सुल्तानपुर / राजधानी का असर जिलो में भी अब हांवी हो रहा है. बात भगवा कलर की है, जो कि आए दिन विवादों में रहने लगा है. ऐसा नहीं है कि रंग विवादों में रहता है मगर जिस तरीके से एक दल विशेष ने इसके ऊपर अपना कापी राईट समझ रखा है उस हिसाब से इसको एक वर्ग विशेष से जोड़ के देखा जाने लगा है. आपको बताते चले कि भगवा रंग सिर्फ ऐसा नहीं है कि हिन्दू धर्म में सम्मान पाता है बल्कि यह मुस्लिम सम्प्रदाय में भी सम्मान रखता है उसका कारण यह है कि इस रंग को जहा हिदी भाषा में भगवा कहा जाता है तो ऐसा ही लगभग मिलता जुलता रंग उर्दू अदब की जुबां में ज़र्द रंग कहा जाता है जो चिश्तिया सिलसिले का होता है. यानि अजमेर वाले ख्वाजा गरीब नवाज़ का रंग.
- मैडम मैं तो कहता हु चुना रंगाई पुताई जो रंग समझ आये आपको करवा दीजिये, बस इलाज बढ़िया हो. वो क्या है न मैडम हकीकत तो आप भी जानती है कि इस समय चिकित्सा व्यवस्था का क्या हाल है, वो चिकित्सा बजट पर ध्यान अगर दिया जाये तो एक रुपया की दवा एक मरीज़ को उस बजट के हिसाब से पड़ती है. तो मैडम इस बजट को बढ़वा दीजिये. बस… फिर अगर कोई कहे तो कह दीजियेगा कि देखा रंग बदलवा कर बजट बढवा लिया न.
खैर हमारा मुद्दा रंग पर आपको लेक्चर देने का बिलकुल नहीं है बल्कि रंग की चल रही सियासत से रूबरू करवाते हुवे खबरों पर ध्यान दिलवाने का है. सुबे की सरकार बदलते ही सत्ताधारी बीजेपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपने हिंदुत्व को आगे बढ़ाने के लिए एक ऐसा ध्रुवीकरण का कार्य किया जो कि चर्चाओं का विषय बन गया. बस नहीं चलता है कि हर जगह रंग बदल कर भगवा रंग में तब्दील कर दिया जाये.
अभी यह चर्चा का विषय बना हुआ था कि प्रदेश की राजधानी लखनऊ में हज हाउस का रंग बदल कर भगवा कर दिया गया था. जिस पर काफी बहस चली थी. आज भी रुक रुका कर बहस हो ही जाती है. बस मामला ज्यादा पेंचीदा फसने के वजह से तत्काल प्रभाव से हज हाउस की दीवारों को पुनः सफेद रंग मे रंग दिया गया था. दरअसल अगर थोडा कामन सेन्स जैसी बात किया जाये तो किसी सूबे के मुख्यमंत्री को क्या पड़ी है कि कही का रंग ही बदल्वाता रहे. ये तो उनके चाहने वाले ज़रा अपनी मुहब्बत का मुज़ाहरा कुछ ज्यादा ही कर देते है कि मालूम नहीं शायद इसी सब से मुख्यमंत्री खुश हो जाये. जबकि होता ऐसा कुछ ख़ास है नही. यही कारण है कि आप देखे नज़र उठा कर तो उत्तर प्रदेश के कई ऐसे सरकारी संस्थान है जहा भगवा रंग हावी है !
