सिद्धार्थ शर्मा
कैराना उपचुनाव बाकि सभी जगहों के उपचुनावों के मद्देनज़र काफी महत्व रखता था. कही न कही से भाजपा के द्वारा इस सीट को जीतने के लिये सभी हथकंडे अपनाये गये थे, इस चुनाव को भाजपा द्वारा 2019 का सेमीफ़ाइनल तक करार दे दिया गया था. कही न कही भाजपा इस सीट पर जीत के लिये काफी आश्वस्त थी, और क्यों न हो हर तरह की राजनितिक जोड़ तोड़ इस सीट पर लगाया जा चूका था. एक तरफ जहा सम्प्रदाय विशेष के वोट हेतु ध्रुवीकरण की राजनीत हुई वही सिम्पैथी मतों के लिये दिवंगत सांसद की बेटी को टिकट देकर सहनुभूति का वोट भी अपना करने का प्रयास हुआ.
इस क्षेत्र में कुछ लोगो द्वारा जमकर साम्प्रदायिक गतिविधियों का प्रचार प्रसार हुआ, राजनैतिक जानकार बताते है कि पूर्व सांसद (अब दिवंगत) हुकुम सिंह द्वारा नब्बे हज़ार की आबादी वाले इस मुस्लिम बहुल क्षेत्र में अपनी पैठ ज़माने के लिए एक घटना का सहारा लिया गया था जब 2013 में मुस्लिम हिस्ट्रीशीटर द्वारा रंगदारी मांगने के मामले में परचून व्यापारी विनोद सिंघल की दिन दहाड़े गोली मार कर हत्या कर दी गई और कुछ ही दिन बाद एक और व्यापारी विनोद की भी हत्या मुक़ीम गिरोह ने कर दी जिससे डरकर कुछ व्यापारिक घरानो ने ये फैसला किया के वो कैराना में व्यापार नहीं करेंगे ।
सही माना जाये तो ये कानून व्यवस्था का मामला था जिसे कुछ लोगो द्वारा निजी हितो हेतु साम्प्रदायिक रूप दिया गया और पूर्ववर्ती सरकार नाकारा और हिन्दुओं को असुरक्षित प्रचारित किया जाने लगा गया था और कहा गया के मुसलमानो की प्रताड़ना से डरकर क़स्बा छोड़ रहे है । ये सब कही न कही वोटों के ध्रुवीकरण की राजनीती के तहत हुआ बताया जाता है क्योकि मुकीम काला केवल एक अपराधी था जो किसी धर्म अथवा जात का प्रतिनिधित्व नहीं करता था बल्कि एक खौफ और दहशत का प्रतिनिधि था। यही वजह थी के इस छोटे से कस्बे को राष्टरीय बहस का मुद्दा बनाया दिया था. जिसमे बड़े राजनितिक बयानों की आहुति भी दिलवाई गई थी, और 2014 के चुनावों में इस सीट से बीजेपी ने जीत किया
हुकुम सिंह की मृत्यु हो जाने से ये सीट खाली हो गई मगर तब तक उत्तर प्रदेश की कमान योगी आदित्यनाथ के हाथो आ चुकी थी और एनकाउंटर, BHU, AMU, एंटी रोमियों आतंक, गोरखपुर अस्पताल ऑक्सीजन कांड, दलितों की पिटाई कासगंज दंगो, पुलिस की पक्षपाती भूमिका, सच बोलने पर अधिकारियो पर गाज, जैसे मुद्दों से जनता त्रस्त हो चुकी थी इसलिए इस उपचुनाव में स्वर्गीय हुकुम सिंह की पुत्री को सहानुभूति वोट हासिल करने के लिए उतरा गया और वही ध्रुवीकरण के पुराने हथकंडे आज़माये जाने लगे। विपक्ष ने मौके के नज़ाकत को समझा और रालोद उम्मीदवार तबस्सुम हसन को सामने खड़ा कर दिया जिसे सपा, बसपा और कांग्रेस ने समर्थन दे दिया। अब मुक़ाबला हिन्दू गुर्जर बनाम मुस्लिम गुर्जर हो गया था. इस चुनाव में जाट समुदाय के अलावा दलित समुदाय का भी महत्वपूर्ण योगदान हुआ और उनका समर्थन तबस्सुम के साथ चला गया।
यहाँ विपक्ष की मज़बूती देख अब फिर ध्रुवीकरण हेतु साम्प्रदायिक और फेक बयानों की भरमार होने लगी । एक पूजनीय पशु के अंग पाए जाने की अफवाह , जेल में बंद मुस्लिम हिस्ट्रीशीटर्स के बाहर आ जाने की अफवाह , एक बीजेपी बीजेपी के पूर्व विधान परिषद सदस्य हरेंद्र प्रताप की बयान के पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया …?? आदि आदि समस्त पैतरे अपनाये गये। शायद यही पैतरे थे जो भाजपा की तरफ झुकने वाले वोट को भी उसके खिलाफ करते गये. क्योकि सच ज्यादा देर नही छुपता है इसीलिये विपक्ष खामोशी से सिर्फ अपना काम कर रहा वही भाजपा की तरफ से उनके बयान ही उनके वोटो पर नुक्सान करते रहे.
सबसे अधिक नुक्सान भाजपा के लिये यहाँ खुद को नम्बर वन कहने वाले एक अख़बार ने कर डाला. चला तो था वह सत्तारूढ़ दल हेतु उसके भले के काम के लिये मगर हो गया उल्टा ही. चुनाव प्रचार समापन के अगले दिन का ये चार पत्र “सत्तारूढ़ दल विशेषांक ” ही कहा जा सकता है । हर पेज पर सत्तारूढ़ दल और प्रधानमंत्री के कसीदे पढ़ते अखबार ने जनता के बीच पैठ को और भी ख़राब करने का काम किया क्योकि जनता के दिमाग में यह बात आसानी से आ गई कि यह सब एक दल को फायदा पहुचाने का काम किया जा रहा है. सम्पादकीय हर अख़बार का दिल होता है मगर इसकी सम्पादकीय भी विपक्ष की बुराई से भरी पड़ी थी. इसी अख़बार में एक खबर थी कि देवबंद के मौलानाओ ने सत्तारूढ़ दल के विरुद्ध वोट देने की अपील किया है. जबकि चंद मिनटों में ही यह बात साफ़ हो गई कि देवबंद के तरफ से ऐसा कोई भी बयान नहीं आया है. इस दिन इस अख़बार में कही भी एक खबर विपक्ष की नहीं थी. फिर क्या था लहर को घुमने का समय कहा लगता है. लहरे विपक्ष के पाले में दिखाई देने लगी.
अंततः यह सब होने के बावजूद भी चुनाव तबस्सुम का जीतना देश के गंगा जमुनी तहजीब को बढ़ावा देने वाला रहा साथ ही इस धरना को भी बलवती कर दिया कि सिर्फ एक वोट से आपकी जीत नहीं हो सकती है इसके लिये सभी सम्प्रदाय का वोट होना आवश्यक है. झूठ की बैसाखी को जितना चाहे उतना दौड़ाया जाये मगर अंततः यह काफी कमज़ोर होने के कारण टूट ही जाती है. अब देखना है कि प्रदेश नेतृत्व पर उंगली उठाने वाले सत्तारूढ़ दल के दिल्ली में बैठे लोग अपनी खुद की गलतियों से क्या सबक लेंगे अथवा सिर्फ अपनी गलतियों का ठीकरा प्रदेश नेतृत्व पर ही फोड़ते रहेगे.
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