फारुख हुसैन / मंसूर खान
लखीमपुर खीरी// रमजानुल मबारक का महीना अपनी खुसूसियात, फजाइल और बरकात की वजह से इम्तियाजी शान रखता है। इस माह को तीन हिस्सों में तक्सीम किया गया है। पहला रहमत, दूसरा मगफिरत और तीसरा दोजख से छुटकारा। दो अशरे (हिस्से) गुजरने के बाद तीसरा अशरा शुरू हुआ है। आखिरी अशरा भी बड़ी फजीलत वाला है। रमजान का महीना अब अंतिम अशरे में चल रहा है। इस अशरे में एक रात ऐसी है, जो हजार महीनों से भी ज्यादा अफजल है। इस अशरे में इस रात की तलाश को रोजेेदार रातें जागकर खुदा की इबादत कर रहे हैं।
उम्मुल मोमिनीन हजऱत आयशा सिद्दीका के अनुसार रसूल रमज़ान के आखिरी अशरे में इबादत में जिस कद्र सख्त मेहनत से करते थे, उतनी और किसी जमाने में नहीं करते थे। इस हदीस से रमजान के अंतिम अशरे की विशेषता का अंदाजा लगाया जा सकता है।
इस अशरे की सबसे बड़ी फजीलत है कि इसी की ताक रातों में कोई भी रात शबे कद्र हो सकती है। इसका एक निश्चित दिन नहीं बताया गया है। इस बारे में खुदा का फरमान है बेशक हमने कुरान को शबे कद्र में उतारा है। शबे कद्र हजार महीनों से बेहतर है। इस रात में फरिश्ते ओर रूहुल कुद्स हजरत जिबरईल अ. अल्लाह के हुक्म से हर अम्रे खैर को लेकर उतरते हैं। यह रात अपनी तमाम विशेषताओं के साथ सूर्याेदय तक रहती है।जे इसी तरह से एक अन्य हदीस है कि जो पूरी रात इबादत के लिए खड़ा हुआ (नमाजे पढ़ीं और खुदा का जिक्र करता रहा) उसके तमाम पिछले गुनाह माफ कर दिए जाएंगे।
हजरत आयशा सिद्दीका ने सरकार सल्ल. से पूछा कि अगर मैं इस रात को पाऊं तो क्या दुआ करूं तो आप ने जवाब दिया कि अल्लाह को उसकी माफ करने की सिफात का हवाला देकर खताओं की माफी की दुआ मांगनी चाहिए। शबे कद्र का तलाश करने के संबंध में बहुत सी हदीस हैं, जिनमें इसे तलाश करने को कहा गया है। नबी ने कहा कि शबे कद्र आखिरी अशरे मेें तलाश करो। बुखारी शरीफ में है कि शबे कद्र को रमजान के आखिरी अशरे की ताक रातों में तलाश करो। अगर आखिरी अशरे की ताक रातों यानी आखिरी दस दिनों की केवल पांच रातों में जाग कर इबादत की जाए, तो इन्हीं में से वह अजीम और बरकतों वाली रात भी हासिल हो जाएगी जिसका जिक्र कुरान में किया गया है।
इस अशरे में नबी-ए-आखिर का तर्जे इबादत रात की फजीलतों को समझने को काफी है। हमें सोचना चाहिए कि साल भर दुनियावी व्यस्तताओं में उलझ कर जाने अनजाने में खताएं कर बैठते हैं। इन खताओं पर पश्चाताप का शबे कद्र से बेहतर दूसरा मौका नहीं है, इसलिए रुखसत होते रमजान के इन दिनों में अल्लाह के हुजूर अपनी खताओं की माफी मांगने को रातों को जागकर इबादतें करें।
माहे रमजान में जकात की फजीलत बयान करते हुए जनाब हाफिज मो0 उमर ने कहा कि जकात हर उस शख्स पर फर्ज है, जिसके पास निसाब के बकद्र माल हो। उन्होंने यह भ्ी फरमाया कि जकात की रकम मदरसा के उस्तादों व मुलाजिमों की तनख्वाह में देना दुरुस्त नहीं है। जकात के अलावा सदक-ए-फित्र पर रौशनी डालते हुए हाफिज मो0 उमर ने बताया कि सदक-ए-फित्र उस शख्स पर वाजिब है। जिनके पास जरुरियाते जिंदगी के अलावा मालो अस्बाब मौजूद हो। उसे सदक-एक-फित्र देना वाजिब है। इसके अलावा अगर घर में कोई नौकर या रिश्तेदार रह रहा है तो उसका भी सदका देना वाजिब है। एक आदमी का सदका फित्र एक किलो ६३३ ग्राम गेहूं या इसकी कीमत है। सदक-ए-फित्र उन्हीं लोगों को देना जायज है जिनको जकात दी जा सकती है। हाफिज ने बताया कि सदक-ए-फित्र ईद से पहले देना चाहिए। ताकि गरीब भी अपने बच्चों को कपड़े बगैरह बनवा सके। उन्होंने कहा कि अगर ईद के काफी पहले सदक-ए-फित्र नहीं दिया गया है तो ईद की नमाज अदा करने के बाद ही दे दे। यह तमाम अमलियात रमजान के आखिरी अशरे के ही है। इसीलिए आखिरी अशरा दोजख से छुटकारा दिलाने वाला कहा गया है।
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