तारिक़ आज़मी.
वाराणसी. हम आज एक बार फिर लेकर आपके सामने हाज़िर है तारिक़ आज़मी की मोरबतिया. हमारे उत्तर प्रदेश की एक कहावत है जो हमारे काका अक्सर कहा करते थे कि बतिया है कर्तुतिया नाही, मेहर है घर खटिया नाही. ता भैया अब बतिया तनिक समझ आई है काहे की खटिया का जमाना खत्म हो गया है, और ई तो जग जाहिरे है कि भैया हम बस बतियाते है. हम पहले ही आप सबका बता देते है कि हम खाली बतिया करेगे. अब का करे बतिया करने से समस्याएं भी हल हो जाती है मगर हम कैसे हल कर देंगे समस्या जब वह विकराल हो तो ? तो भैया हम तो पहले ही कह देते है साफ़ साफ़ कि हम खाली बतियाते है, अब किसी को अगर इ बतिया से बुरा लगे तो न पढ़े भाई हम कोई जोर जबरदस्ती तो कर नहीं रहे है कि पढ़बे करो साहेब। अरे नहीं अच्छी लगे तो न पढो साहब, हम तो बतियाते रहे है और बतियायेगे. तो साहेब बतिया शुरू करते है और बतिया की खटिया बिछा लेते है.
वाराणसी की सुप्रसिद्ध मंडी है जिसको बिशेश्वरगंज कहते है. किराना मंडी में अपना बड़ा नाम रखने वाली इस मंडी का नाम और भी मशहूर करता है यहाँ का जाम. वो आप गाना सुने होंगे सुबह से लेकर शाम तक वाला उसका रूप इसी मंडी की सडको पर आकर बदल जाता है और गाना हो जाता है सुबह से लेकर शाम तक और शाम से लेकर रात भर यहाँ जाम मिले. जाम का झाम मिले. बस जाम मिले.
जाम का कारण
यहाँ जाम के दो प्रमुख कारण है. पहला है वाराणसी की विचित्र यातायात व्यवस्था जो हमने खुद बनाई है. वाराणसी में वाहन चलाने का हम लोगो ने एक नियम बना रखा है कि सबसे पहले हमको जाना है और सुरक्षित तो हम ही जायेगे. अब अगर किसी मार्ग को रस्से का उपयोग कर एकल दिशा मार्ग कर दिया जाता है तो हम इतने समझदार बन जाते है कि रस्सा उठा के नीचे से निकल जाते है. दुसरा प्रमुख कारण है यहाँ गोदामों से माल लोड और अन्लोड करते हुवे बीच सड़क पर खड़े ट्रक.
आप तस्वीरो को देख कर अंदाज़ लगा सकते है कि जब सड़क पर जगह ही नहीं बची है तो आप वाहन लेकर कहा से निकल कर जा सकते है. सारा दिन छोटी गाडियों और रात से लेकर सुबह तक बड़ी गाडियों से यहाँ सड़क पर वाहन खड़ा करके माल लोड और अनलोड किया जाता है. स्थानीय चौकी इंचार्ज गायघाट ने उक्त गलत कार्य को गलत समझते हुवे शायद आँखे बंद कर रखी है. ध्यान से देखे तो कैसे देखे. कहने को तो रात भर फैंटम चक्रमण किया करती है मगर मजाल है किसी को कुछ बोल दे. अपुष्ट सूत्रों से प्राप्त खबर के अनुसार जो आकडे मिले है उसको उठा कर देखे जाये तो लम्बे अरसे से नो वेंडिंग ज़ोन में खडी उनके चालान अरसो से नहीं कटे है. अगर यह आकडे सही है तो जो तस्वीर हमको मिल गई उसको सामने बैठ कर चौकी इंचार्ज साहब नहीं देख पाते है तो फिर रात भर फैंटम करती क्या है.
अगर चर्चाओ को आधार माना जाये तो दरोगा जी की इस नजर-ए-इनायत पर आस पास के गद्दीदार काफी खुश होते है और दरोगा जी को वह भी “समझ” लेते है. बस दरोगा जी की नज़रे इनायत का दबदबा कायम है और ट्रक सड़क पर खडी है. अब आप इधर से बहुत ज़रूरी काम से जाये या फिर मरीज़ लेकर किसी की बला से. आप या तो वैकल्पिक मार्ग का प्रयोग करे अथवा खड़े रहे ट्रक तो काम होने के बाद ही हटेगी, आप बोल कुछ नहीं सकते है अन्यथा गोदाम मालिको के गुर्गो पर विशेष अनुकम्पा है और आप इज्ज़त धुलवा लेंगे अपनी. ज़रूरत पड़ी तो ये मारपीट भी आपके साथ कर सकते है.. इससे बेहतर है कि आप अपनी सेहत का ख्याल रखे और इनके मुह न लगे.
साहब अब हम अपनी बतिया की खटिया उठाते है काहे कि हम तो पहले ही कहा था कि हम केवल बतिया सकते है. करना क्या है ? करने के लिये अगर चाहे तो यातायात पुलिस है, कप्तान साहब है और फिर दरोगा जी भी तो है,. हम तो केवल बतिया सकते है और बतिया लिया है. कल फिर बतियायेगे कि किस तरह सड़क को अवैध पार्किंग बना कर रख रखा है लोगो ने मगर साहब देखते ही नहीं है
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