आदिल अहमद/आफताब फारुकी
आरएसएस के मंच पर पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी भी देशभक्ति के रंग में रंगे नजर आए। उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि मैं यहां देश और देशभक्ति समझाने और देश की बात करने आया हूं। उन्होंने कहा कि सबने इस बात को माना है कि हिंदू एक उदार धर्म है। ह्वेनसांग और फाह्यान ने भी हिंदू धर्म की बात की है। राष्ट्रवाद किसी भी देश की पहचना है। देशभक्ति का मतलब देश की प्रगति में आस्था है। भारत के दरवाजे सबके लिए खुले हैं।
उन्होंने कहा कि करीब 1800 साल से कई भारतीय यूनिवर्सिटी छात्रों को आकर्षित करते रहे हैं। हम पूरी दुनिया को अपना परिवार मानते हैं। भारत की ताकत सहिष्णुता से आता है। हमारा मानना है कि सदियों से जुड़ती आ रही सभ्यता से ही हमारी राषट्रीय पहचान बनी है।
इससे पहले कार्यक्रम की शुरुआत संघ प्रमुख मोहन भागवत के भाषण के साथ हुआ। उन्होंने कहा कि यह हमारी परंपरा रही है कि हम किसी आदरणीय व्यक्ति को बुलाते हैं। इस बार हमारे साथ प्रणब मुखर्जी हैं। हमने उनको सहज मन से बुलाया और वो इस पर राजी हो गए। उनके निमंत्रण पर कोई विवाद नहीं होना चाहिए।
भागवत ने कहा, विद्या प्राप्त लोग विवाद में रहते हैं, सहमति नहीं बनाते। शक्ति से दूसरों को पीड़ा देने का काम करते हैं। जबकि धन का उपयोग दान, शक्ति रक्षा के लिए और विद्या का उपयोग समाज में मान बढ़ाने के लिए करना चाहिए। मंच पर प्रणब मुखर्जी व मोहन भागवत के अलावा आरएसएस नागपुर के हेड राजेश लोया, वर्ग अधिकारी गजेंद्र सिंह और विदर्भ प्रांत संघ चालक रामजी हरकारे मौजूद रहे।
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