शिवशक्ति सैनी
हमीरपुर. यूपी के हमीरपुर जिले में एक बार फिर जिला अस्पताल कर्मियों की लापरवाही के चलते नवजात शिशु की जान जाते जाते बच गयी,क्योकि यहाँ स्थित एसएनसीयू वार्ड में एकाएक आक्सीजन की कमी हो गयी और उन्होंने रिफर होकर आये जच्चा और बच्चा को एडमिट करने से मना कर दिया .जिसके चलते कई घंटो तक जच्चा और बच्चा अस्पताल की फर्स में पड़े तडपते रहे लेकीन मीडिया की दखल के बाद मौके में जिला प्रशासन के अधिकारियो की पहल के बाद दोनों को भर्ती कर इलाज शुरू किया गया !
हमीरपुर सदर अस्पताल का यह एसएनसीयू वार्ड है …जहाँ गंभीर रूप से बीमार नवजात बच्चो को भर्ती कर उनका इलाज किया जाता है लेकीन यहाँ के स्टाफ की लापरवाही के चलते यहाँ भर्ती बच्चो की जान मुश्किल में आ गयी है ..क्योकि आज यहाँ आक्सीजन की एकाकक कमी हो गयी जिसके चलते अब यहाँ अन्य बीमार रिफर होकर आये बच्चो को भी भर्ती नही किया जा रहा है .इस जमीन में लेटी माँ और इलाज के अभाव में जिन्दगी और मौत के बीच जूझते नवजात बच्चे को देख कर आप यहाँ के हालत खुद समझ सकते है ….
-महोबा जिले के ग्योड़ी गांव निवासी जीतू की पत्नी प्रीती को रविवार प्रसव पीड़ा हुई। वह मौदहा सीएचसी में प्रसव कराने के लिए भर्ती हुई जहां दोपहर ढाई बजे उसने एक बच्ची को जन्म दिया। बच्ची के पेट में गंदा पानी चला जाने से चिकित्सकों ने उसे सदर अस्पताल रेफर कर दिया। सीएचसी मौदहा से प्रीती को परिजन एंबुलेस से सदर अस्पताल लाए। जहां एसएनसीयू वार्ड फुल होने व आक्सीजन न होने की बात कह स्टाफ नर्स ने नवजात को भर्ती कराने से मना कर दिया। परिजन डाक्टरों के चक्कर काटते रहे, लेकिन अस्पताल में कोई जिम्मेदार नहीं मिला। जानकारी करने पर पता चला की सीएमएस और अस्पताल में तैनात बाल रोग विशेषज्ञ मुख्यालय से बाहर हैं। चार घंटे तक जच्चा बच्चा दोनों फर्श में लेटे इलाज को तरसते रहे .
इस बात जानकारी जब मिडिया के द्वारा जिला प्रशासन को दी गयी तो मौके में पहुचे सदर एसडीएम् ने बच्चे को भर्ती करवाते हुए आक्सीजन सप्लाई करवाने की हर सम्भाव कोशिशे शुरू कर दी !और माना की एकाएक एसएनसीयू वार्ड में आक्सीजन की कमी से कई बच्चो की जिन्दगी दांव पर लग गयी है !
जरा सी चूक और लापरवाही के चलते गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कालेज में 30 बच्चो की जान एक झटके में चली गयी थी ,जिसके बाद योगी सरकार के शख्त रवैये के बाद स्वास्थ विभाग ने आनन फानन में सूबे के अस्पतालों में मौजूद खामियों को दूर करने की हर सम्भव कोशिश की थी .लेकीन समय बीतते ही अस्पताल अपने पुराने ढर्रे पर वापस लौट आये .ऐसे में सवाल यह उठता है की अस्पताल प्रशासन पहले से ही ऐसी निगरानी क्यो नही करते है जिससे किसी अनहोनी को होने से पहले ही रोका जा सके !क्या उन्हें नीद से जागने के लिए किसी बड़े हादसे का हमेशा इन्तजार रहता है ?
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