किया था और उस दौरान उसने प्रतिदिन चालीस लाख तेल बैरल का उत्पादन किया था।
बहरहाल तुर्की ने अमरीका और नैटो की ओर देखना बंद कर दिया है और अब वह उत्तर में रूस, पूरब में इराक, ईरान, चीन और भारत पर नज़र रखे हुए है। ईरान, तुर्की का सबसे बड़ा व्यापारिक सहयोगी है और दोनों देशों के बीच लगभग 1 करोड़ दस लाख डालर के वार्षिक लेनदेन होते हैं और अब दोनों देशों के बीच होने वाली सहमति के आधार पर अगले चार वर्ष के दौरान दोनों देशों ने आपसी लेनदेन को 3 करोड़ पचास लाख डालर तक पहुंचाने पर सहमति व्यक्त की है। अब तो समय ही बताएगा कि अमरीका को ईरान के विरुद्ध प्रतिबंधों में किस सीमा तक सफलता मिल सकती है।

Adil Ahmad

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