कनिष्क गुप्ता
इलाहाबाद : नोएडा-गाजियाबाद में भरभराकर गिरी बहुमंजिली इमारतों में दबने से हुई मौतों ने बहुमंजिली इमारतों में रहने वालों की नींद उड़ा दी है। इस संबंध में संगमनगरी में पड़ताल की गई तो हैरान करने वाले हालात सामने आए। पिछले दो दशक में इलाहाबाद में भी कई इमारतें बनीं। इस शहर में भी बिल्डिंग ढहने से छह लोगों को मौत हो चुकी है। इसके बावजूद अफसर चेते नहीं। अब गाजियाबाद व नोएडा की घटना से अफसर सकते में आए। इन इमारतों के अपार्टमेंट में रहने वाले भी चिंतित हो गए हैं। यहां ऐसी कई इमारतें हैं जो मानकों को पूरा नहीं करती। इनके ध्वस्तीकरण का आदेश पारित हो चुका है, लेकिन इलाहाबाद विकास प्राधिकरण (एडीए) अब तक एक्शन में नहीं आया। इस पर गंभीरता ने दिखाई गई तो गाजियाबाद-नोएडा जैसे हालात यहां बनने में देर नहीं लगेगी।
यहां मानकों की अनदेखी कर इमारतें बनती रहीं और इलाहाबाद विकास प्राधिकरण आंख मूंदे रहा। ऐसी इमारतें अब भी बन रही हैं। किसी भी अपार्टमेंट में लिफ्ट, ओपेन स्पेस, पार्क, वेंटिलेशन, पार्किग जैसी सुविधाएं अनिवार्य हैं लेकिन शहर में आधे से अधिक अपार्टमेंट्स में यह नहीं है। पार्किग की जगह निर्माण करा लिया गया है, जो मानक के अनुरूप नहीं। शहर के सिविल लाइंस, धूमनगंज, बेली, कटरा, ममफोर्डगंज, अल्लापुर, जार्जटाउन, टैगोर टाउन में बनी कौन सी बहुमंजिली इमारत वैध है, कौन अवैध इसकी पहचान मुश्किल भरी है। एडीए को कायदे से इन्हें चिह्नित करना चाहिए,। हालांकि एडीए के सचिव अजय कुमार अवस्थी का दावा है कि कार्रवाई होती है। नोटिस दी जाती है फिर जांच कराकर ध्वस्तीकरण की कार्रवाई कराई जाती है।
नक्शा 32 का, तान दिए 52 फ्लैट
अपार्टमेंट्स में फ्लैट खरीदने के बाद धोखाधड़ी का शिकार हजारों में हैं। ज्यादातर को पता नहीं था कि वह अपनी गाढ़ी कमाई से जिस बिल्डिंग में आशियाना खरीद रहे हैं, वह अवैध है। निर्माण के समय वहां एडीए से स्वीकृत मानचित्र का बोर्ड लगा था। बाद में पता चला कि 32 फ्लैट का मानचित्र स्वीकृत था और 52 फ्लैट तान दिए गए। ऐसी जिन बिल्डिंगों के लिए ध्वस्तीकरण का आदेश हुआ है वहां रहने वाले फ्लैट मालिक डरे-सहमे रहते हैं।
भूमि के अभाव में अपार्टमेंट की डिमांड
सिविल लाइंस, ममफोर्डगंज, धूमनगंज, अल्लापुर, राजापुर, अशोक नगर, कटरा, बेली जैसे इलाकों में बनी बिल्डिंगों के प्रति अपार्टमेंट की कीमत करीब एक करोड़ अथवा इसके आसपास है। इसमें 40 लाख रुपये कैश लिए जाते हैं, वह भी बिना लिखा पढ़ी। नंबर एक में 60 लाख रुपये ही लिए जाते हैं। इसी रकम पर रजिस्ट्री होती है। ऐसे में नुकसान फ्लैट खरीदने वाले का ही है, पर कोई देखने सुनने वाला नहीं। शहर में जमीन है नहीं और जहा है, वहा कोई ना कोई विवाद है।
