वाराणसी. हमारे प्रदेश की एक कहावत, हमारे काका कहते रहे है अक्सर कि बतिया है कर्तुतिया नाही, मेहर है घर खटिया नाही. ता भैया अब बतिया तनिक समझ आई है काहे की खटिया का जमाना खत्म हो गया है, और ई तो जग जाहिरे है कि भैया हम बस बतियाते है. हम पहले ही आप सबका बता देते है कि हम बतिया करेगे अब का करे बतिया करने से समस्याएं भी हल हो जाती है मगर हम कैसे हल कर देंगे ? समस्या जब विकराल हो। तो भैया हम तो पहले ही कह देते है साफ़ साफ़ कि हम खाली बतियाते है, अब किसी को अगर इ बतिया से बुरा लगे तो न पढ़े भाई हम कोई जोर जबरदस्ती तो कर नहीं रहे है कि पढ़बे करो साहेब। तो साहेब बतिया शुरू करते है और बतिया की खटिया बिछा लेते है.
बतिया यहाँ से शुरू करते है कि देश भर में थाने और पुलिस चौकी का निर्माण हमारी और समाज की सुरक्षा की अवधारण के साथ हुआ है. समाज सुरक्षित रहे इसी सोच के तहत पुलिस थाने होते है और उनके अधिनस्त पुलिस चौकियो का निर्माण होता है. वैसे तो लगभग हर पुलिस चौकी चौबीसों घंटे खुली रहती है. मगर देश के कुछ अति विशेष में खुद को समझने वाले चौकी इंचार्ज लोग चौकी में ताला बंद करके आराम भी फरमा लेते है. अब चौकी में साहब खुद ताला बंद करके चले जाये तो अधिनस्थो को भी थोडा आराम करना स्वाभाविक होता है.
शायद सड़क और केबिन में मौजूद गर्मी यहाँ के चौकी प्रभारी महोदय यानि श्रीकांत पाण्डेय को पसंद नहीं है. मान्यवर अक्सर ही इस चौकी पर ताला जड़ के कही और ही रहते है. सबे बड़ी बात तो ये है कि मान्यवर को प्रदेश सरकार के तरफ से मिले सीयूजी नंबर तक को साहब बहुत ही कम उठाते है. क्षेत्रीय चर्चाओ के अनुसार अगर साहब फोन उठा भी लेते है तो चौकी की जगह कही और बुला लेते है.
इस जानकारी को प्राप्त होने के बाद बतौर पत्रकार धर्म का पालन करते हुवे हम भी ध्यान देने लगे कि क्या वाकई जनता का कहना और क्षेत्रीय जनता की चर्चाये सही है अथवा नहीं. हमने इस चौकी को विगत तीन दिनों भर नज़र देखना चालु कर दिया. तो निष्कर्ष निकला कि चौकी में अधिकतर समय ताला ही बंद रहता है और साहब क्या कोई पुलिस कर्मी चौकी पर नहीं रहता है. आज हमने शाम को इस चौकी पर एक बार फिर नज़र दौड़ाया और रात लगभग 8 बजे पहुचे पुलिस चौकी पर. पुलिस चौकी पर लिंक अटूट लटक रहा था. भाई सही समझे आप लोग यानि ताला लगा हसा था. हमने इस सम्बन्ध में बात करने के लिये चौकी इंचार्ज को उनके सीयूजी नंबर पर फोन किया गया तो मान्यवर ने फोन नहीं उठाया और फोन काट दिया. मैंने कई काल किया मगर फोन नहीं उठना था तो नहीं उठा. अब प्रश्न यह उठता है कि क्या साहब को सरकार ने सीयूजी नंबर फोन काटने के लिये उपलब्ध करवाया गया है. शायद नहीं… क्योकि फोन जनता के भलाई के लिये दिया गया है सरकार के द्वारा मगर फोन नहीं उठाया जाता है. सबसे बड़ा प्रश्न यह उठता है कि जब साहब पत्रकारों का फोन नहीं उठाते है तो क्या आम जनता का फोन उठा लेते होंगे.
खैर साहब जैसा हम पहले कहे थे कि हमारे पास खाली बतिया है. हम कुछ कर नहीं सकते है. कऊनो काम नहीं कर सकते है ऊ कहा रहा न बतिया है …….. बस वही वाली बात है. और कर भी का सकते है, साहब श्रीकांत पाण्डेय जी की चौकी है अब वह ताला बंद करके चौकी चलाते है या फिर ताला खोल के चलाते है ये उनकी मर्ज़ी है हम कर भी क्या सकते है साहेब, हां करने को कप्तान साहब कर सकते है. मगर साहब क्या करे ? हम तो बतिया चुके भैया लोग अब बतिया की खटिया उतारते है और फिर बतियाने के लिये हाजिर होंगे और बतायेगे कि आखिर किसकी शह है जो सड़क के बीचो बीच ट्रक खडी करवा कर उतरवाते और लदवाते है गद्दीदार अपना माल. तो साहब कल मिलेगे बतिया के खटिया के साथ. तब तक आप लोग खबर पर कमेन्ट लिख सकते है कुछ ख़ास नहीं तो यही लिख दे कि पान खाकर थूकना मना है.
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