कैराना. सभी राजनितिक दलों के लिये यह उपचुनाव काफी महत्वपूर्ण था. भाजपा ने तो इसको 2019 का सेमीफाईनल तक कह दिया था. कही न कही भाजपा कैराना और नूरपुर सीट को लेकर काफी आश्वस्त थी और सिम्पैथी वोट के बल पर सीट अपनी झोली में मान के चल रही थी. दरअसल ये सीट बीजेपी सांसद हुकुम सिंह के निधन से खाली हुई थी। चुनावी बिगुल के बाद ही यह लड़ाई यहाँ के दो राजनैतिक परिवारों – हुकुम सिंह और अख्तर हसन के बीच हो गई थी। एक तरफ हुकुम सिंह की बेटी मृगांका सिंह बीजेपी की टिकट पर चुनावी मैदान में ताल ठोक रही थी दूसरी तरफ दिवंगत सांसद मुनव्वर हसन की पत्नी तबस्सुम हसन आरएलडी के चुनाव चिह्न पर सपा-बसपा-कांग्रेस-आरएलडी गठजोड़ की साझा उम्मीदवार थी. ऐसे में इसे बहू और बेटी की लड़ाई भी कहा जा रहा था, और आखिर में बहु ने बेटी को पटखनी देते हुवे सीट जीत ही लिया
बताते चले कि उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों पर 2014 के चुनाव में एक भी मुस्लिम उम्मीदवार को जीत नहीं मिली। ऐसे में तबस्सुम जीतकर मौजूदा लोकसभा में यू.पी. से मुस्लिम प्रतिनिधित्व का एकमात्र चेहरा हो गई है। तबस्सुम कैराना से ही सांसद रह चुके अख्तर हसन की बहु और मुन्नवर हसन की पत्नी हैं. हसन परिवार कैराना की राजनीति का काफी पुराना खिलाड़ी रहा है। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद साल 1984 के चुनावों में सहानुभूति की लहर पर चढ़कर चौधरी अख्तर हसन ने बड़ी जीत दर्ज की थी। इससे पहले सिर्फ 1971 में ही कांग्रेस यहां से जीत सकी थी। 1996 के चुनावों में अख्तर के बेटे मुनव्वर हसन ने सपा के टिकट पर यहां से जीत दर्ज की लेकिन दो ही साल बाद बीजेपी ने इस सीट पर खाता खोला और वीरेंद्र वर्मा ने मुन्नवर को हरा दिया.
इसके बाद ये सीट लगातार दो बार आरएलडी के खाते में रही। 2009 के लोकसभा चुनाव में मुन्नवर की पत्नी तबस्सुम ने बसपा के टिकट पर चुनाव लड़ा था और लोकसभा पहुंची थी। ये सिलसिला यहीं ख़त्म नहीं होता है. तबस्सुम और मुन्नवर के बेटे नाहिद हसन ने भी 2014 में हुकुम सिंह के खिलाफ चुनाव लड़ा, लेकिन 2 लाख से ज्यादा वोटों से हार गए. असल में ये हार परिवार की फूट का नतीजा थी. तब नाहिद हसन एसपी के टिकट पर और उनके चाचा कंवर हसन बीएसपी के टिकट पर चुनाव लड़े थे, लेकिन दोनों को पराजय का सामना करना पड़ा था. नाहिद दूसरे जबकि चाचा कंवर तीसरे नंबर पर रहे थे। हालांकि 2017 के यूपी विधानसभा चुनावों में नाहिद ने कैराना सीट पर हुकुम सिंह की बेटी मृगांका को 21 हज़ार से ज्यादा वोटों से हराकर बदला चुका दिया था. नाहिद फिलहाल विधायक हैं और तबस्सुम पूर्व सांसद के साथ अब वर्त्तमान सांसद भी हैं. इस जीत ने कही न कही से यह साबित कर दिया है कि जनता सहानुभूति के नाम पर ही वोट नहीं देती है बल्कि शायद जनता को वह विकास चाहिये जो उसको शायद भाजपा से नहीं मिलता दिखाई दिया. इसके पहले भी कैराना सीट के लिये जातिगत और धर्मगत राजनीत का तड़का लगाया गया था जब एक हिष्ट्रीशीटर मुकीद काला के कारनामो को धर्म विशेष से जोड़ कर जनता के सामने पेश करने की कोशिश कुछ लोगो द्वारा हुई थी. मगर इस बार यह दाव भी काम न आया और जीत अंततः जनता की हुई
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