कमाई का अर्थशास्त्र
शहर के किसी पॉश इलाके में पाच से छह करोड़ रुपये में दो हजार वर्ग मीटर जमीन खरीदकर उस पर 50 से 60 फ्लैट बनवाए जाते हैं। यदि 50 फ्लैट भी हैं और एक की कीमत 80 लाख रुपये तो एक अपार्टमेंट से 40 करोड़ रुपये की कमाई हो जाती है। निर्माण पर 10 करोड़ रुपये खर्च हुए तो भी 30 करोड़ का शुद्ध लाभ। लिखापढ़ी में फ्लैट की कीमत 50 लाख रुपये दिखाई जा रही हो तो भी काफी फायदा है। निर्माण की लागत हटा ली जाए तो भी कम से कम 15 करोड़ रुपये पर कोई टैक्स नहीं दिया जाता। शहर के छोटे-बड़े सभी अपार्टमेंट्स में फ्लैट की बिक्री के नाम पर यह खेल खुलेआम चल रहा है। एआइजी स्टांप एवं रजिस्ट्रेशन दफ्तर में ऐसी कई शिकायतें हैं। अफसर कहते हैं कि रजिस्ट्री के वक्त दस्तावेजों में फ्लैट की कीमत कितनी दिखाई गई, यह क्रेता और विक्रेता पक्ष का मामला है। इसमें विभाग हस्तक्षेप नहीं कर सकता है। वह सिर्फ सर्किल रेट या फ्लैट की कीमत (इनमें जो ज्यादा है) के आधार रजिस्ट्री करता है।
कम रकम पर ही मिलता है लोन
मकान खरीदने के लिए अभिलेखों में जो रकम दिखाई जाएगी, बैंक लोन उसी अनुपात में मिलता है। 90 फीसदी मामलों में बिल्डर अपार्टमेंट की कीमत का बड़ा हिस्सा लिखापढ़ी बिना कैश में लेते हैं, सो फ्लैट खरीदने वालों को पूरा लोन भी नहीं मिलता।
बहुमंजिला ढहने से मारे गए थे छह लोग
गजियाबाद, नोएडा सरीखा घटनाक्रम वर्ष 2007 में इलाहाबाद में भी हो चुका है। सिविल लाइंस में जेके पैलेस के पास ही एक व्यवसायिक बहुमंजिला भवन बन रहा था। भोर में अचानक भवन धराशायी हो गया था, और छह मजदूर जिंदा दफन हो गए। इसके बाद भवन आज तक नहीं बन सका। अवैध रूप से बनाए जा रहे इस भवन पर भी एडीए ने ध्वस्तीकरण की कार्रवाई की थी। कोट
भानुचंद्र गोस्वामी, उपाध्यक्ष, इलाहाबाद विकास प्राधिकरण ने कहा कि शासन की मंशा के अनुरूप प्रभावी कार्रवाई की जा रही है। प्रदेश में इलाहाबाद में ही सबसे ज्यादा कार्रवाई हुई है। नोएडा-गाजियाबाद में हुए हादसे के मद्देनजर अवैध अपार्टमेंट्स के खिलाफ कार्रवाई के लिए आवश्यक दिशा-निर्देश दिए गए हैं।
ध्वस्तीकरण आदेश के बाद भी कार्रवाई नहीं
सिविल लाइंस में एडीए दफ्तर इंदिरा भवन से सटे एक व्यावसायिक भवन के ध्वस्तीकरण का आदेश दिया जा चुका है मगर मामला न्यायालय में है, इसलिए कार्रवाई नहीं हो सकी है। वर्ष 2003 से 2005 के बीच बनाए गए इस भवन में अतिरिक्त तलों का निर्माण कराया गया है। तीन तल का ही मानचित्र स्वीकृत था मगर पांच तल बना दिया गया। पार्किग भी नहीं है। सेट बैंक भी नहीं छोड़ा गया है। इसलिए स्वीकृत तीन तल भी अवैध घोषित हो चुके हैं। ध्वस्तीकरण का आदेश वर्ष 2005 में ही हो गया था।
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