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अठारह वर्ष बाद बकाया बिल जारी होने से उपभोक्ताओं में हड़कंप.

जमाल अहमद

रसडा(बलिया)। भारत संचार निगम लिमिटेड चीर निद्रा में सोने के बाद 18 वर्ष पर पीसीओ व बेसिक घरेलू फोन का का बकाया बिल जारी किया है। इससे उपभोक्ताओं में हड़कंप मच गया है।

जानकारी के अनुसार भारत दूर संचार विभाग द्वारा वर्षो पूर्व शिक्षित बेरोजगारो को रोजगार के ध्येय से नियमानुसार पीसीओ कनेक्शन दिया गया जिसमे दिव्यांग तथा शिक्षित बेरोजगार पात्र ब्यक्तियो को कनेक्शन मिला था। किन्तु जनपद को छोड तहसील स्तर एसटीडी सुविधा पूर्ण रूप से नही मिला। तार खंबो के सहारे एसटीडी दिये जाने से आये दिन खराब हुआ करता था जिसके चलते जनरल फोन उपभोक्ताओं से लेकर पीसीओ  धारक परेशान रहा करते थे। बता दें पीसीओ कनेक्शन धारकों के फोन बन्द कर विभागीय कर्मी अपने जेब भरने के लिए एक्सचेंज में चोरी से बात कराते थे। पीसीओ धारक उसको भुगतते थे लेकिन वे झेलते हुए बिल आने पर समय -समय पर भुगतान करते थे। जिस पीसीओ  धारक का एक भी बिल समय पर भुगतान नही हो पाता था उसके पीसीओ को विच्छेद कर दिया जाता था। उसे पुनः चालू कराने के लिए सौ रूपये चार्ज लिये जाने पर फोन चालू किया जाता था।

दूर संचार विभाग के भ्रष्ट ब्यवस्था के चलते केन्द्र सरकार को एक रुपये मे पच्चीस पैसे नही पहुंच पाता था जिससे दिवालिया होने के कगार पर पहुंच गया। यहां तक फोन उपभोक्ताओ से बकाये बिलों का भुगतान न करा सका। जिस पर सरकार ने फर्म बदलना उचित समझा और बदल कर भारत संचार निगम लिमिटेड रखा। किन्तु भ्र्ष्ट कर्मचारी नही बदल सका। निगम होने पर कुकुरमुत्ते की तरह पीसीओ खुलना तथा मोबाईल फोन का बाढ आने से पीसीओ का धन्धा ठप होने लगा और सन् 2000 के बाद बन्द होने लगा। बन्द होने पर फोन के बकायेदारो से निगम भी वसूली का तीन बर्ष के अन्दर कोई सूचना नही दिया। अब अठारह वर्ष पर न्यायलय के माध्यम से नोटिस देकर विभाग वसूली करने चला है। बताते चले कि कोई भी फर्म बदलने पर सारे पैसे डूब जाता है। यह कि कोई भी सेठ साहुकार फर्म बदलने पर वसूली करने का अधिकार नही रखते है। ज्ञातव्य हो कि उच्चत्म न्यायलय का निर्देश है कि तीन वर्ष बाद किसी प्रकार का बकाया वसूली नही किया जा सकता है।

 इस सम्बन्ध मे पीसीओ धारको ने चेतावनी देते कहा कि पीसीओ धारक बेरोजगार हो गये और उन्हे रोजगार नही दिया गया और उस पर बिल भुगतान करने के बाद गलत बकाया साजिश के तहत बकाया दिखा कर वसूली करना न्योचित नही है। अगर निगम रोजगार देने बजाय कड़ाई की गई तो बाध्य होकर न्यायलय का शरण लेना पडेगा।

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