ऐसा ही मामला सुल्तानपुर जिले में देखने को मिल रहा है ताजा मामला वीर अब्दुल हमीद चिकित्सालय का है, इस समय अस्पताल की दिवाले भगवा मय हो गई है, इसकी रंग पुताई में पता नहीं किसने अपना दिमाग विशेष लगाया कि अस्पताल का रंग भगवा कर दिया. जब इस सम्बन्ध में हमने सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी की नगर पालिका चेयरमैन बबीता जायसवाल से बात किया तो उनका कहना है कि भगवा मय नहीं है सिर्फ यह एक ऑरेंज कलर है, और इसे कोई भगवा मय नहीं किया गया है।
इस दौरान समाजवादी पार्टी के पूर्व चेयरमैन( मानू भाई ) का आरोप है , कि भारतीय जनता पार्टी एक खोखली राजनीति कर रही है जो कि सिर्फ और सिर्फ यह एक तुष्टीकरण है , जिले से लेकर प्रदेश तक जो एक माहौल बनाया जा रहा है ,यह एक सांप्रदायिकता का कार्य है पूर्व चेयरमैन ने आरोप लगाया कि उनके चेयरमैन रहते वीर अब्दुल हमीद चिकित्सालय बहुत बढ़िया वा काफी अच्छा चल रहा था लेकिन भारतीय जनता पार्टी के चेयरमैन नगरपालिका की कुर्सी पर बैठते ही उसको बेचने का काम किया है.
उन्होंने कहाकि चेयरमैन जो भारतीय जनता पार्टी की है, बबीता जायसवाल उन्होंने चिकित्सालय को भगवाकरण करके एक माहौल खराब करने का कार्य किया है, जिससे जनता में आक्रोश है पूर्व चेयरमैनं ने कहा कि जिले की जनता जान चुकी है और आने वाले समय में भारतीय जनता पार्टी को करारा जवाब देगी. 2019 लोकसभा चुनाव में नहीं आएगा भगवा रंग काम.
वैसे मैडम कोई कुछ भी कहे उसको कहता रहने दीजिये. भाई आपको जो रंग पसंद हो चिकित्सालय को उस रंग से रंगवा दीजिये, कौन सा हमको या मरीजों को वहा पिकनिक करना है अथवा रहना है. मरीज़ तो मैडम चिकित्सालय में इलाज के लिये जाते है, उनका इलाज होना चाहिये, हमको क्या धरा है आरेंज और भगवा रंग के बीच का फर्क बताने का क्योकि मैडम हम अंग्रेजी तो वैसे पढ़े नहीं है तो जानते कहा होंगे की दोनों बात एक ही होती है. आपको कोई पूछे न मैडम तो फर्क बता दीजियेगा, आरेंज कलर मतलब संतरे का रंग और भगवा मतलब भगवा. कह दीजियेगा कि कौन सा रंग का पहचान है आपको. नया रंग का नाम अभी 2017 में जुडा है उसके पहले दुनिया इसका नाम आरेंज कलर कहती थी. हम सत्ता में आकर इसको भगवा रंग से नया कलर जोड़े है.
मैडम मैं तो कहता हु चुना रंगाई पुताई जो रंग समझ आये आपको करवा दीजिये, बस इलाज बढ़िया हो. वो क्या है न मैडम हकीकत तो आप भी जानती है कि इस समय चिकित्सा व्यवस्था का क्या हाल है, वो चिकित्सा बजट पर ध्यान अगर दिया जाये तो एक रुपया की दवा एक मरीज़ को उस बजट के हिसाब से पड़ती है. तो मैडम इस बजट को बढ़वा दीजिये. बस… फिर अगर कोई कहे तो कह दीजियेगा कि देखा रंग बदलवा कर बजट बढवा लिया न. आप तो जानती है मैडम अब वीर अब्दुल हमीद के नाम से चिकित्सालय है तो सुविधा भी उसी वीर की तरह मिलनी चाहिये जैसे उस परमवीर ने अकेले पाकिस्तानी पेटेंट टेंक को खिलौने के तरह तोडा था. रंग का क्या है मैडम कोई रंग रहे, रंग तो हमको तीन एक साथ ही भाता है वह है केसरिया उसके नीचे सफ़ेद और उसके नीचे हरा बस ऐसा तीन रंग बीच में चक्र बस यही कम्बीनेशन पसंद है.
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