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जाने इस्लाम में ”हलाला” आखिर है क्या ?

मुस्लिम समुदाय के हलाला के मसाएल को जिस गलत तरह से समाज मे रखा जा रहा है वो बेहद अफ़सोस जनक है. क्योंकि 1% ही मामले हलाला के देखने को मिलेंगे। मुझे नही लगता कि समाज मे बेरोज़गारी,शिक्षा से बढ़ा कोई और मुद्दा है। फिर भी हलाला क्या है,,इसको सुनिए

इस्लामी शरियत के मुताबिक तलाक अल्लाह को बेहद नापसंद है. इसका ज़िक्र यहाँ तक किया गया है कि जिस वक्त एक औरत और मर्द का तलाक होता है तो अर्श भी हिल जाता है. मगर फिर भी अगर शौहर अपनी बीवी को तीसरी-तलाक़ दे दे तो फिर वो औरत अपने शौहर के लिए हलाल नहीं रहती, और वह शौहर के साथ नहीं रह सकती है. फिर वो औरत अपनी इद्दत का वक़्त (तीन महिना 13 दिन) गुज़ारने के बाद अपनी इच्छा अनुसार किसी दूसरे आदमी से शादी (निकाह) कर ले फिर इत्तिफाक़ से (याद रहे जान बूझ कर नही) उनका भी निभा ना हो सके और वो दूसरा शोहर भी उसे तलाक दे दे या मर जाए तो वो औरत चाहे तो (अपनी मर्ज़ी से) पहले मर्द से (यानि अपने पहले पति से) निकाह कर के उसके लिए जायेज़ या हलाल हो सकती है, इसी को कानून में ”हलाला” कहते हैंI

हम शर’ई हुक्म हलाला की ताईद (समर्थन) करते हैं क्योंकि “हलाला” तलाक को रोकने का एक ऐसा बैरियर है जिसे सोचकर ही पुरुष “तलाक” के बारे में सोचना बंद कर देता है। (यहाँ कुछ दोस्तो का कहना है गलती शौहर करे तो उसे औरत क्यूँ भोगे उन्हें बता दूँ कि दूसरी शादी औरत अपनी मर्ज़ी से करती है ज़िन्दगी की नई शुरुआत करने अपनी पूरी ज़िंदगी दूसरे शौहर के साथ बिताने के लिए) यह व्यवस्था इसलिए है कि कोई भी ऐसी सख्त व्यवस्था से डर कर अपनी बीवी को जल्दीबाजी में तलाक ना दे, अगर हलाला का कानून नहीं बनाया जाता तो शौहर अपनी बीवी को तलाक देकर फिर से शादी की घटनाओं की बाढ़ आ जाती और तलाक महज़ एक मजाक बन कर रह जाता।

हलाला मुख्य रूप से महिलाओं की इच्छा के उपर निर्भर एक स्वतः प्रक्रिया है जिसमे वह तलाक के बाद अपनी मर्जी से खुशी खुशी और बिना किसी पूर्व योजना (हृदय में हलाला का ख्याल तक ना हो) के अन्य पुरुष से सामान्य विवाह कर लेती है और फिर दूसरे विवाह में भी ऐसी परिस्थितियाँ स्वतः पैदा होती हैं कि यहाँ भी निकाह, तलाक की उसी प्रक्रिया के अनुसार टूट जाता है तब ही वह इद्दत की अवधि के बाद पूर्व पति के साथ पुनः निकाह कर सकती है वह भी उसकी अपनी खुशी और मर्जी से।

गौरतलब रहे कि यह पूरी घटना इत्तिफ़ाक से हो तो जायज़ है जान बूझ कर या प्लान बना कर किसी और मर्द से शादी करना और फिर उससे सिर्फ इस लिए तलाक लेना ताकि पहले शौहर से निकाह जायज़ हो सके यह साजिश सरासर नाजायज़ है और अल्लाह के रसूल (सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम) ने ऐसी साजिश करने वालों पर लानत फरमाई है. यही नहीं इस तरह से प्लान करके दूसरी शादी करना ही नाजायज़ है और वह शादी जायज़ नहीं मानी जायेगी.

साभार – अख़लाक़ अंसारी (लेखक कानपुर जिले के एक वरिष्ठ पत्रकार है और लेख में इस्लामी शरियत का हवाला दिया गया है. हमारा प्रयास किसी धार्मिक भावना को ठेस पहुचाना नहीं बल्कि सत्य को उजागर करना है कि जिस तरह कुछ लोगो के द्वारा हलाला शब्द कह कर एक धर्म विशेष के लिये बेवजह की अफवाहे फैलाई जा रही है उसको रोका जा सके और सत्यता आम जनता को बताई जा सके

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